दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में मतगणना सुबह से शुरू हो चुकी है। अभी तक हुई काउंटिंग के मुताबिक बीजेपी प्रचंड जीत की तरफ बढ़ रही है, तो वहीं आम आदमी पार्टी दूसरे और कांग्रेस तीसरे नंबर पर हैं।
बीजेपी फिलहाल 181 वार्ड पर आगे है, तो वहीं आप 40 पर और कांग्रेस 38 पर आगे चल रही है। विधानसभा चुनाव में आप को मिली शानदार जीत के बाद यह कहा जा रहा था कि पार्टी अगले दो सालों में कुछ ऐसा काम करेगी कि नगर निगम में भी उसे शानदार जीत मिलेगी, मगर ऐसा होता दिख नहीं रहा है।
इतना ही नहीं नगर निगम में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं की ओर से ऐसे बयान आ रहे हैं, जो बेहद ही चौंकाने वाले हैं। आप नेता गोपाल राय और आशुतोष ने हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा है। उनका कहना है कि ईवीएम में गड़बड़ी की वजह से आप हारी है।
हार के बाद हर पार्टी अपनी तरफ से सफाई पेश करती ही है, लेकिन यदि पिछले कुछ महीनों की आप की गतिविधियों पर नजर डाली जाए, तो पार्टी के हार के पांच बड़े कारण सामने आ रहे हैं।
1.) केजरीवाल का ‘डेंगू-चिकनगुनिया’ वाला बयान
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नगर निगम चुनाव से महज दो दिन पहले ही एक ऐसा बयान दिया था। जिसकी वजह से उनकी काफी आलोचना हुई थी। केजरीवाल ने जनता से कहा था कि यदि कल को आपके घर में डेंगू हो जाए, तो इसके लिए आप खुद जिम्मेदार होंगे क्योंकि आपने बीजेपी को वोट दिया है। अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर बीजेपी को डेंगू और चिकनगुनिया वाली पार्टी करार देते हुए दिल्लीवासियों से कहा था कि यदि आपने बीजेपी को वोट दिया, तो 5 साल तक कूड़े और मछर ऐसे ही रहेंगे।
2.) आरोपों की राजनीति
आम आदमी पार्टी ने आरोपों की राजनीति भी बहुत की। केजरीवाल ने पिछले दो साल के कार्यकाल में लगातार यही बात कही कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही है या केंद्र सरकार उनके कामों में अ़ड़ंगा बन रही है। केजरीवाल ने हमेशा से ही हर अधूरे काम का ठीकरा केंद्र सरकार के सिर पर फोड़ा है। एक तरफ जहां उन्होंने यह कहा कि केंद्र काम नहीं करने दे रहा तो वहीं दूसरी तरफ यह भी कहते आए हैं कि दिल्ली में आप सरकार ने दो साल में जितना अच्छा काम किया है, उतना अच्छा काम किसी भी सरकार ने नहीं किया है।
3.) पीएम मोदी पर केंद्रित प्रचार
अरविंद केजरीवाल ने नगर निगम चुनाव प्रचार के दौरान लगातार ही पीएम मोदी और उनके नेतृत्व पर हमला किया था। उन्होंने जमीनी स्तर के मुद्दे जनता के सामने न रखकर पीएम मोदी के खिलाफ प्रचार किया, ऐसा करना एक तरह से पीएम मोदी और बीजेपी के लिए सकारात्मक साबित हुआ क्योंकि भले ही प्रचार नकारात्मक था, मगर समय-समय पर जनता के सामने बीजेपी और पीएम मोदी का नाम केजरीवाल खुद ही लेते रहे।
4.) ईवीएम का मुद्दा घाटे का सौदा साबित हुआ
अरविंद केजरीवाल ने पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद ईवीएम में गड़बड़ी होने का मुद्दा बहुत ही जोर-शोर से उठाया था, मगर इस मुद्दे को नगर निगम चुनाव में जरूरत से ज्यादा तूल देना केजरीवाल के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।
5.) राज्यपाल से जंग
दिल्ली के एलजी भले ही वह नजीब जंग थे या वर्तमान एलजी अनिल बैजल, दोनों से ही अरविंद केजरीवाल की बनी नहीं। जंग से तो केजरीवाल की बहुत से मुद्दों पर तनातनी रहती थी, तो वहीं राज्यपाल अनिल बैजल से भी केजरीवाल की कोई खास नहीं बनी। बैजल ने केजरीवाल के विज्ञापन प्रोजेक्ट पर खर्च को लेकर जांच बैठा दी थी, साथ ही साथ बैजल ने मुख्य सचिव को दिल्ली सरकार से विज्ञापन पर खर्च किए 97 करोड़ रूपये वसूलने का आदेश भी दे दिया था।