आप को शायद जानकार हैरानी होगी और कुछ लोगों को तो इस बात पर विश्वास करने में थोड़ा समय भी लग जाए पर ये बिलकुल सच है कि कूड़े करकट के प्रयोग से एक इंसान ने मजबूत सड़क का निर्माण किया और वो भी कम लागत में।
जरा विचार कीजिये , घर की प्लास्टिक की वस्तुओं के टूट जाने पर आप क्या करते होंगे ?जाहिर है कि या तो उन्हें कुछ दाम में कबाड़ी को बेच देते होंगे या फिर बेकार कचरा समझ कर कचरे में ही फेक देते होंगे। पर मदुरै के प्रो. वासुदेवन ने उस कचरे और बेकार प्लास्टिक के मिश्रण से मजबूत सड़क का निर्माण किया और उनके इस प्रयोग को अपना कर अबतक 12 राज्यों में लगभग 15000 किमी. से भी बड़ी सड़के बन चुकीं हैं।
प्रो. वासुदेवन, मदुरई के पास स्थित ”त्यागराजगार कॉलेज ऑफ़ इंजनेरिंग” में केमिस्ट्री के प्रोफेसर थे।
प्रो.वासुदेवन एक ऐसे शहर से ताल्लुक रखते हैं जहां पर हर रोज प्लास्टिक रद्दी आदि को मिलाकर लगभग सैकड़ों टन कचरा एकत्र होता था। जिसकी वजह से आमलोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था और सरकार के हर एक प्रयास उस कचरे के निस्तारण में असफल साबित हो रहे थे।
तब केमिस्ट्री के प्रो. वासुदेवन ने कॉलेज की लैब को छोड़कर इस बार बाहर एक अलग नया प्रयोग करने की सोची और कचरे में उपस्थित बेकार प्लास्टिक को डामर के साथ गर्म करके पत्थरों पर उनका छिड़काव किया। प्रो. वासुदेवन का ये अलग प्रयोग ‘अद्भुत’ साबित हुआ। अपने प्रयोग की सफलता के बाद प्रो. वासुदेवन ने इस प्रयोग का उपयोग बड़े पैमाने पर करने का निश्चय किया। उन्होंने सबसे पहले अपने प्रयोग का उपयोग अपने कॉलेज कैम्पस की सड़क निर्माण में किया।
प्रो.वासुदेवन ने ऐसी प्लास्टिक जिसमे ग्रोसरी बैग और रैपर भी शामिल थे उस मिश्रण को 165-170 डिग्री ताप पर गर्म करके पिघलाया फिर इस मिश्रण में कंकर और बजरी के मिश्रण को मिलाकर डामर के साथ मिलाकर 160 डिग्री ताप पर पिघलाया गया। प्राप्त मिश्रण को जब पत्थरों पर डाला गया तो प्रो. वासुदेवन और उनके सहयोगियों को सकारात्मक और उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए। उस कचरे के प्रयोग से बनी सड़क बाकी सड़कों की अपेक्षा अधिक मजबूत और बहुत कम लागत में बन कर तैयार हुई थी।
जहां बारिश और गर्मी के दिनों में आम सड़क चटकने लगती हैं वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक से बनी सड़क में कम से कम 10 साल तक कोई भी दरार नहीं होने का दावा किया गया और जो पूर्णतया सही साबित हुआ। प्लास्टिक से बनी सड़क अधिक चिकनी होती थी और डामर से बनी सड़क की अपेक्षा इसमें कम कचरा होता था।
जहां तक ऐसी सड़क के निर्माण की लागत का सवाल है तो हम आपको बता दें कि प्लास्टिक से बनी सड़क की लागत डामर से बनने वाली सड़कों की अपेक्षा 15% कम खर्च में बन कर तैयार होती है और ऐसी सड़क अधिक मजबूत होती है इस लिए सरकार को इनके रखरखाव के लिए भी कम खर्च करना पड़ता है। प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाता है ,वैज्ञानिकों का कथन है कि आज दुनिया में उपस्थित प्लास्टिक 100 साल बाद दुनिया के विनाश का कारण बनेगी। जिसके लिए सरकार भी सचेत हो गयी है और उसने प्लास्टिक बैग्स का प्रयोग पूरी तरह से बंद करा दिया है। प्रो. वासुदेवन के इस प्रयोग से अबतक 12 राज्यों में लगभग 15000किमी. से भी ज़्यादा सड़क निर्माण हो चुका है।
जहां इस देश में हज़ारों टन कचरा रोज एकत्र होता है वहीं दूसरी तरफ प्रो. वासुदेवन ने पर्यावरण के प्रति जो अध्भुत पहल की है वो वाकई क़ाबिलए तारीफ़ है।
प्लास्टिक के एक अविश्वसनीय उपयोग के कारण दुनिया में प्रो. वासुदेवन आज ”प्लास्टिक मैन ऑफ़ इंडिया” के नाम से मशहूर हुए हैं।