भारत को 15 अगस्त 1947 कोअंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी मिल गयी थी। परतंत्रता की बेड़ियों से निकलते ही देश में राजा-महाराजाओं और नवाबों की रियासत का भी पूरी तरह से अंत हो गया। संविधान लागू होने के बाद पूरे देश में एक ही कानून पालन किया जाने लगा और वो था देश का गणतन्त्र। पर देश के सभी हिस्सों से लगभग पूरी तरह से नवाबों की राजशाही का अंत नहीं हुआ था।
आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां आज भी राजाओं और नवाबों के वंशज शाही जीवन बिता रहें हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ”पटौदी” रियासत है जिसमें मंसूर अली खां पटौदी के बाद इनके बेटे और बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता सैफ अली खां इस रियासत के अगले नवाब घोषित किये गये हैं। हाल ही में आयी बॉलीवुड फिल्म ”बादशाहो” में भी ”राजस्थान की ‘‘महारानी गीतांजलि देवी” और उनकी रियासत का जिक्र किया गया था। पर आपको जानकार हैरानी होगी कि वर्तमान काल में कुछ राजाओं और मुगलिया सल्तनत के हुक्मरानों के वंशज ऐसे भी हैं जो दो वक़्त की रोटी के लिए आज रिक्शा चलाने पर मजबूर हैं। भारत के कुछ महान राजा और मुगलकाल के ऐसे नवाब जिन्होंने अंग्रेजी सेना को नाको चने चबवा दिए थे ,जिनकी तलवार की धार से एक बार में ही 10 धड़ शरीर से अलग हो जाते थे आज उन्ही मुग़ल शासकों के वंशज जिल्ल्त और गुमनामी की ज़िन्दगी बिता रहें हैं। देश के इतिहास और ऐतिहासिक धरोहरों को संभालने का वायदा करने वाली सरकार आज जीती जागती विरासतों को भी नहीं संभाल पा रही है। सरकार की नज़रअंदाजी और वक़्त के तूफ़ान ने इन वंशजों की ज़िन्दगी को साख को पूरी तरह से उजाड़ कर रख दिया है। आज हम आपको देश के ऐतिहासिक काल के कुछ ऐसे ही राजाओं और मुग़ल सल्तनत काल के नवाबों के कुछ ऐसे ही वंशजों के बारे में आपको अवगत करने जा रहें हैं जिनके वर्तमान हालात से सरकार समेत पूरी दुनिया महरूम है –
1799 में मुग़ल सल्तनत के सबसे वीर और ज़ज़्बाती नवाब ‘‘टीपू सुल्तान” की मौत हो गयी थी। मौत से पहले टीपू सुल्तान के पास करीब 90,000 सैनिकों के अलावा तीन करोड़ रुपए थे। पर वक़्त ने ऐसी करवट ली कि मौजूदा समय में उनके वंशज अपना परिवार पालने के लिए रिक्शा चलाते हैं। सनवर और उनके भाई दिलावर शाह कोलकाता की टीपू सुल्तान शाही मस्जिद के पास रहते हैं। दिलावर बताते हैं कि वह रोजाना रिक्शा खींचकर करीब 300 रुपए कमा लेते हैं और इसी से परिवार का गुजर बसर हो रहा है। टीपू सुल्तान की कुल 12 संतानों में से सिर्फ 5 ही बच सकी थीं। उसमें से सिर्फ दो मुनरुद्दीन और गुलाम मुहम्मद के बारे में ही विस्तृत जानकारी मिल पायी है। ये दोनों इसी परिवार का हिस्सा माने जाते हैं।
2. नवाब ( बहादुर शाह जफ़र -जियाउद्दीन टकी)
दिल्ली की गद्दी पर वर्षों हुकूमत करने वाले भारत के सबसे उम्रदराज शासकों में से एक ”बहादुर शाह जफ़र की 6वीं पीढ़ी से ताल्लुक रखने वाले जियाउद्दीन किराए के घर में पेंशन पर गुजार रहे हैं। जियाउद्दीन टकी मौजूदा समय में वह भी परिवार चलाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि भारत सरकार एक न एक दिन उनके पुरखों की संपत्ति उनके वंशजों को जरूर सौंप देगी। वह भारत सरकार की ओर से बंद की गई मुगल वंशजों की 100 रुपए की स्कॉलरशिप को भी फिर से शुरू करवाना चाहते हैं। टकी के दो बच्चे हैं और उनका गुजारा भी पेंशन के भरोसे पर ही चलता है। उनकी मांग है कि सरकार को मुगलों को 8000 रुपए प्रति माह की पेंशन देनी चाहिए।
3. नवाब (अंतिम वारिस बहादुर शाह जफ़र -सुल्ताना बेगम)
मुगल सल्तनत के आखिरी वारिस बहादुर शाह जफर को 1857 के युद्ध में अंग्रेजों से पराजित होकर गद्दी छोड़नी पड़ी। मौजूदा समय में उनके प्रपौत्र की पत्नी सुल्ताना बेगम कोलकाला के दो कमरों के छोटे से घर में जिंदगी गुजार रही हैं। सुल्ताना बेगम के पति मिर्जा बख्त की मौत 1980 में हो गई थी। इसके चलते उनके वंशजों को दो कमरे के छोटे से घर में दिन गुजारना पड़ रहा है। उन्हें करीब 6000 रुपए की पेंशन मिलती है। इससे उनके परिवार का खर्च पूरा नही हो पाता। वे परिवार का खर्च चलाने के लिए वह चाय की दुकान चलाती हैं और महिलाओं के कपड़े बेचती हैं।
4. नवाब (वाजिद अली शाह -शकीना)
अवध के नवाब वाजिद अली शाह की वंशज शकीना इन दिनों दिल्ली के एक छोटे से घर में अपनी गुजर-बसर कर रही हैं। इस परिवार से ताल्लुक रखने वाली शहजादी शकीना महल और उनके एक चचेरे भाई मौजूदा समय में दिल्ली के मल्छा महल में रहते हैं। एक समय में इस परिवार के पास भी छत तक नहीं थी, लेकिन सरकार के साथ 9 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उनके हिस्से में यह इमारत आई। बताया जाता है कि यह इमारत तुगलक के दौर की है। साथ ही उन्हें सिर्फ 500 रुपए प्रति माह की पेंशन भी मिलती है। इसी से उनका गुजारा हो रहा है।
5. निज़ाम (उस्मान अली खां)
हैदराबाद के आखिरी निजाम उस्मान अली खान का शाही परिवार 100 करोड़ रुपए का मालिक हुआ करता था।इन निजाम की रियासत में सोने-चांदी के सिक्के होने के अलावा करोड़ों रुपए के हीरे-जवाहरात की अपार दौलत थी। 185 कैरेट हीरे भी इनकी संपत्ति में शामिल थे, जिनकी कीमत करीब करोड़ों रुपए थी। उस्मान अली के हरम में 86 पत्नियां रहती थीं, जिनसे 100 बच्चे हुए थे। 1990 में करीब 400 वारिसों ने उनकी संपत्ति पर क्लेम कर दिया, जिसमें निजाम अपना सब कुछ खो बैठे।
6. निज़ाम (उस्मान अली खां- मुकर्रम जहां)
हैदराबाद के इस आखिरी निज़ाम को उस्मान अली खां के पौत्र मुकर्रम जहां मौजूदा समय में तुर्की के शहर इस्तांबुल के छोटे से फ्लैट में दिन गुजार रहे हैं।मौजूदा समय में मुकर्रम और उनके कुछ अन्य भाई अपने परिवार की संपत्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं।। आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल की कोशिशों के बाद हैदराबाद रियासत का भारत में विलय कर दिया गया था और भारत के आखिरी निज़ाम और उनकी रियासत का भी भारत में विलय हो गया था। हैदराबाद के आखिरी निजाम को अब तक का सबसे अमीर भारतीय माना जाता है। आजादी के समय उनके पास कुल 200 करोड़ रुपये की संपत्ति थी।
7. राजा ब्रजराज महापात्रा
ओडिशा राज्य से लगभग 60 किमी दूर टिगरिया रियासत के अंतिम राजा ब्रजराज महापात्रा एक टिगरिया रियासत के सबसे रईस और रसूखदार राजा थे। उनके पास एक ज़माने में 25 लग्जरी गाड़ियां हुआ करती थी। उनके महल में 30 से भी अधिक नौकर चाकर काम करते थे। राजा ब्रजराज शिकार के लिए भी मशहूर थे। सूत्रों के मुताबिक़ उन्होंने 13 बाघों और 28 तेंदुओं का शिकार किया था। पर आज़ादी के बाद राजपरिवार से राजस्व उगाही के अधिकार ले लिए गए और उन्हें महज 130 पाउंड की पेंशन पर रहने को मजबूर कर दिया गया।इसके चलते राजपरिवार को महज 600 पाउंड में अपना पूरा महल बेचना पड़ा। बाद में इंदिरा सरकार ने पेंशन भी बंद कर दी।राजपरिवार के वारिस ब्रजराज क्षत्रिय बीरबर छामुपति सिंह को गांव वालों की दया पर झोपड़ी में बचा-खुचा जीवन गुजारना पड़ा था। 30 नवंबर 2015 को 95 साल की उम्र में इस राजा की मौत हो गई थी।