महालया मांगलिक पर्व दुर्गा पूजा से सात दिन पहले नए चांद के महत्व को दर्शाता है। माना जाता है कि इसके साथ ही त्योहारों का मौसम भी शुरू हो जाता है और यह हमारे जीवन में उल्लास, शांति और समृद्धि लेकर आता है।
महालय का पर्व नवरात्र के प्रारंभ और पितृपक्ष के अंत का प्रतीक है। इस बार शारदीय नवरात्रि गुरुवार यानी कि 21 सितंबर से शुरू होगी।
अश्विन महीने की अमावस्या को महालया होती है। दशहरे के पहले जो अमावस्या की रात आती है, उसे ‘महालया अमावस्या’ के नाम से जाना जाता है। एक तरह से इसी दिन से दशहरा की शुरुआत हो जाती है।
जानिये क्या है महालया और इसका महत्व-
पितृपक्ष भाद्र पद मास की पूर्णिमा को शुरू होता है और 16 दिन तक रहता है। इसके बाद अश्विन मास की अमावस्या को खत्म हो जाता है। इसी अमावस्या को ही महालया अमावस्या भी कहते हैं।
गरूड पुराण में पितृपक्ष के बाद आने वाले महालया अमावस्या का खास महत्व है। हिन्दु धर्म की मान्यतानुसार इस दिन हमारे पूर्वज या पितृगण वायु के रूप में हमारे घर के दरवाजे पर आकर दस्तक देते हैं तथा अपने घर परिवार वालों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। वे चाहते हैं कि उनके घर परिवार वाले उनका श्राद्ध करें और उन्हे तृप्त करके दोबारा विदा करें। अकाल मृत्यु से ग्रसित व्यक्तियों का श्राद्ध भी इसी दिन होता है।
ऐसी माना जाता है कि पूर्वज खुश होकर आर्शीवाद देते हैं और परिवार धन, विद्या, सुख से संपन्न रहता है। गरूड पुराण के मुताबिक यह भी माना जाता है कि यदि श्राद्ध पक्ष में पितरों की तिथि आने पर जब उन्हें अपना भोजन नहीं मिलता है, तो वे क्रोधित होकर श्राप देते हैं। जिसके कारण वह घर परिवार कभी भी उन्नति नहीं कर पाता है तथा उस घर से धन, बुद्धि, विद्या आदि का विनाश हो जाता है।
पिंडदान से पितरों की मुक्ति-
एक मान्यता यह भी है कि इस समय भारत में नई फसलों का पकना भी शुरू हो जाता है। इसलिए पूर्वजों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के प्रतीक रूप में, सबसे पहला अन्न उन्हें पिंड के रूप में भेंट करने की प्रथा रही है। इसके बाद ही लोग नवरात्रि, विजयादशमी और दीवाली जैसे त्योहारों के जश्न मनाते हैं।