केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन में अवरोध पैदा करते हुए निर्देशक सुमन घोष को इसमें से गाय, गुजरात और हिंदुत्व जैसे शब्दों को म्यूट करने को कहा है। द आर्ग्यूमेन्टेटिव इंडियन नामक डॉक्यूमेंट्री को इस सप्ताहांत में कोलकाता में रिलीज करने की योजना थी, मगर घोष ने सीबीएफसी के कोलकाता क्षेत्रीय कार्यालय के बताये चार शब्दों को म्यूट करने से इनकार कर दिया है, जिससे अब इसके रिलीज पर अनिश्चितता छा गयी है। इन शब्दों में हिंदू इंडिया भी है।
डॉक्यूमेंट्री में सेन को इन शब्दों को बोलते दिखाया गया है। सीबीएफसी के इस कदम की तीखी निंदा करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चिंता जताई है, वहीं घोष ने कहा कि वह स्तब्ध हैं और सदमें में हैं। उन्होंने ट्वीट किया, विपक्ष की हर एक आवाज को दबाया जा रहा है। अब, डॉ अमर्त्य सेन, यदि उनके जैसे कद का कोई व्यक्ति अपनी बात आजादी से व्यक्त नहीं कर सकता, तो आम नागरिक क्या उम्मीद रखे।
घोष ने कहा कि 83 वर्षीय अमर्त्य सेन और साक्षात्कारकर्ता- अर्थशास्त्री कौशिक बसु के बीच बातचीत से कुछ शब्द निकालने से वृाचित्र में जान ही नहीं रहेगी। घोष ने बताया कि सीबीएफसी के क्षेत्रीय कार्यालय ने जिन चार शब्दों को म्यूट करने के लिए कहा है, वे हैं गुजरात, गाय, हिंदुत्व व्यू ऑफ इंडिया और हिन्दू इंडिया।
घोष बोले कि मैंने इसमें अपनी असमर्थता जताई, यह एक डॉक्यूमेंट्री है और एक ऐसे व्यक्ति पर है, जिसका अंतरराष्ट्रीय कद है। मैं स्तब्ध हूं। उन्होंने बताया कि उनकी इस सप्ताहांत में फिल्म को रिलीज करने की योजना थी। उन्होंने कहा, मैं उनके लिखित संदेश का इंतजार कर रहा हूं और देख रहा हूं कि क्या वे फिल्म को सीबीएफसी, मुंबई भेजेंगे। मगर किसी भी स्थिति में मेरा जवाब यही होगा।
भाजपा ने अमर्त्य सेन पर बनी डॉक्यूमेंट्री से जुड़े सेंसर बोर्ड के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि नोबेल पुरस्कार विजेता होने का मतलब यह नहीं है कि कोई जो चाहे उसे वह कहने का अधिकार मिल जाता है। द आर्गुमेंटेटिव इंडियन डॉक्यूमेंट्री की रिलीज इस सप्ताहांत में होने वाली थी, मगर सेंसर बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय ने फिल्म के निर्देशक सुमन घोष को यह निर्देश देते हुए इसपर रोक लगा दी कि वह फिल्म में सेन द्वारा कहे गए गाय, गुजरात, हिंदुत्व व्यू ऑफ इंडिया और हिंदू इंडिया शब्दों को म्यूट कर दें।
पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने संवाददाताओं से कहा कि मैं सेंसर बोर्ड के फैसले का समर्थन करता हूं। उन्हें जो सही लगा, उन्होंने वही किया, बोर्ड में काफी विद्वान लोग हैं और उन्होंने निश्चित तौर पर सभी पहलुओं पर ध्यान देने के बाद यह फैसला किया होगा। उन्होंने कहा, यदि आप एक नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, तो इसका यह मतलब नहीं है कि आप जो चाहे, आपको वह कहने का अधिकार मिल जाता है।
डॉक्यूमेंट्री में सेन सोशल च्वाइस थ्योरी, डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स, दर्शन और भारत सहित दुनिया भर में दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद के उभार की बात कर रहे हैं।फिल्म में 15 साल, 2002-2017 की अवधि दर्ज है और यह सेन तथा उनके अर्थशास्त्री छात्र कौशिक बसु के बीच बातचीत के रूप में पेश की गयी है।