आज आज़ादी के बेमिसाल 70 साल पूरे हो गए हैं। पिछले 69 सालों की तरह ही इस साल भी पूरे देश में आज़ादी के जश्न को बड़े ही धूमधाम से मनाया गया है। जगह-जगह भव्य झांकियां देखने को मिली ,स्कूल -कॉलेज हो या फिर गली मुहल्ले हर जगह देशभक्ति के गीत ही सुनाई दिए। सड़कों में तिरंगा हाथ में लिए युवा बड़ी ही शान से निकले। झंडा हाथ में लिए उन युवाओं में इतना जोश और उत्साह था मानों देश को इन्होने ही आज़ाद कराया है।
भारत माता की जय ,वंदे मातरम के नारे लगा रहे वो युवा बड़ी ही शान से बड़ी बेफिक्री से पूरी सड़क और शहर में आज़ादी का जश्न मना रहे थे। पर आपको जानकार हैरानी होगी कि उन हज़ारों की भीड़ में लगभग सभी के हाथ में तिरंगा था ,पर किसी को भी उस तिरंगे को किसने बनाया था ये तक नहीं पता था। शायद ये बात इतनी भी हैरान करने वाली नहीं है क्योँकि आज़ादी के बाद से ही उस इंसान का कहीं जिक्र ही नहीं आया है। हमने ही उस इंसान के योगदान को अहमियत नहीं दी थी इसलिए आज देश में बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिसे आज़ादी के उस अनछुए पहलु के बारे में पता होगा।
आज़ादी के इतिहास के पन्नों में छुपा एक ऐसा क्रांतिकारी जिसे शायद वो मुकाम ,वो नाम कभी हासिल नहीं हुआ जिसका वो हक़दार था। पर उसने आज़ादी की गाथा में एक ऐसा परचम लहराया है जिसकी पूरी दुनिया कद्रदान है। आज हम आपको आज़ादी की महान गाथा के एक ऐसे ही क्रांतिकारी के बारे में बताने जा रहें हैं जिसके बारे में पूरे देश को जानना ज़रूरी है।
ये कहानी है आज़ादी से पहले आज़ादी का स्वाद चखाने वाले इंसान की कहानी,ये कहानी है तीन रंगों के संगम से हिन्दुस्तान बनाने वाले इंसान की कहानी।
ये कहानी है विजयी विश्व तिरंगा प्यारा का निर्माण करने वाले ” पिंगाली वेंकैया ” की कहानी -जाने आज उनके बारे में इस ख़ास खबर में-
1. पिंगाली वेंकैया का जन्म आंध्र प्रदेश के भतलपेनामारु जिले के मसूलीपट्नम गाँव में साल 1876 में 2 अगस्त को हुआ था। इनकी शुरूआती पढ़ाई गाँव में ही हुई। इसके बाद पिंगाली वेंकैया ने मसूलीपट्नम से ही हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वो अपनी उच्च शिक्षा को पूरा करने के लिए कोलंबो चले गए थे ।
2 भारत लौटने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और बेल्लारी में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में भी काम किया था । बाद में वो एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए। उर्दू और जापानी समेत कई तरह की भाषाओं का उन्हें अच्छा ज्ञान था। वो जियोलॉजी विषय में डॉक्ट्रेट थे। हीरे के खनन में भी उन्हें विशेषज्ञता हासिल थी। इसी वजह से उन्हें डायमंड वैंकय्या नाम दिया गया था।
3. 19 साल की उम्र में पिंगाली वेंकैया ब्रिटिश इंडियन आर्मी से जुड़े और गांधीजी के नेतृत्व में चल रही अफ्रीका में एंग्लो-बोएर जंग में हिस्सा लिया। वहीं उनकी पहली मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी। 4.1906 से लेकर 1911 तक वे कपास की फसल की अलग-अलग किस्मों के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे थे। उन्होंने बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर एक अध्ययन लेख भी प्रकाशित किया था। इसके बाद उनका नाम कॉटन वैंकैया भी पड़ गया था।
5.साल 1921 में पिंगाली ने पहली बार देश के सामने केसरिया और हरे रंग का झंडा सामने रखा था। फिर जालंधर के लाला हंसराज ने इसमें चर्खा जोड़ा और गांधीजी ने सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया था।
6.ये वो दौर था जब आज़ादी का युद्ध अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गया था। अंग्रेजी हुकूमत के हौसले पूरी तरह से पस्त हो गए थे। देश में कई क्रांतिकारी हुए जिनके बारे हमें कहीं न कहीं जानने के लिए मिल ही जाता है पर पिंगली वेंकैया जैसे स्वतंत्रता सेनानी आज भी इतिहास की पन्नों में कहीं खोये हुए हैं।
7. तीन रंग केसरिया (त्याग और बलिदान ) , सफ़ेद ( शान्ति ) ,हरा (हरियाली और खुशहाली ) का प्रतीक ये तिरंगा देश की शान हैं बीच में नीले रंग के चक्र में 24 तीलियाँ जिस तरह से समय के अर्थ को समझा रही हैं उसका पूरा श्रेय पिंगली वेंकैया को ही जाता है।
8. आसमान में लहराता हमारा राष्ट्रीय ध्वज भारत की जीत और गौरव के परचम की कहानी बयां कर रहा है ।भारत सरकार ने 18 नवंबर 2012 को पिंगली वेंकैया को देश के सबसे बड़े सम्मान ”भारत रत्न” से भी सम्मानित किया था। पिंगाली वेंकैया का निधन 4 जुलाई 1963 को विजयवाड़ा ( आंध्र प्रदेश ) में हो गया था।
9.साल 2009 में पिंगाली वेंकैया के नाम पर एक स्टाम्प भी प्रकाशित हुई थी।
10.आज आज़ादी के 70 साल बाद भी भारत के तिरंगे में तीन रंगों के अलावा ”पिंगाली वेंकैया ” का चेहरा भी साफ़ नज़र आता है।