राजस्थान, 25 मई 2021
राजस्थान सरकार द्वारा प्रारम्भ की गयी “घर-घर औषधि योजना” केवल सरकार की नहीं हर घर का अभियान है।यह वृक्षायुर्वेद का व्यापक, अनूठा व नवाचारी क्रियान्वयन है।कहा जाता है जहाँ औषधीय पौधे और वैद्य होंवहीं औषधालय हो जाता है।आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी, एवं सोवारिगपा एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में प्रयोग होने वाली औषधियां मुख्यतया पेड़-पौधों से प्राप्त होती हैं।वनों से निरंतर अति-दोहन के कारण अब औषधीय पौधों की अनेक प्रजातियाँ संकटापन्न होने से दीर्घकालीन संरक्षण, संवर्द्धन एवं उगाने हेतु रणनीति बनाकरक्रियान्वित करना आवश्यक है।इनमेंप्राकृतिक आवास में यथा-स्थान संरक्षण, व्यापारिक खेती, उपवनों, बाग़-बगीचों, कृषिवानिकी और वृक्षारोपण क्षेत्रों में संरक्षण, संवर्धन, डोमेस्टीकेशन तथा नई किस्मों का विकास आदि शामिल हैं।आज की चर्चा घर-घर में औषधीय पौधों को उगाने की विधियों पर केन्द्रित है।
विश्व में 70 से 80 प्रतिशत जनसंख्या आज भी किसी न किसी रूप में पौधों से अपनी औषधि की जरूरतों को पूरी करती है। हमारे घरों में प्राचीनकाल से ही बाग-बगीचे लगाने और उनमें रोजमर्रा के उपयोग हेतु औषधीय पौधे उगाने की सुदृढ़ प्रक्रिया और परंपरा है।भारत में मानव के स्थायी निवास की शुरूआत के समय से घरों के आसपास पौधारोपण की परंपरा कम से कम 5000 साल पुरानी है। आज देश के अधिसंख्य घरों में किसी न किसी रूप में हरियाली या होम-गार्डन लगे हुये हैं।
घर में औषधीय पौधे उगाने केसात सहज सूत्र हैं जो घर-घर को सुखदायी और आरोग्यकर बनाये रखते हैं।
पहली बात यह है कि घरों में औषधीय पौधों की उन प्रजातियों को उगाया जाना बहुत लाभकारी होता है जो रोजमर्रा की चिकित्सा हेतु प्रयोग में आती हैं।घर-घर औषधि योजना के अंतर्गत आयुर्वेद के चार श्रेष्ठतम औषधीय पौधे तुलसी, कालमेघ, अश्वगंधा, और गुडूची के पौधे वन विभाग की पौधशालाओं में उगाकर जुलाई-अगस्त से नवंबर-दिसम्बर माह के मध्य वितरित किये जायेंगे।इन्हें प्राप्त कर आप अपने बगीची में या गमलों में भी लगा सकते हैं।
दूसरी बात यह है कि यदि आप इन प्रजातियों को तुरंत उगाना चाहते हैं तो तुलसी, कालमेघ और अश्वगंधा के उपयोग योग्य पौधे बीजारोपण से घर की बगीची में या अपार्टमेन्ट की बालकनी या टेरेस-गार्डेन में रखे माध्यम आकार के गमलों में उगाये जा सकते हैं।गुडूची या गिलोय की कलम भी बगीची या दो से तीन फीट गहरे और बड़े आकार के गमलों में रोपित कर लताओं-बेलों को सहारा देकर चढ़ाया जा सकता है।गुडूची के तने की कलम जिसमें कम से कम तीन नोड हों, को सीधी मिट्टी में लगा सकते हैं। कलम के एक नोड को मिट्टी में गाड़ देना चाहिए और कम से कम एक नोड ऊपर ताने के फुटान के लिये रखना चाहिये। गुडूची की कलम प्राप्त करते समय ध्यान दीजिये कि वायुवीय जड़ों की कलम नहीं लगायें। इनमें फुटान नहीं होगा।राजस्थान में प्राप्त होने वाले बीजों में से अश्वगंधा के एक मुट्ठी बीजों का वजन 20 ग्राम होता है और बीजों की संख्या 8,520 होती है। इसी प्रकार रामा तुलसी में एक मुट्ठी में 22 ग्राम बीज आते हैं और इनकी संख्या 48,400 होती है। कालमेघ के एक मुट्ठी बीच में 30 ग्राम बीज आते हैं जिनकी कुल संख्या 13,500 बीज होती है। इस प्रकार अश्वगंधा में 426 बीज प्रति ग्राम, तुलसी में 2,200 बीज प्रति ग्राम तथा कालमेघ में 450 बीज प्रति ग्राम आकलित गए हैं। यह गणना राजस्थान के एक सैंपल पर आधारित है और वैश्विक स्तर पर हुये आकलनों से इसमें थोड़ी-बहुत भिन्नता हो सकती है। लेकिन अनुमान के लिए यह आंकड़े उचित और पर्याप्त हैं।इसका तात्पर्य यह हुआ कि बीज बहुत छोटे आकार के होते हैं और यदि आप गमलों या छोटी क्यारी में सीधी बुवाई करना चाहते हैं तो एक चुटकी से भी बहुत कम बीज चाहिये। इन बीजों को आप अपने आस-पास से एकत्र कर सकते हैं। पड़ोसियों या रिश्तेदारों से प्राप्त कर सकते हैं। इन्हें आप बाज़ार से भी खरीद सकते हैं।
तीनों प्रजातियों के बीज गमलों में या मिट्टी में खुरपी से खुदाई कर 1 से 2 सेंटीमीटर गहरे बुवाई कर दीजिये, बीज ज्यादा गहरे नहीं डालें।तुलसी, कालमेघ और अश्वगंधा के बीजों में थोड़ा राख मिलायें और गमले की मिट्टी या जमीन की क्यारी में ऊपर जरा सी राख की परत बुरक दें, नहीं तो चींटियाँ बीज ढोकर ले जाती हैं। बुवाई के पहले गमले या क्यारी की मिट्टी की सिंचाई करना जरूरी रहता है।लगभग 6 से 12 दिन के अन्दर तुलसी, कालमेघ औरअश्वगंधा में अंकुरण पूर्ण हो जाता है।लगभग 8 से 12 दिन में तुलसी, 6-7 दिन में कालमेघ, और 6-10 दिन में अश्वगंधा में अंकुरण हो जाता है। अंकुरण होने तक बहुत हल्की सिंचाई करना चाहिये। उसके बाद आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करना उपयुक्त रहता है। अगर बहुत से बीज गमले या क्यारी में अंकुरित हो गये हों तो आप इन्हें अंकुरण के तीन-चार सप्ताह के भीतर उखाड़कर अन्यत्र भी रोपित कर सकते हैं।
तीसरी बात यह है कि छोटे बाग़-बगीचों या अपार्टमेन्ट की बालकनी में रखें गमलों में तुलसी, कालमेघ, अश्वगंधा और गिलोय तो लगा ही सकते हैं पर घर-घर औषधि योजना को आप अपने स्तर पर सदैव के लिये आगे बढ़ाते हुये साल-दर-साल कुछ बहुउपयोगी पौधे उगा सकते हैं।अगर आप अपनी बगीची को इन चार महत्वपूर्ण प्रजातियों से आगे बढ़ाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि चुनी गई औषधीय प्रजातियाँऐसी हों जोभोजन, रसायन एवं औषधि तीनों में ही प्रयुक्त होती हों,त्रिदोषशामक हों, और विविध प्रकार के रोगों के विरुद्ध चिकित्सा में प्रयुक्त हो सकें।तिजोरी में धन और बगीचे में पौधोंका संग्रह धीरेधीरे ही होता है।अतः यदि आप एक साथ औषधीय पौधों की बुवाई या रोपण न कर सकें तो अपनी बगीची या अपार्टमेन्ट की बालकनी में प्रजातियों की विविधता को समय के साथ बढ़ाते रहें और अगली पीढ़ी को औषधीय पौधे और उनके उपयोग का ज्ञान दोनों देकर संपन्न बनायें।
चौथा यह है कि यदि आपके पास थोड़ी जमीन है तो बगिया का कुछ क्षेत्र ऐसा अवश्य हो जहां अनेक प्रजातियों के पौधे इस प्रकार लगाये जायें कि प्राकृतिक क्षेत्र का आभास हो।यदि बगीचे में अनेक औषधीय प्रजातियों के पौधे उगाना चाहते हैं तो इनमें से अधिसंख्य को बगीचे के एक कोने में बेतरतीबी से बहु-प्रजातीय रोपण करें।इसभागमें मानव दखल कम से कम करें ताकिप्राकृतिक वनोंकी तरह बीजोत्पादन, बीज विकीर्णन, पुनरुत्पादन जैसी पारिस्थितिकीय प्रक्रियायें समय के साथ अपने आप संचालित होने लगें।बगिया का यह सेमी-वाइल्ड हिस्सा बहुत मनोहारी, आरोग्यकर एवं उपयोगी होता है।
पांचवीं बात यह कि जैसा पहले कहा गया है, वन विभाग की पौधशालाओं में घर-घर औषधि योजना के अंतर्गत तुलसी. कालमेघ, अश्वगंधा और गिलोय के पौधे उपलब्ध कराये जायेंगे परन्तु बीज, कलम और पौधे प्राप्त करने के और भी तरीके हैं।सबसे आसान तरीका परिवारों के मध्य पौधों और बीजों का आदान-प्रदान है जो मानव सभ्यता के विकास के साथ ही विकसित हुआ है। उदाहरण के लिये, जब भी आप किसी परिवार की सुंदर बगीची देखें तो उनसे कुछ पौधे अवश्य मांग कर लायें औरअपने बगीचेमें लगायें। इसी प्रकार आप उन लोगों को भी कुछ पौधे उपहार में दें।घर की बगिया या गमलों में उग रहे औषधीय पौधे प्रमाणिक औषधि के साथ ही उत्तम बीजों का स्रोत भी हैं।अपने पड़ोसियों, मित्रों और संबंधियों के साथ बीजों का आदान-प्रदान हमारी पुरानी परंपरा है।यह परंपरा आज भी पूरे दुनिया में किसी न किसी रूप में विद्यमान है।बीजों के इस आदान-प्रदान को सम्पूर्ण विश्व का समाज एक सुखद तोहफ़ा मानता है।
छठा,उपवन या बगीचे के आरोग्यकर, बहुउपयोगी एवं मनोहारी दृश्य का स्वास्थ्य पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। प्रतिदिन जब आप अपनी बगीची को शांत-चित्त होकरनिहारते हैं तो आपमें स्वयं स्वस्थ रहने और परिवार को स्वस्थरखने की उत्कट लालसा जागती है। यह दिव्य मनोवैज्ञानिक प्रभाव औषधि की तरहकारगर है। यह कथन कोरे उत्साहवर्धन के लिये नहीं, बल्कि विश्व में हरियाली और स्वास्थ्य के संबंधों परप्रकाशित 6000 से अधिक शोध-पत्रों का निचोड़ है।
सातवाँसूत्र,जैसा कि पूर्व में बताया गया है,यदि आपके पास जगह की कमी हैया आप अपार्टमेंट्स में रहते हैं तो गमलों में भी अनेक प्रजातियों के पौधे उगायेजा सकते हैं।बगीचे में यदि पानी की कमी हो तो कम से कम वर्षा ऋतु में पौधों के इर्द-गिर्द थांवला बनाकर वर्षा-जल संरक्षण किया जा सकता है।
घर घर औषधीय पौधों का रोपण, सार-संभाल और उपयोग इन प्रजातियों के बारे में उपलब्ध पारंपरिक ज्ञान को विलुप्त होने से बचा सकता है।पौधों के रोपण और रखरखाव में बच्चों को साथ में लेकर चलने से इंडीजीनस-नॉलेज या पारंपरिक ज्ञान स्वतः ही अगली पीढ़ी को मिलने लगता है। स्थानीय ज्ञान को विलुप्त होने से बचानेका यह सबसे सशक्त माध्यम है।मेरा दीर्घकालिक व्यक्तिगत अनुभव है कि जैसे जैसे पारंपरिक रूप से उगाये जाने वाले पौधे हमारे आसपास से विलुप्तप्राय होने लगते हैं, वैसे वैसे पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी में स्थानीय ज्ञान का आदान-प्रदान भी रुकने लगता है।आज विश्व भर में पीढ़ियों से संचित स्थानीय ज्ञान केसमाप्त होनेका यह मूल कारण है।पीढ़ियों से संजोये जा रहे स्थानीय ज्ञान का प्रयोग कर औषधीय पौधों की सार-संभाल जनोपयोगी जैवविविधता के संरक्षण की ठोस रणनीति भी है।औषधियों के बारे में पारम्परिक ज्ञान के क्षरण को रोकने में घर घर औषधि योजना का बड़ा योगदान हो सकता है।
घर में औषधीय पौधों का रोपण देश, समाज और परिवार के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बगिया में उग रहे पौधे सहज ही स्वस्थ रहने की प्रेरणा देते रहते हैं।घर में आज उगाये गये औषधीय पौधे कल हमारे प्रियजनों की भी जान बचा सकते हैं।
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं।)