कुछ नियम सनातन होते हैं जो सभी प्रकार के लोगो पर लागू होते हैं, जैसे की पानी को बनाने के लिए हमें दो एटम हाइड्रोजन के और एक आॅक्सीजन का चाहिए ही चाहिए, फिर चाहें वह ब्रह्मांण के किसी भी हिस्से में क्यों ना हो। इसी तरह हमारा सनातन धर्म भी कुछ नियमों पर जोर देता है। ऐसा ही एक नियम है कि अंतिम संस्कार के बाद स्नान बहुत जरूरी है। आईये आज इसके बारे में जानते हैं।
धर्म शास्त्रों का कहना है कि शवयात्रा में शामिल होने और अंतिम संस्कार के मौके पर उपस्थित रहने से, इंसान को कुछ देर के लिए ही सही लेकिन जिंदगी की सच्चाई की आभास होता है। जब श्मशान जाने के आध्यात्मिक लाभ हैं, तो वहां से आकर तुरंत नहाने की जरूरत क्या है। ये सवाल अधिकतर लोगों के मन में आता है। आइए जानते हैं इस परंपरा के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण को…
धार्मिक कारण
श्मशान भूमि पर लगातार ऐसा ही कार्य होते रहने से एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बन जाता है जो कमजोर मनोबल के इंसान को हानि पहुंचा सकता है,क्योंकि स्त्रियां अपेक्षाकृत पुरुषों के, ज्यादा भावुक होती हैं, इसलिए उन्हें श्मशान भूमि पर जाने से रोका जाता है। दाह संस्कार के बाद भी मृतआत्मा का सूक्ष्म शरीर कुछ समय तक वहां उपस्थित होता है, जो अपनी प्रकृति के अनुसार कोई हानिकारक प्रभाव भी डाल सकता है।
वैज्ञानिक कारण
शव का अंतिम संस्कार होने से पहले ही वातावरण सूक्ष्म और संक्रामक कीटाणुओं से ग्रसित हो जाता है। इसके अलावा मृत व्यक्ति भी किसी संक्रामक रोग से ग्रसित हो सकता है। इसलिए वहां पर उपस्थित इंसानों पर किसी संक्रामक रोग का असर होने की संभावना रहती है। जबकि नहा लेने से संक्रामक कीटाणु आदि पानी के साथ ही बह जाते हैं।
इन कारणों से हमें शव यात्रा के बाद जरूर नहाना चाहिए, इसके बाद ही फिर हमें कुछ कार्य आगे के करने चाहिए।