22 मई 2021
राजस्थान के नागरिकों का स्वास्थ्य रक्षण तथा राज्य में औषधीय पौधों का संरक्षण एवं संवर्धन करने के उद्देश्य से देश में अपनी तरह की अनूठी योजना क्रियान्वित की जायेगी।उल्लेखनीय है कि राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2021 में बजट घोषणा की गयी है कि “राजस्थान औषधीय पौधों की विविधता तथा गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। इसको बढ़ावा देने के लिए ‘घर-घर औषधि योजना’ शुरू की जायेगी। जिसके अंतर्गत औषधीय पौधों की पौधशालायें विकसित कर तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा इत्यादि पौधे नर्सरी से उपलब्ध कराये जायेंगे।” इसे आगे बढ़ाते हुये मंत्रिमंडल द्वारा घर-घर औषधि योजना के राज्यव्यापी क्रियान्वयन कानिर्णय हुआ है।
राजस्थान के वनों एवं वनों के बाहर हरियाली वाले क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की औषधीय प्रजातियों की उपलब्धता रही है,जिनका प्रयोग आदिकाल से आयुर्वेद तथा स्थानीय परम्परागत ज्ञान के अनुरूप स्वास्थ्य रक्षण एवं चिकित्सा के लिये होता आया है। वर्तमान परिस्थितियों में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण एवं जीवन-शैली में परिवर्तन जैसे कारणों से स्थानीय लोग अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होते रहते हैं। आयुर्वेद तथा स्थानीय परम्परागत ज्ञान व वनों में उपलब्ध औषधियों को लोगों के घरों, खेतों और निजी जमीनों के समीप उगाने हेतु सहायता करने से राजस्थान राज्य के निवासियों के स्वास्थ्य में सुधार करना इस योजना का मुख्य ध्येय है। इस योजना से राजस्थान में पाई जाने वाली वनौषधियों एवं औषधीय पौधों का संरक्षण भी होगा।
घर-घर- औषधि योजना एक साथ कई उद्देश्यों को समेटे हुये है।राज्य में औषधीय पौधों को उगाने के इच्छुक परिवारों को स्वास्थ्य रक्षण हेतु बहु-उपयोगी औषधीय पौधे वन विभाग की पौधाशालाओं में उपलब्ध कराया जायेगा। लोगों के स्वास्थ्य रक्षण और व्याधिक्षमत्व बढ़ाने तथा चिकित्सा हेतु बहु-उपयोगी औषधीय पौधों की उपयोगिता के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार करते हुये जन चेतना का विस्तार होगा।औषधीय पौधों के प्राथमिक उपयोग तथा संरक्षण-संवर्धन हेतु आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा विभाग के सहयोग से प्रमाण-आधारित जानकारी उपलब्ध होगी।जिला प्रशासन व वन विभाग, जन-प्रतिनिधियों, पंचायतीराज संस्थाओं, विभिन्न राजकीय विभागों व संस्थानों, विद्यालयों, और औद्योगिक घरानों इत्यादि का सहयोग लेकर जन-अभियान के रूप में क्रियान्वित किया जायेगा।
योजना के अंतर्गत राज्य में स्वास्थ्य रक्षण हेतु बहु-उपयोगी औषधीय पौधे तुलसी, गिलोय, कालमेघ और अश्वगंधा वन विभाग की 565 पौधाशालाओं में तैयार कर उपलब्ध कराये जायेंगे। इसके साथ ही मानव स्वास्थ्य रक्षण और व्याधिक्षमत्व बढ़ाने तथा चिकित्सा हेतु बहु-उपयोगी औषधीय पौधों की उपयोगिता के बारे में जन चेतना का प्रसार और औषधीय पौधों के प्राथमिक उपयोग तथा संरक्षण-संवर्धन हेतु जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी। विभिन्न विभागों के सहयोग से इस योजना के तहत एक वृहत प्रचार-प्रसार भी किया जायेगा। प्रचार-प्रसार हेतु सोशल मीडिया सहित सभी माध्यमों का प्रयोग किया जायेगा। राज्य, जिला, और ब्लाक स्तर पर संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जायेगा। प्रचार-प्रसार अभियान में आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा विभाग का सहयोग प्राप्त किया जायेगा।
घर-घर औषधि योजना को वन विभाग व जिला प्रशासन के नेतृत्व में माननीय जन-प्रतिनिधियों, पंचायतीराज संस्थाओं, विभिन्न राजकीय विभागों व संस्थानों, विद्यालयों, और औद्योगिक घरानों इत्यादि का सहयोग लेकर जन-अभियान के रूप में क्रियान्वित किया जायेगा। योजना 5 वर्षो के लिये लागू की जावेगी। प्रथम वर्ष में योजना की सफलता के आधार पर आगामी वर्षों में योजना को बढ़ाकर सभी घरों/परिवारों में लागू किये जाने पर विचार किया जायेगा। राज्य के सभी लोगों को लाभान्वित होने का अवसर प्राप्त होगा।
इस वर्ष राज्य भर में वन महोत्सव की थीम “घर-घर औषधि योजना” रहेगी। राज्य के समस्त जिलों और वन मंडलों के अधीन सभी फ़ॉरेस्ट रेंज, तहसील, ग्राम पंचायतें तथा शहरी निकायों में माह जुलाई में वन महोत्सव मनाया जायेगा। माह जुलाई से जिला प्रशासन द्वारा पौध-वितरण हेतु अभियान चलाया जायेगा। “घर-घर औषधि योजना” में वन विभाग, आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा विभाग, पर्यावरण विभाग, कृषि विभाग, स्वायत्त शासन, नगरीय विकास एवं आवासन विभाग, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग, पशुपालन विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, उद्योग विभाग, शिक्षा विभाग (प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा), उच्च शिक्षा विभाग, युवा मामले एवं खेल विभाग, अल्पसंख्यक मामलात विभाग, तकनीकी शिक्षा विभाग, संस्कृित शिक्षा विभाग, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (मानद विश्वविद्यालय) जयपुर, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर सहित विभिन्न विद्यालय, कृषि अनुसन्धान केन्द्र आदि अपना योगदान सुनिश्चित करेंगे।
योजना का नोडल विभाग वन विभाग होगा। जिले में जिला कलक्टर की अध्यक्षता में योजना के क्रियान्वयन हेतु जिला-स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया जायेगा। राज्य स्तर पर मुख्य सचिव, राजस्थान की अध्यक्षता में स्टेट लेवल मोनिटरिंग कमेटी का गठन किया जायेगा। प्रबोधन एवं मूल्यांकन राज्य स्तर पर वन विभाग द्वारा किया जायेगा तथा जिला स्तर पर जिला स्तरीय टास्क फोर्स द्वारा किया जायेगा। वन विभाग द्वारा उपयुक्त प्रबोधन एवं मूल्यांकन तंत्र स्थापित किया जायेगा। मुख्य सचिव, राजस्थान की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय समिति प्रत्येक तीन माह में समीक्षा करेगी।
एक प्रश्न उठता है कि परिवारों द्वारा पौधों को सीधे ही कैसे उपयोग में लिया जा सकता है? दरअसल, प्रचार-प्रसार के माध्यम से आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा विभाग के सहयोग से उपयोग की जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी। कोविड-19 सहित अनेक वायरल तथा अन्य बीमारियों में लोग अपने वैद्यों से टेली-कंसल्टेशन कर परामर्श प्राप्त कर सकते हैं और टेलीमेडिसिन में परामर्श के अनुसार घर में उपलब्ध पौधों से स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही चूंकि ये चारों औषधीय पौधे एथनो-मेडिसिनल अर्थात स्थानीय पारम्परिक ज्ञान पर आधारित दादी-माँ के नुस्खों का भी अंग हैं अतः पीढ़ियों से चले आ रहे ज्ञान के आधार पर भी लोग इनका उपयोग कर सकते हैं।
एक प्रश्न है कि कुछ पौधे लोगों के गार्डन में या फ्लैट में गमलों में लगाने से इन पौधों का संरक्षण कैसे होगा? पहली बात तो यह है कि आज हम उस युग में जी रहे हैं जब हमें जैव-विविधता का संरक्षण वहां करना होगा जहां हम रहते और काम करते हैं। घर से वन तक सम्पूर्ण भू-परिदृश्य में जैव-विविधता संरक्षण अनिवार्य है| सबसे पहले हमें अपने घरों में पौधों को संरक्षित करना होगा। उससे थोड़ा बाहर निकलने पर गांव और मोहल्ले के बाग-बगीचों में संरक्षण करना होगा। उससे आगे खेतों-खलिहानों में संरक्षण करना होगा। और अंत में, वनों और प्राकृतिक क्षेत्रों में संरक्षण करना होगा। केवल वनों में संरक्षण करने से जैव-विविधता का संरक्षण नहीं हो जाता। दूसरी बात यह है कि आयुर्वेद में उपयोग होने वाले लगभग 70 से 80 प्रतिशत औषधीय पौधे अभी भी वनों से प्राप्त होते हैं। यदि हम प्रत्येक घर में इन औषधीय पौधों को अपने उपयोग के लियेउगा लेते हैं तो स्वाभाविक है कि वनों से इनका विदोहन हमें कम करना पड़ेगा। जो लोग जैव-विविधता संरक्षण को केवल वनों में संरक्षण के अर्थ में समझते हैं उन्हें इन तमाम तथ्यों के प्रकाश में अपने अपने ज्ञान को अद्यतन करना चाहिये। आइये एक उदाहरण देखते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि विश्व के लगभग 80 प्रतिशतआबादी आज भी औषधीय पौधों पर किसी न किसी रूप में कभी न कभी अवश्य निर्भर है। ऐसी स्थिति में यदि घरों में ही औषधीय पौधे उपलब्ध होते हैं तो स्वाभाविक है कि वनों से विदोहन की आवश्यकता कम हो जायेगी। इसलिए इन पौधों का घरों में उगायेजाने का संरक्षण विषयक महत्त्व केवल घरों तक सीमित नहीं है बल्कि इसका प्रभाव पूरे लैंडस्केप और तमाम सारे पारिस्थितिकीयतंत्रों पर पड़ता है। आदिकाल में लोग वनों के इर्द-गिर्द निवास करते थे और वहीं से पौधे प्राप्त करते थे। जैसे जैसे सभ्यता का आगे विकास हुआ, अब लोग अपने घर, गांव, खेत और खलियान में पौधों को उगाते और उपयोग करते हैं।यह बहुत स्वाभाविक और शुभ स्थिति है। जैसा कि पूर्व में कहां गया है, जहां हम रहते और काम करते हैं वहां जैव-विविधता को संरक्षित करना होगा और वहां ऐसी विविधता को संरक्षित करना होगा जिसे वर्किंग-बायोडायवर्सिटी करते हैं। वर्किंग बायोडायवर्सिटी से तात्पर्य है उन प्रजातियों से है जिनकी औषधि और भोजन आदि के रूप में मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है।
एक प्रश्न यह भी उठता है कि केवल पौधे बाँट देने से क्या होगा? दरअसल घर-घर औषधि योजना केवल पौधे बांटने की योजना नहीं है बल्कि स्वास्थ्यऔर संरक्षण से जुड़े उन विचारोंको बांटने की भी योजना है जो औषधीय पौधों के योगदान को जन-मानस के माथे में बैठाते हैं। एक उदाहरण देखें तो कोविड-19 की चिकित्सा के लिये अभी तक किसी भी चिकित्सा पद्धति में कोई पक्की तौर पर ज्ञात औषधि नहीं मिल सकी है। तथापि, विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में औषधियों कीरिपरपजिंग की जा रही है और स्वाभाविक है कि आयुर्वेद में भी शोध और अनुभव आधारित रिपरपजिंग हो रही है। लगभग 4000 शोधपत्रों से स्पष्ट हो जाता है कि तुलसी, कालमेघ, अश्वगंधा और गिलोय एक ओर कुछ हद तक संक्रमित होने सेबचाव करते हैं और दूसरी ओर संक्रमित हो जाने पर पक्की तौर पर पैथोजेनेसिस को रोकने में सहायक हैं।वैद्यों की सलाह से इन औषधियों का प्रयोग बीमारी की तीव्रता इतनी नहीं बढ़ने देता कि व्यक्ति को जिंदगी के लाले पड़ने लगें।
सारांशतः सन्देश यह है कि घर-घर औषधि योजना मानव के स्वास्थ्य-रक्षण और जैव-विविधता के संरक्षण की दिशा में बहुत बड़ा कदम है। इसको सफल बनाने में प्रत्येक नागरिक का योगदान प्राप्त होगा, ऐसी आशा है।गुडूची, कालमेघ अश्वगंधा और तुलसी जैसे पौधे पहले अपने माथे में उगाइये, मिट्टी में तो उग ही जायेंगे।
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं|)