नई दिल्ली : रामायण की कहानी तो आप सभी ने पढ़ी होगी। उस कहानी का ”लक्ष्मण मूर्छित” प्रसंग तो आपको याद ही होगा। कि किस तरह से रावण के पुत्र मेघनाद के बाण-शक्ति के प्रहार से भगवान राम के भाई लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं। उनके उपचार के लिए सुषैन वैध को बुलाया जाता है। जो आकर बताते हैं कि लक्ष्मण का उपचार सिर्फ हिमालय पर्वत पर मिलने वाली संजीवनी बूटी से ही किया जा सकता है।
कहानी के बाद का सच
संजीवनी बूटी की खोज में गए हनुमान जब पर्वत पर पहुंचकर असमंजस में पड़ जाते हैं तो पूरा का पूरा पर्वत ही लेकर आ जाते हैं। उसमें से वैध जी संजीवनी बूटी को खोज कर लक्ष्मण का उपचार करते हैं और लक्ष्मण पुनः जीवित हो जाते हैं। मगर इसके बाद की कहानी कोई नहीं बताता। कि जो पर्वत हनुमान जी उठा कर लाये थे उसका क्या हुआ?
आज तक नफरत करते हैं वो लोग हनुमान से
आपको ज्ञात है कि हनुमान जी जो पर्वत उठकर ले आये थे उसका नाम ”द्रोणागिरी पर्वत” था। लक्ष्मण जी के स्वस्थ होने के पश्चात भगवान राम तो प्रसन्न हो गए थे मगर द्रोणागिरी गाँव के लोग हनुमान जी से काफी अधिक नाराज हो गए थे। उस गाँव के लोग आज तक हनुमान जी को उनकी गलती के लिए माफ़ नहीं कर पाए हैं।दरअसल जिस पर्वत को हनुमान जी लेकर चले गए थे। उसी पर्वत की गांववाले काफी सालों से श्रद्धा-भाव से पूजा करते थे। जब से हनुमान जी ये पर्वत ले गए हैं तब से लेकर आज तक उस गांव के निवासी हनुमान जी से नफरत करते हैं और तो और वो हनुमान जी का प्रतीक ध्वज भी नहीं लगाते हैं।
वर्तमान में भी प्रचलित है ये प्राचीन कहानी
उन गांववासियों में इस प्रसंग से जुड़ी एक प्राचीन कहानी काफी प्रचलित है जिस पर वहां के लोगो का विश्वास भी काफी अडिग है। बताया जाता है कि जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने आये तो हिमालय पर इतने सारे पहाड़ देख कर हैरान हो गए थे उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि किस पर्वत पर संजीवनी मिलेगी। तभी उस गाँव की एक बूढी महिला ने हनुमान जी का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें द्रोणागिरी पर्वत पर जाने की सलाह दी थी। द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंचकर भी हनुमान जी अनेकों जड़ी-बूटियां देख असमंजस में पड़ गए थे। असमंजस की स्थिति में हनुमान जी पूरे पर्वत को ही अपने साथ लेकर चले गए थे। बिना इस बात की परवाह किये बगैर कि गलती से उनसे कितना बड़ा पाप हो गया है। इस गलती के लिए आज तक उस गांव के लोगों ने हनुमान जी को कभी माफ़ नहीं किया है। हनुमान जी के साथ-साथ उस गाँव के लोगों ने उस बूढी महिला को भी माफ़ नहीं किया जिसने हनुमान जी को द्रोणागिरी पर्वत का पता बताया था। गांववालों ने आपसी सहमति से उस महिला का सामाजिक बहिष्कार तक कर दिया था।
नहीं खा सकते हैं पुरुष खाना
वर्तमान में द्रोणागिरी गांव के निवासी हर साल उस पर्वत का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा करते हैं। इस पूजा की मान्यता होती है कि इस दिन कोई भी पुरुष किसी स्त्री के हाथ का बना भोजन नहीं ग्रहण कर सकता है।