कोलकाता, 31 मार्च 2021
तारीख़- 12 मई, 2011. स्थान- कोलकाता के कालीघाट स्थित ममता बनर्जी का खपरैल की छत वाला दो कमरों का कच्चा मकान.
जैसे जैसे 2011 विधानसभा चुनावों के नतीजे आ रहे थे मकान के बाहर जुटे तृणमूल काँग्रेस के हज़ारों समर्थकों में उत्साह का ज्वार बढ़ रहा था. लेकिन ममता बनर्जी का चेहरा बेहद शांत था. बावजूद इसके कि, काँग्रेस से नाता तोड़ कर अलग पार्टी बनाने के लगभग 13 साल बाद लेफ़्ट को सत्ता से बाहर करने का उनका सपना पूरा होता नज़र आ रहा था. साथ ही उनकी एक पुरानी कसम भी पूरी होने वाली थी. जब यह साफ़ हो गया कि टीएमसी भारी बहुमत से सत्ता में आने वाली है तो ममता जश्न मनाने की बजाए आगे की रणनीति बनाने में जुट गईं.
वे तब केंद्रीय रेल मंत्री थीं और उन्होंने विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था. नतीजे आने के बाद पूरी रात वे अपने क़रीबी सहयोगियों के साथ सरकार की रूप-रेखा बनाने में जुटी रहीं. ममता बनर्जी की बेहद क़रीबी रहीं सोनाली गुहा ने पहले यह वाकया बताया था. अब सोनाली टिकट नहीं मिलने की वजह से नाराज़ होकर बीजेपी में चली गई हैं.
चुनावी नतीजों के बाद ममता की प्रतिक्रिया भी काफी सधी हुई थी. उन्होंने कहा था, “यह माँ, माटी और मानुष की जीत है. बंगाल के लोगों के लिए जश्न मनाने का मौका है. लेकिन साथ ही हमें उन लोगों को भी याद रखना होगा जिन्होंने इस दिन के लिए बीते तीन दशकों के दौरान अपना बलिदान दिया है.”
कसम खाने और उसे 18 वर्षों तक निभाने की कहानी
आखिर ममता ने कौन सी कसम खाई थी जो उस दिन पूरी होने वाली थी? जुलाई, 1993 में उनके युवा काँग्रेस अध्यक्ष रहते राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग अभियान के दौरान पुलिस की गोली से 13 युवक मारे गए थे. उस अभियान के दौरान ममता को भी चोटें आई थीं. लेकिन उसके पहले उसी साल सात जनवरी को नदिया ज़िले में एक मूक-बधिर बलात्कार पीड़िता के साथ राइटर्स बिल्डिंग जाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मुलाक़ात के लिए वे उनके चेंबर के दरवाजे के सामने धरने पर बैठ गई थीं.
ममता का आरोप था कि राजनीतिक संबंधों की वजह से ही दोषियों को गिरफ़्तार नहीं किया जा रहा है. तब वे केंद्रीय राज्य मंत्री थीं. लेकिन बसु ने उनसे मुलाक़ात नहीं की. बसु के आने का समय होने पर जब लाख मान-मनौव्वल के बावजूद ममता वहाँ से टस से मस होने को राज़ी नहीं हुईं तो उनको और उस युवती को महिला पुलिसकर्मियों ने घसीटते हुए सीढ़ियों से नीचे उतारा और पुलिस मुख्यालय लालबाज़ार ले जाया गया.
इस दौरान उनके कपड़े भी फट गए. ममता ने उसी दिन मौके पर ही कसम खाई थी कि अब मुख्यमंत्री बन कर ही वे इस इमारत में दोबारा कदम रखेंगी. उन्होंने अपनी कसम को पूरी निष्ठा के साथ निभाया. आखिर 20 मई 2011 को क़रीब 18 साल बाद उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर ही इस ऐतिहासिक लाल इमारत में दोबारा कदम रखा.
पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु तो ममता की राजनीति से इतने चिढ़ते थे कि उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से उनका नाम तक नहीं लिया था. इसकी बजाय वे हमेशा ममता को ‘वह महिला’ कह कर संबोधित करते थे.