आजकल प्राइवेट कॉलेजों में विद्यार्थी द्वारा की गयी किसी भी गलती की सज़ा जुर्माने के रूप में मिलती है। कॉलेज लेट आये
तो जुर्माना, अटेंडेंस कम है तो जुर्माना। यानी फीस, बिल्डिंग फण्ड, कैंपस डेवलपमेंट फण्ड के नाम पर मोटी रकम वसूलने के बाद भी प्राइवेट कॉलेजों का मुंह हमेशा ही खुला रहता है। पेट कभी भरता ही नहीं।
हाल ही में एक परिचित जोकि एक प्राइवेट कॉलेज से BTC कर रहा है, ने बताया कि उसकी बहन की शादी की वजह से उसकी अटेंडेंस शार्ट हो गयी जिसके एवज में कॉलेज वाले उससे 5,000 रूपये मांग रहे हैं। रूपये जमा न करने की सूरत में उसका एडमिट कार्ड नहीं दिया जाएगा और वो परीक्षा में नहीं बैठ पायेगा। और आगे उसने जो बताया उसको सुनकर तो मेरे कान खड़े हो गए। 75% अटेंडेंस अनिवार्य है। और जिसकी इससे कम है उन सभी को 5,000 रूपये नहीं जमा करने हैं। सबके रेट अलग-अलग हैं। 0-30% अटेंडेंस वाले को 20,000 रूपये, 30-50% अटेंडेंस वाले को 10,000 रूपये और 50-75% के बीच अटेंडेंस वाले को 5,000 रूपये जमा करने हैं। जुर्माने के रूप में कितनी मोटी रकम ? इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
ये हाल लगभग सभी प्राइवेट कॉलेजों का है। कॉलेज प्रशासन केवल इस फ़िराक में रहता है कि कब स्टूडेंट कोई गलती करे और वो उसे धर दबोंचें और उसे इतना मेन्टल टार्चर करें कि वो नोटों की हरी-गुलाबी पत्तियाँ लाकर उनकी जेबों में ठूस दे।
हम दो ही सूरत में किसी को दंड देते हैं या तो इसलिए ताकि वो ये गलती भविष्य में दोहराये ना या फिर जिसको दंड दे रहे हैं वो दंड देने के ही लायक हो। ज़ाहिर सी बात है कॉलेज ये दंड स्वरूप जुर्माना स्टूडेंट से इसीलिए लेता है ताकि स्टूडेंट वो गलती दोबारा ना करे। वैसे भी स्कूल-कॉलेजों में जो भी क्रियाकलाप होते हैं वो विद्यार्थी में नैतिक मूल्यों के विकास हो, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किये जाते हैं। निश्चित ही दंड भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर दिया जाता है।
यहाँ सवाल ये है कि इतनी मोटी रकम दंड स्वरूप वसूल करके कॉलेज क्या वाकई विद्यार्थी का नैतिक विकास कर रहे हैं? क्या इससे विद्यार्थी में ये भावना पैदा नहीं होती कि चाहे कोई जो मर्जी करो, पैसे देकर सब माफ़ है।
क्या कॉलेज में दंड का स्वरूप जुर्माना होना चाहिए ? क्या जुर्माना ही दंड का एक मात्र विकल्प है? नहीं… मुझे आज भी याद है जब मैं पत्रकारिता कर रही थी तो किन्हीं वजहों से मेरी अटेंडेंस कम हो गयी थी। जिसके दंड स्वरूप मुझे एक्स्ट्रा असाइनमेंट करने को दिया गया था। जिसका उद्देश्य यही था कि छुट्टी लेने के कारण मेरा जो भी सिलेबस छूट गया है उसकी भरपाई हो जाए ताकि मेरा रिजल्ट अच्छा आये। ये असाइनमेंट मेरे लिए कष्टकारी था। मुझे असाइनमेंट कम्पलीट करने के लिए दिन-रात एक करने पड़े। लेकिन इस दंड के पीछे का उद्देश्य अच्छा था।
अब ज़रा सोचिये अगर उस वक़्त मुझसे असाइनमेंट की जगह पैसा माँगा जाता तो मेरे लिए कितना आसान रहा होता लेकिन क्या उससे मेरा छूटा हुआ कोर्स कवर हो जाता ? निश्चित ही ना होता और इसका असर मेरे रिजल्ट पर दिखता भले ही मैंने 20,000 रूपये जमा कर दिए होते।
लेकिन प्राइवेट कॉलेजों को स्टूडेंट्स की पढ़ाई से क्या मतलब। उनको क्या फर्क पड़ता है उनके कॉलेज से गधे निकलें, घोड़े निकलें या खच्चर। उनको तो बस अपनी जेब गरम करने से मतलब है। अब सोचिये ऐसे स्टूडेंट जिनकी सोच है पैसे देकर सब होता है ,जब राष्ट्र का निर्माण करेंगे तो वो राष्ट्र कैसा होगा ? ज़ाहिर है हमारे प्रधानमन्त्री जी के सपनों के भारत की तरह तो नहीं ही होगा। भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना मात्र कल्पना ही रह जायेगी।
हम सिर्फ इसी डर से प्राइवेट कॉलेजों की हर नाजायज़ मांग पूरी करते आ रहे हैं ताकि हमारे बच्चों का साल ना खराब हो। लेकिन ज़रा सोचिये साल ना ख़राब हो इस चक्कर में हम देश का भविष्य खराब कर रहे हैं। हम सभी इसके भुक्तभोगी हैं लेकिन इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पा रहे। लेकिन कब तक चुप रहकर इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बनकर सरकार को कोसते रहेंगे। हिम्मत जुटाइये एक बार इन प्राइवेट कॉलेजों की नाजायज़ मांगों को ना कहिये। यकीन मानिये आपकी एक ना आपके बच्चे का भविष्य सुधार देगी और प्राइवेट कॉलेजों के सुरसा की तरह बड़े होते जा रहे मुंह पर हमेशा के लिए ताला लगा देगी।