मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के मकसद से रक्षा मंत्रालय ने रक्षा क्षेत्र में आयात को कम करते हुए विदेशी कंपनियों के आगे डीआरडीओ को तरजीह देते हुए सेना के लिए मिसाइल बनाने के लिए उसे करीब 18,000 करोड़ रुपये का ठेका दिया है।
सरकार से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने पिछले हफ्ते रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की हुई बैठक में यह फैसला लिया। रक्षा अधिग्रहण परिषद की इस बैठक में जमीन से हवा में मार करने वाली छोटी रेंज की मिसाइल का मुद्दा उठा। सरकार को फैसला करना था कि वह विदेशी मिसाइल सिस्टम खरीदे या फिर जमीन से हवा में मार करने वाले आकाश मिसाइल को तरजीह दे। रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने यहां देसी विकल्प को चुना।
सेना के शीर्ष सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इन मिसाइलों को चीन और पाकिस्तान पर तैनात किया जाएगा जिससे किसी संघर्ष की स्थिति में उनके लड़ाकू विमान और यूएवी (ड्रोन) से रक्षा की जा सके। कुछ ही दिनों पहले भारतीय वायुसेना ने इन मिसाइलों को चुना था। इन मिसाइलों ने अपना लोहा भी बखूबी दिखाया है।
डीआरडीओ भले ही देसी विमानों और हथियारों को विकसित करने में पिछड़ा हुआ दिखता हो किन्तु मिसाइलों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में यह काफी मददगार साबित हुई है। ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है कि मिसाइलों के इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए इस्राइल स्वीडन और रूस भी 2011 से ही रेस में थे। लेकिन डीआरडीओ के हाथ यह बाजी लगी।