नई दिल्ली। आज गोरखपुर तीन चीजों के लिए काफी लोकप्रिय है। पहला तो गोरखनाथ मंदिर दूसरा यूपी के वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ और गोरखपुर की सबसे प्रसिद्ध गीता प्रेस। गोरखपुर की गीता प्रेस की एक पहचान ये भी है कि ये प्रकाशन दुनिया भर में सबसे सस्ता धार्मिक साहित्य मुहैया कराने के लिए मशहूर है। सीएम आदित्यनाथ योगी गीता प्रेस के संरक्षक हैं। इसीलिए अब सवाल उठना लाजमी है कि क्या योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद गीता प्रेस के दिन बदलेंगे? क्या एक बार फिर धार्मिक आस्था का प्रकाशन गीता प्रेस एकबार फिर अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा?
गीता प्रेस को भारत के घर-घर में रामचरितमानस, भगवद्गीता और दूसरी धार्मिक किताबों को सस्ते में पहुंचाने का श्रेय जाता है। पिछले 95 साल के इतिहास में गीता प्रेस धर्म, संस्कृति और आध्यात्म से जुड़ी 63 करोड़ किताब छाप चुकी हैं। गीता प्रेस में साल 2015 में गीता प्रेस में हड़ताल हुई और बंद होने की अफवाह भी फैली। लेकिन आज भी गीता प्रेस यथावत अपना काम कर रहा है।
गीता प्रेस का दावा है कि 2015 में हड़ताल जरूर हुई थी पर बंद होने की नौबत नहीं आई। हाल ही में 11 करोड़ की कीमत से आधुनिक प्रिंटिंग मशीन लगाई गई है। लेकिन दूसरा सच ये भी है गोरखपुर की गीता प्रेस बेहद सीमित संसाधनों में चल रही है। वजह है ज्यादा मुनाफे पर किताबें बेचते नहीं और साथ ही दूसरों से चंदे के पैसा नहीं लिया जाता। वर्तमान में गीता प्रेस में लगभग 200 कर्मचारी काम करते हैं।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रील बनने के बाद गीताप्रेस संचालक ज्यादा उम्मीदें नहीं पाल रहे। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि बाबा गोरक्षपीठ के महंत और योगी आदित्यनाथ का राजसत्ता तक पहुंचने से धर्म के प्रति रूचि जगेगी जिसका फायदा गीता प्रेस को मिल सकता है। योगी आदित्यनाथ गीतापुर प्रेस के संरक्षक भी हैं। जानकार मान रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ सीधे तौर पर मदद ना भी करें तो भी गोरखपुर की बेहतरी और धर्म के प्रति बढ़े हुए रूझान का फायदा गीता प्रेस को मिल सकता है।