उत्तराखंड, 19 मार्च 2021
कुंभनगरी में कल्पवास के लिए पहुंचे संन्यासियों और नागा साधुओं की कठिन जीवनशैली को देख श्रद्धालु हैरान रह जाते हैं। संन्यासियों की इस जीव शैली का आधार अखाड़ों का अनुशासन है। अखाड़ों का कानून इतना सख्त है कि एक छोटी सी गलती पर भी संन्यासी को गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकियां लगाने का दंड सुनाया जाता है। यदि संन्यासी पर कोई बड़ा आरोप सिद्ध होता है अखाड़े की अदालत निष्कासन जैसे बड़े निर्णय भी लेती है। महाकुंभ के साथ अखाड़ों का इतिहास भी सदियों पुराना है। शुरुआत में केवल चार अखाड़े थे। बाद में विचारों में भिन्नता के चलते अखाड़ों का बंटवारा हो गया।
परंपरा के अनुसार शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। दीक्षा लेने के बाद संन्यासी को अखाड़े के नियम और कानून का अनिवार्य रूप से पालन करना पड़ता है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमंहत हरिगिरि ने बताया कि अखाड़ों में छोटे दोष पर दंड का प्रावधान है। गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने की सजा सुनाई जाती है।
दंड को पूरा कराने के साथ दोषी संन्यासी के साथ में कोतवाल भी भेजा जाता है। गंगा में डुबकी लगाने के बाद संन्यासी भीगे कपड़ों में ही देवस्थान पर वापस आकर क्षमा याचना करता है। इसके बाद पुजारी संन्यासी का प्रसाद देकर दोषमुक्त करता है। श्रीमहंत हरिगिरि ने बताया गंभीर मामलों में अखाड़े की अदालत सीधा निष्कासन का निर्णय लेती है। दोषी संन्यासी के अखाड़े से निष्कासन के बाद इनपर भारतीय दंड संहिता की धाराएं लागू होती है।
इन मामलों में अखाड़े अदालत करती है निर्णय
1. दो संन्यासियों की लड़ाई और आपसी संघर्ष।
2. संन्यासी के विवाह, हत्या और अन्य गंभीर आरोप लगना।
3. छावनी के भीतर से चोरी करते हुए पकड़े जाना।
4. देवस्थान को अपवित्र करना या वर्जित स्थान पर प्रवेश करना।
5. यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करना।
6. अखाड़े के मंच पर किसी अपात्र के चढ़ना।
दीक्षा लेने वाले संन्यासियों को अखाड़े का कानून मानने की शपथ दिलाई जाती है। संन्यासी को जीवनभर इन नियम कानून पर चलना होता है। नियम कानून के उल्लंघन पर दंड या निष्कासन की कार्रवाई की जाती है।