जालंधर (पाहवा): उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपनी अग्निपरीक्षा का वक्त करीब आ रहा है। खबर है कि मार्च महीने में ही उत्तर प्रदेश में लोकसभा के उपचुनाव हो सकते हैं। गोरखपुर और फूलपुर की सीटें पहले से ही खाली थीं। अब कैराना में भी चुनाव होने हैं। ये तीनों सीटें कई मायनों में भाजपा के लिए इम्तिहान की तरह हैं। गोरखपुर से खुद योगी आदित्यनाथ सांसद थे और सांसदी छोड़कर वह मुख्यमंत्री बन गए।
इसके बाद विधानसभा चुनाव लड़ने की जगह उन्होंने विधान परिषद का सुरक्षित रास्ता चुना। गोरखपुर का उपचुनाव व्यक्तिगत तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता की परीक्षा होगी। फूलपुर की सीट उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की थी। इसी जगह से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सांसद चुने जाते थे। पहले खबर थी कि खुद अखिलेश यादव फूलपुर से उपचुनाव लड़ सकते हैं लेकिन अब करीब-करीब तय है कि वह फिलहाल लखनऊ की ही राजनीति करेंगे।
सूत्रों का कहना है कि 2019 में वह अपनी पत्नी डिम्पल यादव की कन्नौज लोकसभा सीट से दिल्ली जाने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन जारी रहने पर फूलपुर की सीट कांग्रेस को मिल सकती है। बहुजन समाजवादी पार्टी अमूमन उपचुनाव लड़ती नहीं है।
खबर है कि इस बार भी मायावती अपने उम्मीदवारों को उपचुनाव में नहीं उतारेंगी। इसका मतलब है कि फूलपुर का उपचुनाव तिकोना नहीं बल्कि आमने-सामने का होगा। तीसरी लोकसभा सीट कैराना की है जो भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई है। कैराना वह इलाका है जिसे धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला बनाया गया था लेकिन जानने वाले बताते हैं कि अब माहौल थोड़ा बदला हुआ है। भाजपा के अंदर की खबर रखने वालों का कहना है कि इस बार चुनाव सिर्फ 3 सीटों का होगा, लेकिन इससे पूरे उत्तर प्रदेश की हवा का अंदाजा लग जाएगा। गोरखपुर की जनता यह तय कर देगी कि योगी का जादू बरकरार है या नहीं और इसलिए गोरखपुर में सिर्फ जीतने भर से काम नहीं चलेगा। वहां जीत का अंतर भी मायने रखेगा। दूसरी तरफ फूलपुर की सीट यह साबित करेगी कि पिछड़ी जाति अब भी भाजपा के साथ है या छिटक गई है और कैराना यह तय करेगा कि क्या अब भी धर्म के नाम पर चुनाव जीता जा सकता है?
सूत्रों का कहना है कि राजस्थान के उपचुनाव के नतीजों से योगी खासे चिंतित दिख रहे हैं। राजस्थान में इस तरह 3 सीटों पर कांग्रेस की जबरदस्त वापसी होगी यह भाजपा में किसी ने नहीं सोचा था। इससे एक बात साफ हो गई कि अब सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव नहीं जीते जा सकते। अब भाजपा सरकारों के खिलाफ एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर भी दिखने लगा है।
सूत्रों के अनुसार योगी आदित्यनाथ पिछले 6 महीनों से उपचुनाव की तैयारी कर रहे हैं लेकिन अभी तक भाजपा इनके लिए हिम्मत नहीं जुटा पाई है। किसी न किसी वजह से अब तक उत्तर प्रदेश में उपचुनाव टाले जा रहे थे लेकिन नए चुनाव आयुक्त ने अगले 2 महीनों में इन्हें कराने के साफ संकेत दिए हैं।
योगी सरकार अब जो भी कर रही है 2019 को ध्यान में रखते हुए कर रही है। नए डी.जी.पी. की बहाली भी उसी तैयारी का एक हिस्सा है। योगी चाहते तो अपने एक बेहद करीबी अफसर को पुलिस महकमे का सबसे बड़ा अफसर बना सकते थे लेकिन वह ओ.पी. सिंह को दिल्ली से लेकर आए क्योंकि उनका कार्यकाल 2019 तक है। योगी ऐसा अफसर चाहते थे जो 2019 तक उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था दुरुस्त करके रखे।
सूत्रों का कहना है कि उपचुनाव और अगले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए ही गोरखपुर के लिए नए ए.डी.जी. को चुना गया है। यह ए.डी.जी. भी विवादों से घिरे रहे हैं। दावा शेरपा के नाम पर अभी से सवाल उठ रहे हैं क्योंकि वह न केवल 4 साल के लिए छुट्टी पर चले गए थे, बल्कि विपक्ष के कुछ नेताओं के मुताबिक आई.पी.एस. रहते हुए भाजपा की ओर से चुनाव लडऩे की तैयारी भी कर रहे थे।
इस वक्त प्रधानमंत्री मोदी के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता माना जा रहा है। चुनाव के वक्त स्टार प्रचारकों में नरेंद्र मोदी के बाद सबसे ज्यादा मांग योगी आदित्यनाथ की ही रहती है। ऐसे में अगर वह अपने ही घर और प्रदेश में उपचुनाव तक नहीं जीत पाएंगे तो 2019 का चुनाव जिताने की उनकी क्षमता पर सवाल उठने लगेंगे।