राजकपूर की सन 1967 में आई फिल्म दीवाना का एक मशहूर गाना है- तुम्हारी भी जय-जय हमारी भी जय-जय, ना तुम हारे ना हम हारे। गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे को कांग्रेस इस गाने के बोल में तलाशती दिख रही है। गुजरात में मिली मात के गम को कांग्रेसी इस मासूम दलील से छिपाने की कोशिश कर रहे हैं कि राहुल की अगुवाई में पार्टी ने मोदी और शाह की जोड़ी को पानी पिला दिया जो किसी जीत से कम नहीं है। भाजपा को दहाई अंक में समेटने को कांग्रेसी अपनी अप्रत्यक्ष जीत ठहरा रहे हैं। गजब मक्कारी है यार! कहां तो राहुल की छवि रूपांतरण से क्रांतिकारी बदलाव का मुगालता पाले बैठे यही कांग्रेसी गुजरात में कमल को उखाड़ फेंकने का दावा कर रहे थे, कहां वही कांग्रेसी अब राहुल की हार में भी उनकी जीत तलाश रहे हैं। 22 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा को एंटी इनकंबेंसी के सहारे पटखनी देने के लिए कांग्रेस ने बिसात तो शानदार बिछाई थी, लेकिन इसके बावजूद अगर भाजपा अपना गढ़ बचाने में कामयाब रही तो ये मोदी की जीत नहीं तो और क्या है?
गुजरात और हिमाचल के नतीजों ने कई भ्रमों को भी निवारण कर दिया। विकास को पागल बताने जैसे अतिवादी जुमलों के सहारे कांग्रेस ने गुजरात और हिमाचल में मोदी को घेरने की कोशिश की। इसके लिए उसने नोटबंदी और जीएसटी जैसे साहसिक फैसलों पर सवाल उठाते पूरा प्रचार अभियान चलाया। जिस जीएसटी को राहुल ने गब्बर सिंह टैक्स बताकर मोदी को निशाने पर लिया, वही गब्बर सिंह राहुल से पूछ रहा है कि अब तेरा क्या होगा कालिया? तो क्या अब कांग्रेस से इतनी सियासी नैतिकता की उम्मीद करें कि वो अब इस बात को कबूल कर ले कि नोटबंदी और जीएसटी के फैसले पर जनादेश की मुहर लग गई है? सियासी नुकसान का खतरा उठाकर लिए गए फैसलों पर अगर मोदी जनता के विश्वास की मुहर लगाने में कामयाब रहे तो ये उनकी जीत नहीं तो और क्या है?
गुजरात में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस ने जातीय समीकरणों का भी जबरदस्त ताना-बाना बुना था। इसके लिए उसने हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी को अपनी ब्रिगेड में शामिल करके तख्तापलट की साजिश रची। मंसूबा पाटीदारों, पिछड़ों और दलितों के वोटबैंक में सेंध लगाकर सत्ता हथियाने का था। इस घेराबंदी को ध्वस्त करके अगर मोदी गुजरात में अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहे तो ये उनकी जीत नहीं तो और क्या है?
हिंदुत्व की प्रयोगशाला में राहुल ने साफ्ट हिंदुत्व के सहारे अपनी घुसपैठ बनाने की भी कोशिश की। इसके लिए कांग्रेस ने छद्म धर्मनिरपेक्षता की तरह ही छद्म हिंदुत्व का दांव चला और राहुल को मंदिर-मंदिर घुमाया। राहुल के गैर हिंदू होने पर बवाल मचा तो बचाव में कांग्रेस ने कोट के ऊपर जनेऊ पहनी तस्वीरें जारी करके जनेऊधारी ब्राह्मण होने का प्रमाण पेश करते देर नहीं लगाई । कांग्रेस की इस फितूरबाजी से मुकाबला नकली हिंदू बनाम असली हिंदू का बन गया और इस मुकाबले में अगर मोदी ने बाजी मार ली तो ये उनकी जीत नहीं तो और क्या है?
कुल मिलाकर अपनी हार पर अप्रत्यक्ष जीत का मुलम्मा चढ़ाने की कांग्रेस लाख कोशिश करें लेकिन हकीकत यही है कि उसके नए नवेले अध्यक्ष को दो प्रदेशों से हार का दोहरा तोहफा मिला है और इसके बावजूद अगर कांग्रेसी अपने राहुल की हार को अप्रत्यक्ष जीत साबित करें तो उनको ये जीत मुबारक।
(लेखक IBC 24 में एसोसिएट एडिटर हैं. )