धर्म के अपमान को लेकर सुप्रीम कोर्ट का कहना है है कि, ‘यदि अनजाने में कोई किसी धर्म का अपमान कर देता है तो उसे अपराध में नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसा होने में उस व्यक्ति के खिलाफ मामला नहीं चलाया जाना चाहिए, क्योंकि यह कानून का उल्लंघन माना जाएगा।’
कानून की धारा 295A के तहत धार्मिक भावनाओं को भड़काने के मामले में अगर आरोप साबित हो जाता है तो कम से कम तीन साल की सजा हो सकती है। कोर्ट ने इसीलिए इस धरा के गलत इस्तेमाल पर चिंता करते हुए यह बात कही।
तीन जजों सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘बिना मकसद के अगर किसी व्यक्ति से गलती में या अनजाने में किसी धर्म का अपमान हो जाता है तो ऐसे में मालमा अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।’
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है जिसमें धोनी ने अपने ऊपर लगे धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में केस चलाए जाने को चुनौती दी थी।
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बता दें कि इससे पहले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के मामले में इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी ऐक्ट 2000 के सेक्शन 66ए को खत्म करके भी सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया यूजर्स को बड़ी राहत दी थी।
बता दें कि बंगलूरु में धोनी के खिलाफ एक समुदाय विशेष की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने और अपमान करने के आरोप में आईपीसी की धारा 295 व 34 के अंतर्गत मामला दर्ज किया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक भावनाएं भड़काने के मामले में धोनी के ऊपर लगे आरोपों को खारिज कर दिया है।
कोर्ट के इस फैसले से उन लोगों को राहत मिलेगी जो जबरन ही किसी राजनीतिक कार्यकर्ताओं या जानबूझकर निशाना बनाने वालों के शिकार हो जाते हैं।