भारत एक ऐसा देश जहां पर गाय को एक धार्मिक पशु का दर्जा प्राप्त है। आपको जानकर हैरानी होगी और गुस्सा भी आएगा कि जिस देश में गाय की पूजा की जाती है और उसे गौ माता तक लोग बुलाते हैं वहीं ये देश गौमांस का सबसे बड़ा निर्यातक देश है ,पर सरकार ने गौ सुरक्षा के लिए काफी ठोस कदम उठाये और देश में गौमांस (बीफ़ ) पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगा दिया। जिसकी वजह से लाखों गायों की ज़िन्दगी और करोड़ों देशवासियों की धार्मिक भावनाएं आहत होने से बच सकीं। पिछले दिनों मध्यप्रदेश सरकार ने घायल गायों और मवेशियों के इलाज के लिए ” हाईटेक एम्बुलेंस सेवा ” की अनूठी पहल की जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।
मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार सर्वप्रथम एम्बुलेंस सेवा की शुरुआत रीवा ,जबलपुर और महू से की जायेगी तत्पश्चात ये सुविधा पूरे राज्य में लागू कर दी जायेगी। सरकार के अनुसार गायों के लिए चलायी गयी ये एम्बुलेंस पूरी तरह से हाईटेक होगी जिसके लिए राज्य में जगह जगह कॉल सेंटर भी शुरू कर दिए जाएंगे। ये सेवा पूरी तरह से निशुल्क होगी। इस एम्बुलेंस में हर समय एक डॉक्टर और एक सहायक मौजूद रहेंगे ,जो सूचना मिलने पर तुरंत पहुँच कर उस जानवर का उपचार करेंगे और अधिक घायल होने की अवस्था में घायल पशु को अस्पताल में भर्ती भी किया जायेगा।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी एलान किया है कि उनकी सरकार गायों के लिए जल्द एंबुलेंस की सेवा शुरू करने वाली है. कुछ महीनों के भीतर 10 ज़िलों में योजना शुरू की जाएगी।
उत्तरप्रदेश में भी ऐसी ही सुविधा ” गौ वंश चिकित्सा मोबाइल वैन्स ” की शुरुआत की जा चुकी है।
कुछ अन्य राज्य सरकारें भी गायों और मवेशियों के लिए ऐसी सुविधायें मुहैया कराने की पहल कर रही हैं और उनकी ये पहल निश्चित रूप से सराहनीय भी है ।
अब जरा नज़र इंसानी स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी डाल लें । ताज़ा वाक्या कल का ही है । मध्य प्रदेश के कटनी जिले में लचर चिकत्सीय सुविधाओं का भयानक मंज़र देखने को मिला और इसका खामियाजा भुगतना पड़ा एक माँ को। मध्य प्रदेश के कटनी जिले के एक छोटे से बीरमनी गाँव की ” बीना” को अचानक प्रसव पीड़ा होने लगी जिसकी वजह से उसके पति ने तुरंत एम्बुलेंस को फोन किया ,पर कई फ़ोन करने के बाद भी वहां के किसी भी कर्मचारी ने फ़ोन तक नहीं उठाया। अत्यधिक प्रसव पीड़ा होने के 3 घंटे के बाद भी जब कोई एम्बुलेंस नहीं आयी तो बीना ने खुद हेल्थ सेंटर तक पैदल चलना शुरू किया और प्रसव पीड़ा के बावजूद भी लगभग 20 किमी. तक चलने के बाद जब बीना की दर्द सहने की क्षमता खत्म हो गयी तो बीना का सड़क में ही प्रसव हो गया पर प्रसव होते ही उसकी बच्ची की ज़मीन में गिर कर मौत हो गयी।
कितना दर्दनाक मंजर होगा उस माँ के लिए जिसे इतना शारीरिक दर्द सहने के बाद भी अपनी बेटी की जन्म होते ही मौत का दुःख झेलना पड़ा।
सरकार की नाकामयाबी और अस्पताल प्रशासन की मक्कारी का भुगतान एक माँ को अपनी बेटी की जान गँवा कर करना पड़ा। इस राज्य में ये घटना तब हुई जबकि प्रदेश सरकार ने राज्य में गर्भवती महिलाओं के लिए जननी एक्सप्रेस (विशेष एम्बुलेंस योजना) और जननी सुरक्षा जैसी योजनाएं चला रखी हैं।
इस घटना के बाद चीफ हेल्थ एंड मेडिकल ऑफिसर अशोक अवधिया ने ये कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया कि जब ये घटना हुई तो उस समय कोई भी एम्बुलेंस मौके पर मौजूद नहीं थी जिस वजह से पीड़िता को एम्बुलेंस मुहैया नहीं करा पाए।ये उस राज्य की ही घटना है जहाँ पिछले ही दिनों जानवरों के लिए ”हाईटेक एम्बुलेंस सेवा” की शुरूआत की गयी है।
ये हालात सिर्फ एक राज्य के नहीं हैं बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं जहां एम्बुलेंस या शव वाहन के अभाव में इंसान को शव कंधे पर कई किलोमीटर तक ढोकर ले जाना पड़ा।
पिछले ही साल उड़ीसा के ‘दाना मांझी’ को कोई भी वाहन न मिलने की वजह से अपनी पत्नी के शव को 10 किमी. तक कंधे पर ले जाना पड़ा।
सबसे संवेदनशील मामला महाराष्ट्र से सामने आया जब 9 साल के बच्चे की कुँए में गिरकर मौत हो गयी। उसकी मौत के कई घंटों के बाद भी जब कोई एम्बुलेंस नहीं पहुंची तो उसके मजबूर पिता ने खुद उसके शव को बाइक पर लादकर पोस्मार्टम के लिए अस्पताल पहुंचाया। पोस्मार्टम के बाद भी वापस शव को घर पर ले जाने तक के लिए अस्पताल प्रशासन ने एम्बुलेंस देने से साफ़ इंकार कर दिया। मजबूरन उसके पिता को अपने बेटे के शव को एक प्लास्टिक में बांध कर वापस बाइक से ही घर लाना पड़ा।
ज़रा सोच कर देखिये कि क्या बीती होगी उस बाप पर जिसने अपने बेटे के शव को ढोया था ,क्या बीती होगी उस पति पर जिसको इतनी उम्र होने के बाद भी अपनी पत्नी के शव को 10 किमी. तक लादकर चलना पड़ा और हाल का मंजर तो उससे भी ज़्यादा दर्दनाक था जहां प्रसव पीड़ा के साथ 20 किमी. तक पैदल चलने के बाद उस महिला का सड़क पर ही प्रसव हो गया और उसकी बेटी की ज़मीन पर गिरकर मौत हो गयी।
जानवरों के लिए राज्य सरकारों द्वारा शुरू की जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की हम खिलाफ़त नहीं कर रहे लेकिन राज्य सरकारों को इंसानी स्वास्थ्य सुविधाओं की ज़मीनी हकीकत जानने की भी पहल करनी चाहिए। उम्मीद करते हैं कि राज्य सरकारें अपने राज्यों में घट रहीं इन घटनाओं की सनद लेंगी और जानवरों के साथ-साथ इंसानी स्वास्थ्य सुविधाओं को भी बेहतर बनाने का प्रयास करेंगी ताकि फिर किसी ‘बीना’ को अपनी बच्ची को ना खोना पड़े, फिर कोई ‘दाना माझी’ सिर पर लाश ढोता हुआ ना दिखे ।