गुजरात विधानसभा चुनाव का अभी तो औपचारिक ऐलान तो नहीं हुआ, मगर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। बीजेपी जहां अपनी सत्ता को बरकरार रखने में जुटी हुई है, तो कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए बेकरार है। इसके साथ ही क्षेत्रीय पार्टियां भी राज्य में चुनाव लड़ने के लिए कमर कस चुकी हैं। हालांकि राजनीतिक जानकार मानते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां यदि स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ती हैं, तो बीजेपी विरोधी वोट बांटकर वो कांग्रेस की जीत की उम्मीदों पर पानी फेर सकती हैं।
चुनाव में महज दो महीने बचे हुए हैं। राज्य की सत्ता में बीजेपी 19 साल से काबिज है। पिछले दो दशक में राज्य में पहली बार ऐसे राजनीतिक हालात बने हैं, जिनके जरिए कांग्रेस को अपनी वापसी की उम्मीद दिख रही है।
गुजरात चुनाव में एनसीपी, जेडीयू, गुजरात परिवर्तन पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दल कई सीटों पर हाथ आजमाते रहे हैं। ये पार्टियां सीटें भले न जीत पाएं, लेकिन इन्हें मिले वोट चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। पिछले चुनाव में गुजरात परिवर्तन पार्टी ने 3.63 फीसदी और बहुजन समाज पार्टी ने 1.25 फीसदी वोट हासिल किए थे। वहीं जेडीयू को महज 0.67 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
वाघेला ने तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद-
कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेरने की तैयारी उसके वरिष्ठ नेता रहे शंकर सिंह वाघेला ने भी कर ली है। पिछले महीने कांग्रेस के खिलाफ विद्रोह करने वाले शंकर सिंह वाघेला के बारे में माना जा रहा था कि वे बीजेपी ज्वाइन करेंगे। मगर वाघेला ने बीजेपी ज्वाइन करने के बजाए तीसरा मोर्चा बनाकर राज्य के चुनाव में उतरने का मन बना लिया है। वाघेला ने इस तीसरे मोर्चे का नाम “जन विकल्प” दिया है। उन्होंने कहा कि, ‘लोग बीजेपी और कांग्रेस से ऊब गए हैं और एक विकल्प के लिए बेताब हैं।’
बीजेपी नेताओं की मौजूदगी में दिया था इस्तीफा-
गौरतलब है कि शंकर सिंह वाघेला जब कांग्रेस से इस्तीफा दे रहे थे, उस समय राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल और कई वरिष्ठ बीजेपी नेता मौजूद थे। बीजेपी नेताओं की उपस्थिति से इस बात का संकेत मिला था कि वाघेला बीजेपी में वापसी कर सकते हैं।
कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को फायदा-
ऐसा नहीं है कि वघेला बीजेपी में शामिल नहीं हो सकते थे। मगर बीजेपी में उनका शामिल न होना भी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। बीजेपी के विरोधी वोटर वो कांग्रेस के खेमे में जाते हैं। वाघेला उनके लिए एक विकल्प बनेंगे। ऐसे में इसका फायदा सीधे-सीधे बीजेपी को ही हासिल होगा।
‘आप’ की दस्तक-
गुजरात की जमीन पर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अपनी किस्मत अजमाने उतरेगी। केजरीवाल ने पटेल आंदोलन और ऊना कांड के बाद राज्य का दौरा किया था और विशाल रैलियां आयोजित की थी। केजरीवाल ने राज्य में नारा दिया है कि ‘गुजरात का संकल्प, आप ही खरा विकल्प’। जाहिर तौर पर केजरीवाल की पार्टी की नजर भी उन्हीं वोटों पर है, जो बीजेपी से फिलहाल नाराज हैं यानी आप की दस्तक कांग्रेस का गेम बिगाड़ने के लिए तैयार है।
एनसीपी, शिवसेना और बीएसपी भी उतरेंगी मैदान में-
राज्य में एनसीपी के दो और जेडीयू के एक विधायक हैं। इस बार भी विधानसभा चुनाव में एनसीपी और जेडीयू मैदान में उतरेंगी। इसके साथ ही बीएसपी और शिवसेना भी चुनावी तैयारियां करने लगी हैं। इस तरह बीजेपी से नाराज मतदाताओं का बिखराव होगा और इसका सीधा फायदा कांग्रेस की बजाए बीजेपी को इसका फायदा हासिल होगा।
एनसीपी से अलग होना कांग्रेस को पड़ा महंगा-
एनसीपी की स्थापना 1999 में हुई और पार्टी ने गुजरात में 2002 में 1.71 फीसदी, 2007 में 1.65 फीसदी वोट मिले और पार्टी के 3 विधायक जीतकर आए। इसके बाद 2012 विधानसभा चुनाव में एनसीपी की परफोर्मेंस में गिरावट आई, मगर उसे महज 0.95 फीसदी वोट मिला। इस चुनाव में एनसीपी को 2 सीटें मिलीं। आंकड़ों से साफ है कि 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में एनसीपी खासी कमजोर है। लेकिन, पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की कोशिश करती है। कांग्रेस गुजरात की सत्ता से 20 साल से बाहर है, ऐसे में यदि एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है, तो मुमकिन है पार्टी के वोट शेयर और सीटों में कुछ बढ़ोतरी हो जाए। मगर एनसीपी और कांग्रेस की राह राज्य में जुदा हैं।