आप में से कई लोगों ने बरमूडा ट्राइएंगल का नाम ज़रूर सुना होगा। बरमूडा ट्राइएंगल नार्थ अटलांटिक महासागर का वो हिस्सा है जिसे डेविल्स ट्राइएंगल भी कहा जाता है। दुनिया ने विज्ञान में इतनी तरक्की की लेकिन कोई भी बरमूडा ट्राइएंगल के रहस्य का पता नहीं लगा पाया। यह वो जगह है जहाँ एयरक्राफ्ट और शिप्स आश्चर्यजनक तरीके से गायब हो चुके हैं। हालांकि अब वैज्ञानिकों ने बरमूडा ट्राइएंगल के बारे में जो नई थ्योरी दी है, उसमें कई सवालों का जवाब दे दिया है। लेकिन उससे पहले आपके लिए बरमूडा ट्राइएंगल के बारे में जान लेना ज़रूरी है ताकि आप भी जान सकें कि बरमूडा ट्राइएंगल इतना रहस्यमयी क्यों है?
बरमूडा ट्राइएंगल समुद्र के 13 लाख square वर्ग मीटर में फैला हुआ है। यानी राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के कुल एरिया को मिलाया जाए तब भी आकार में बड़ा ही होगा। हालाँकि ये ट्राइएंगल कहाँ से शुरू होता है और कहाँ खत्म होता है इसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है। बरमूडा ट्राइएंगल वो जगह है जहाँ मैग्नेटिक डिस्टर्बेंस की वजह से कंपास सही से काम नहीं करता। एक्सपर्ट्स का मानना है कि कंपास के सही से काम ना करने के कारण एयरक्राफ्ट और समुद्री जहाज गायब हो जाते हैं। यहाँ से गुजरने वाले लोगों ने अलग अलग समय पर अपने अनुभव एकत्र किये हैं और उन्होंने ये दावा किया है की उन्हें यहाँ बादलों की एक सुरंग नज़र आती है जिसके अंदर विमान का राडार काम करना बंद कर देता है। बरमूडा ट्राइएंगल में फंसने के बाद बाहरी दुनिया से संपर्क टूट जाता है। साइंटिस्ट इसे इलेक्ट्रॉनिक फोग भी कहते हैं। ये एक ऐसा फोग है जो समुद्र से उठता है और आसमान तक पहुँचते-पहुँचते बवंडर का रूप ले लेता है।
जब भी कोई विमान या समुद्री जहाज बरमूडा ट्राइएंगल के ऊपर से गुज़रता है वो वापस नहीं लौटता । सिर्फ एक घटना को छोड़ दिया जाए तो किसी भी विमान या जहाज का मलबा तक यहाँ नहीं मिला। बरमूडा ट्राइएंगल का विषय बड़ा रोचक है इसलिए इस पर कई किताबें और मूवी भी बन चुकी हैं। अब आपको उस थ्योरी के बारे में बताते हैं जिसने बरमूडा ट्राइएंगल के रहस्य को काफी हद तक सुलझा दिया है। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि बरमूडा ट्रायंगल में होने वाले हादसों की सबसे बड़ी वजह 273 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चलने वाला एक तूफ़ान है।इस नए तरीके के तूफ़ान को एयर बम कहा जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार बरमूडा ट्राइएंगल के ऊपर मौजूद हेक्सागोनल क्लाउड इस तरीके का दबाव बनाते हैं कि इस जगह हवाएं 273 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ़्तार से चलने लगती हैं और हवा के इस दबाव में एक विनाशकारी बम जैसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है। इस एयर बम की रफ़्तार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी वजह से समुद्र की लहरें 45 फीट ऊपर तक उठने लगती हैं। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस तूफ़ान की वजह से विमान क्रैश हो जाते हैं और समुद्री जहाज समुद्र में डूब जाते हैं।
ये हेक्सागोनल क्लाउड बादलों का एक ऐसा पैटर्न है जो शनि गृह के उत्तरी ध्रुव पर पाये जाने वाले बादलों से मिलता जुलता है। बरमूडा ट्रायंगल के ऊपर ये बादल 32 किलोमीटर से 82 किलोमीटर तक एरिया में फैले हैं।
आपने ध्यान दिया होगा कि जब पृथ्वी पर तूफ़ान आता है तो पेड़-पौधे टूट जाते हैं , मकान गिर जाते हैं ठीक उसी तरह आसमान में जब ये एयर बम फटता है तो 273 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चलने वाले तूफ़ान से समुद्र की लहरें 45 फीट तक ऊपर उठती हैं और समुद्री जहाज और एयरक्राफ्ट उसमें समा जाते हैं। पिछले 100 सालों में बरमूडा ट्राइएंगल की वजह से 1000 लोगों की जान गयी है। वर्ष 1945 से 1965 के बीच 8 विमान बरमूडा ट्राइएंगल में रहस्यमयी तरीकों से गायब हो गए।
1 अक्टूबर 2015 को एक विमान के बरमूडा ट्राइएंगल में गायब हो जाने के बाद उसका मलबा समुद्र की 15000 फीट की गहराई में मिला था। आज ही यहाँ से हर साल औसतन 4 विमान और 20 जहाज गायब हो जाते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस बार जो थ्योरी बरमूडा ट्राइएंगल के बारे में दी है वो आने वाले समय में कई उलझे हुए सवालों का जवाब दे सकती है।