नई दिल्ली: मैक्सिकों में हाल ही में आयोजित आईएसएसएफ विश्व कप में 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत को रवि कुमार ने कांस्य पदक दिलाया था। यह रवि का विश्व कप में पहला पदक है। हालांकि यह पदक रवि के लिए आसानी से नहीं आया। इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत और सात साल का इंतजार करना पड़ा तब जाकर रवि पदक पर निशाना साध पाए। रवि ने आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा कि उनके लिए यह पदक का सफर आसा नहीं रहा है, लेकिन पदक जीतने के बाद भी वह आम इंसान रहे। पदक उनके सिर चढ़ कर नहीं बोला। वो जिस दिन पदक जीते बस वही दिन विशेष था उसके बाद अगली सुबह उनके लिए आम दिनों की तरह सामान्य थी।
रवि ने कहा, “मैं छह विश्व कप फाइनल खेल चुका हूं लेकिन यह मेरा पहला पदक है। 2013 से भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। फाइनल खेलने के लिए तीन साल का इंतजार करना पड़ा। पहले तीन साल मैं विश्व कप के फाइनल में भी नहीं आ पाया था। फिर तीन साल बाद मैंने फाइनल खेला यहां से मैं पहले आठवें स्थान पर रहा फिर पांचवें तो कभी चौथे स्थान पर रहा। आखिरकार मेहनत रंग लाई और इस बार मैं तीसरे स्थान पर रहा।” मेरठ के पास एक मवाना गांव के रहने वाले सादगी पंसद रवि ने लंबे अरसे बाद पदक जीतने के अहसास पर कहा, “पदक जीतने का अहसास सिर्फ एक रात का था और अगली सुबह मेरे लिए सामान्य थी क्योंकि फिर मुझे ट्रेनिंग पर जाना था।”
रवि अब अगले महीने से शुरू हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। उनका कहना है कि मेरे दिमाग में पदक नहीं है बल्कि मेरी कोशिश अपने पिछले प्रदर्शन से बेहतर करने की है। बकौल रवि, “मेरे लिए चुनौती नहीं है। मुझे पदक की भूख नहीं है। मेरी कोशिश रहती है कि मैंने जो हासिल किया है अगली बार और ज्यादा हासिल करूं। अगर मैं उससे अच्छा करूंगा तो सब कुछ अपने आप अच्छा होगा। मैं अपना सौ फीसदी दूंगा। उम्मीद करता हूं कि मैं अच्छा प्रदर्शन जारी रखूंगा।” मवाना से 50 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में महीने में एक-दो बार निशानेबाजी करना वाला यह शख्स विश्व कप में पदक लाया है, लेकिन उनका सफर आसान नहीं था।
अपने सफर के बारे में रवि बताते हैं, ” मवाना से 50 किलोमीटर दूर एक गांव है जौड़ी। वहां डॉक्टर राजपाल सिंह ने एक रेंज खोली थी तो मैंने वहां जाकर देखा और ट्रेनिंग लेना शुरू किया था। वो रेंज मेरे घर से दूर है तो मैं महीने में एक-दो बार जाता था। वहां से मुझे पता चला की निशानेबाजी क्या होती है।” उन्होंने कहा, “मैंने लोकल टूर्नामेंट खेलना शुरू किए। फिर राज्य स्तर, फिर नेशनल खेला और पदक जीता और उसके दम पर दिल्ली के कॉलेज में स्पोर्टस कोटे में एडमिशन मिला। वहां से मैंने अच्छे से ट्रेनिंग करना शुरू की। जैसे ही मैंने ग्रैजुएशन खत्म की उसी साल मुझे एयरफोर्स में नौकरी मिल गई। मैंने 2010 में एयरफोर्स ज्वाइन किया और फिर 2012-13 में राष्ट्रीय टीम में आ गया था।”
अपने इस सफर में रवि अपने घर वालों के योगदान को याद करते हुए कहते हैं, “मैं आज जहां भी हूं अपने घर से मिले समर्थन के कारण ही हूं। क्योंकि कई बार ऐसा समय था कि मैं ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी मेरे घर वालों ने मेरा समर्थन किया। मैंने कई बार बंदूक भी उधार ली। मैंने अपनी पहली बंदूक कॉलेज में आने के बाद मिली।” पहला पदक जीतने के बाद रवि से देश को उम्मीद है कि वह राष्ट्रमंडल खेलों में भी देश के लिए पदक लाए और रवि की कोशिश भी अपनी चमक को इन खेलों में और आगे तक बिखेरने की होगी।