जिदंगी तब बोझ बनने लगती है, जब अपने भी पराये हो जाते हैं। दूर के रिश्तेदारों की कौन कहे, अपना खून भी दगा दे जाता है। ऐसा ही एक मामला सामने अाया है। बिहार के बेगूसराय जिले से, जहां एक बेटा अपने पिता को इलाज कराने के नाम पर अस्पताल में भर्ती करवाता है और फिर वहां से फरार हो जाता है। पिता दाने-दाने के लिए मोहताज हैं।
कहते हैं कि इंसानियत आज भी जिंदा है। भले ही पुत्र ने अपने पिता को मरने के लिए छोड़ दिया हो, मगर अस्पताल में भर्ती दूसरे मरीज व उनके परिजन वृद्ध को भोजन व अन्य सुविधायें उपलब्ध करवा रहे हैं।
यह कहानी है कि समस्तीपुर के सिंधियां गांव निवासी 65 वर्षीय बानो शाह की। उनको इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि एक दिन जन्म देने वाले दो बेटे ही उसे इस हालत में छोड़ जायेंगे। 4 अगस्त को कूल्हे टुटने पर बानो शाह को समस्तीपुर के सिंधियां गांव से लाकर बेगूसराय के एक हॉस्पीटल में भर्ती करवाया गया था। पैसों के इंतजाम का बहाना बनाकर उनके दोनों बेटे और अन्य रिश्तेदार ऐसे फरार हो गए कि लौटकर फिर देखने भी नहीं आए।
अस्पताल के प्रबंधक द्वारा फोन करने पर पहले तो दोनों बेटे एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे, मगर अब फोन भी नहीं उठा रहे हैं। एक दिन तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि उसके पिता जिंदा रहें या मर जायें, इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
इस बीच लाचार पिता अस्पताल के रहमो करम और अस्पताल मे भर्ती दूसरे मरीजों के सहारे जिदंगी गुजार रहें है। एक पिता को आज भी अपने बेटों का इंतजार है। वह आज भी अपने बेटों से उतना ही प्यार करता हैं, जितना पहले करता था। जब अस्पताल प्रबंधन द्वारा बेटों पर मुकदमा कर जेल भेजने की बात कही जाती है, वे डॉक्टरों के पैर पकड़ लेते हैं और दोनो बेटों को माफी देने की गुहार लगाते हैं।