केदारनाथ धाम में आठ साल बाद फिर से तीर्थयात्री शंकर के अवतार आदिगुरु शंकराचार्य की समाधि के दर्शन कर सकेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 5 नवम्बर को केदारनाथ में आदिगुरु शंकराचार्य की समाधि के पुनर्निर्माण के बाद उसका अनावरण कर सभी भक्तों को समाधि के दर्शन करने का अवसर भी प्रदान हो जाएगा। जबकि अगले साल यात्रा शुरू होते ही देश-विदेश के तीर्थयात्रियों को समाधि में दर्शन और आवाजाही करने का मौका मिलेगा।
बताया जाता है कि भारत में 12 ज्योर्तिलिंग और 4 पीठों की स्थापना करने वाले आदिगुरु शंकराचार्य महज 8 वर्ष की उम्र में घर से सन्यासी बनकर भारत भ्रमण पर निकले। वह 8वीं सदी के भारतीय हिन्दू दार्शनिक और धर्मशास्त्री थे। विद्वानों की राय है कि 788 ई में दक्षिण भारत में उनका जन्म हुआ। जबकि 820 ई में शंकराचार्य ने हिमालय स्थित केदारनाथ में महासमाधि ली।
माता-पिता द्वारा पुत्र कामना के लिए भगवान शिव की प्रार्थना से पैदा हुए शंकराचार्य का शुरुआती व बाल नाम भी शंकर था। बचपन में ही आध्यात्म, ज्ञान, शिक्षा, वेद-पुराणों के ज्ञाता होने के चलते उन्हें शंकराचार्य कहा जाने लगा। बताया जाता है कि जब से केदारनाथ में मंदिर निर्माण हुआ तभी से आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि के भी दर्शन शुरू हुए हैं।
हालांकि बाद में समाधि स्थल का सौन्दर्यीकरण और यहां मूर्ति स्थापना हुई। वर्ष 2013 की आपदा में वर्षों पुरानी समाधि और आदिगुरु की मूर्ति खंडित होकर ध्वस्त हो गई। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ धाम में आदिगुरु शंकराचार्य और उनकी समाधि स्थल के महत्व को देखते हुए पुनर्निर्माण कार्य में इसे ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किया।
अब, समाधि स्थल में कर्नाटक के मैसूर से भव्य मूर्ति को समाधि स्थल में स्थापित कर दिया गया है। बताया गया कि 5 नवम्बर को पूजा अर्चना के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समाधि स्थल का लोकार्पण करेंगे और इसके बाद केदारनाथ धाम में तीर्थयात्रियों को दिव्य शंकराचार्य समाधि के दर्शन होंगे। जबकि आगामी यात्रा से पूर्व की भांति आम भक्तों के लिए समाधि दर्शन सुविधा दी जाएगी।
आपदा के बाद फिर से केदारनाथ धाम में आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि का निर्माण होना बेहद सुखद अहसास है। प्रधानमंत्री द्वारा इसका लोकापर्ण होने के बाद भक्तों को आदि गुरु की समाधि स्थल के दर्शन करने का पुण्य अवसर मिलेगा। महज 32 वर्ष की उम्र में आदि गुरु शंकराचार्य का हिन्दू समाज के लिए योगदान अदभुत, अकल्पनीय, और अतुलनीय है।
भीमा शंकर लिंग, रावल केदारनाथ मंदिर