दीपाली श्रीवास्तव
गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में हुई बच्चे की हत्या ने अंदर तक हिला कर रख दिया है। सात साल का प्रद्युम्न क्लास 2 में पढ़ता था। कल वो लहूलुहान हालत में स्कूल के टॉयलेट में पाया गया। उसकी गर्दन पर धारदार चाकू से वार किया गया था। अस्पताल में प्रद्युम्न ने दम तोड़ दिया। पुलिस जांच में बस कंडक्टर को दोषी पाया गया जिसे गिरफ्तार कर लिया गया है। बस कंडक्टर ने अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि वो प्रद्युम्न के साथ दुष्कर्म करना चाहता था लेकिन जब प्रद्युम्न ने शोर मचाया तो उसने चाकू से उसका गला रेत दिया।
अंदाज़ा लगाइये उस माँ के ग़म का जिसने सुबह अपने बेटे की पसंद का टिफ़िन पैक किया होगा। उसे तो तब पता भी नहीं होगा कि उसका बेटा ये टिफ़िन खा ही नहीं पायेगा। उस बाप पर अपने बेटे की लाश देखकर क्या बीती होगी जो 1 घंटे पहले उसको हँसता-खेलता स्कूल छोड़कर आया था। यकीनन आँखों देखी पर भी विश्वास करना मुश्किल हो रहा होगा।
प्रद्युम्न के साथ घटी घटना सुनकर हर माँ-बाप के कलेजे सिहर उठे। सबके दिल में एक ही सवाल अब क्या शिक्षा के मंदिर भी हमारे बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं?
स्कूल में बच्चों के साथ जुर्म का ये कोई पहला मामला नहीं है। बोकारो में एक बच्ची स्कूल की तीसरी मंज़िल से इसलिए कूद गयी क्योंकि उसकी इतिहास की शिक्षिका उसे बहुत प्रताड़ित करती थीं।
अभी पिछले साल नवंबर की ही बात है। नवी मुम्बई के एक डे केअर की केअर टेकर ने 10 महीने की बच्ची को इतनी बेरहमी से पीटा कि बच्ची के ब्रेन में क्लोटिंग हो गयी। उसे कई दिनों तक ICU में रहना पड़ा।
दिल्ली के एक स्कूल में बीते अगस्त पेंसिल ना लाने पर पांचवीं क्लास के बच्चे को टीचर ने इतना ज़ोर का चांटा मारा कि उसके कान का पर्दा फट गया।
जब-जब इस तरह के वाक़ये सामने आते हैं बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठते हैं। कई नियम बनते हैं। उनका सख़्ती से पालन करवाया जाता है। कुछ दिन बाद फिर वही ढाक के तीन पात।
कई नियम बने cctv कैमरा, बसों में cctv, gps, Radio frequency identification सिस्टम, बसों में लेडी अटेंडेंट, स्कूल के टॉयलेट में अटेंडेंट वगैरह-वगैरह । लेकिन अगर ये सुरक्षा व्यवस्थाएं हो भी गयीं तो क्या आपका बच्चा पूरी तरह सुरक्षित है?
अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य और व्यक्तित्व निर्माण के लिए हम क्या कुछ नहीं करते। अच्छे से अच्छा स्कूल चुनते हैं और वहां एडमिशन के लिए जी-जान लगा देते हैं। लेकिन अगर इन्हीं स्कूलों में हमारे बच्चों को यौन शोषण और शारीरिक/मानसिक हिंसा से दो-चार होना पड़े तो सोचिये ज़रा उनके बाल मानस पटल पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका अंदाज़ा सहज ही हम और आप लगा सकते हैं।
वापस अपने सवाल पर आती हूँ। क्या सारी सुरक्षा सुविधाएं मुहैया करवा दी जाएँ तो हमारा बच्चा सुरक्षित है? जवाब है बस कुछ हद तक। तनिक सोचिये अगर हम स्वस्थ मानसिकता से व्यक्ति हैं और हमें स्वच्छंद छोड़ दिया जाए , कुछ भी करने की आज़ादी हो तो क्या हम किसी का कत्ल कर देंगे ? किसी को बेरहमी से पीट देंगे? नहीं ना। हमें तो चींटी पर भी पैर पड़ जाए तो ग्लानि होती है।
अब यौन शोषण और हिंसा करने वाला व्यक्ति स्वस्थ मानसिकता का तो नहीं ही है। फिर लाख पहरे क्यों ना हों उसकी मानसिकता बदल नहीं सकती। वो हमेशा मौके की फिराक में रहेंगे।
हज़ारों मामले सामने आये हैं जब अपराधी ने जुर्म करके आसानी से अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। तब क्या कीजियेगा? सिर्फ अपराधी को सज़ा दिलाने भर से बच्चों के साथ हो रहे जुर्म बंद हो जायेंगे?
कहने का सिर्फ इतना मतलब है कि सुरक्षा व्यवस्थाएं तो ठीक हैं लेकिन ये जो जुर्म हो रहे हैं उनकी जड़ को तो पकड़िये। किसी व्यक्ति की मानसिकता का पता लगाना इतना भी कठिन काम नहीं है। लेकिन स्कूलों और डे केअर में रिक्रूटमेंट के समय कौन इस बात का ध्यान रखता है। शिक्षकों की भर्ती के समय उनके ज्ञान को वरीयता दी जाती है और स्टाफ की भर्ती के समय उनके काम को। मानसिकता का पता कौन लगाता है। हम अपने नन्हें-मुन्हों को किस मानसिकता के आदमी के हाथों में सौंप रहे हैं , हमें पता ही नहीं चलता। और जब तक पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। या तो बच्चा अपनी ज़िन्दगी से हाथ धो चुका होता है या फिर अपने आत्मविश्वास से।
क्यों नहीं स्कूलों और डे बोर्डिंग्स में रिक्रूटमेंट के समय साइकोलॉजिकल असेसमेंट अनिवार्य कर दिया जाता। एक trained साइकोलोजिस्ट रिक्रूटमेंट के समय कैंडिडेट्स का साइकोलॉजिकल असेसमेंट करे ताकि स्वस्थ मानसिकता वाले व्यक्ति का ही चुनाव हो।
कितना खर्चा हो जाएगा बताइये ज़रा। किसी क्लास के बच्चों की एक महीने की फीस के बराबर भी नहीं।
सोचकर देखिएगा इतने घाटे का सौदा भी नहीं है आखिर सवाल हमारे बच्चों की सुरक्षा का है। देश के भविष्य निर्माताओं का है । उनको सुरक्षित हाथों में सौंपकर ही हम देश के भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं।