देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्यनाथ विराजमान हैं। राज्य के सिंहासन की बागडोर लिए हुए योगी को 6 महीने होने जा रहे हैं। योगी के सामने पहली अग्निपरिक्षा गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीट को बरकरार रखने की है, जबकि विपक्ष ने उन्हें घेराबंदी करने की पूरी तैयारी कर रखी है। ऐसे में अब देखना यह होगा कि योगी किस तरह से विपक्ष की रणनीति को भेदकर बीजेपी की जीत को बरकरार रखते हैं?
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और दोनों डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा सहित स्वतंत्र सिंह देव MLC के लिए निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। ऐसे में योगी की गोरखपुर और मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट खाली हो गई हैं, जहां चुनाव आयोग जल्द ही उपचुनाव के लिए फरमान जारी कर सकता है।
दरअसल गोरखपुर और फूलपुर के गणित को यदि देखा-परखा जाए, तो दोनों संसदीय क्षेत्रों में बड़ी दिलचस्प लड़ाई रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी को इन सीटों पर सभी विपक्षी दलों को मिले कुल वोटों से भी ज्यादा वोट मिले थे।
बीजेपी के दुर्ग को बचाने की चुनौती-
गोरखपुर बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है, इसीलिए गोरखपुर को बीजेपी का दुर्ग कहा जाता है। महंत अवैद्यनाथ ने 1989 में हिंदु महासभा के टिकट पर चुनाव के जीत का जो सिलसला शुरू किया, वह आज भी जारी है। महंत अवैद्यनाथ गोरखपुर से चार बार सांसद रहे, 1970 में निर्दलीय, 1989 में हिंदु महासभा, और फिर 1991 व 1996 में बीजेपी से लोकसभा सदस्य बने हैं।
गोरखुपर में महंत अवैद्यनाथ की राजनीतिक विरासत को योगी आदित्यनाथ ने 1998 में संभाली, तो फिर पलटकर नहीं देखा। पिछले पांच बार से लगातार योगी बीजेपी के टिकट से संसद पहुंचते रहे हैं। चाहे बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग रही हो या फिर अखिलेश का समाजवाद, कभी उनके सामने चुनौती नहीं बन सका और उनके जीत का सिलसिला लगातार जारी रहा।
गोरखपुर में विपक्ष का जीतना आसान नहीं-
मार्च 2017 में योगी के यूपी के सीएम बन जाने से गोरखपुर लोकसभा सीट खाली हो गई है। ऐसे में योगी के सामने बीजेपी के दुर्ग को बचाने के लिए अग्निपरिक्षा से गुजरना होगा। गोरखपुर लोकसभा सीट 2014 के हिसाब से कुल 10,40,199 मत था, जिनमें से योगी को 5,39,127 मत हासिल हुए थे, दूसरी ओर एसपी को 2,26,344 वोट, बसपा को 1,76, 412 और कांग्रेस को 45,719 वोट मिले थे। ऐसे में योगी को अकेले ही इन तीनों पार्टी से ज्यादा वोट मिला था। इस तरह विपक्ष के लिए योगी के दुर्ग में सेंध लगाना आसान नहीं होगा।
जीत बरकरार रखना आसान नहीं-
यूपी में बीजेपी की लहर 2014 के लोकसभा या 2017 के विधानसभा चुनाव जैसी नहीं दिख रही है। ऐसे में बीजेपी को घेरने के लिए ये भी कयास लगाया जा रहा था कि एसपी और बीएसपी एक हो सकते हैं, मगर अभी तक इस तरह कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। विधानसभा चुनाव के दौरान जो बीजेपी का माहौल था, वह काफी बदल चुका है। योगी के 6 महीने के कार्यकाल को देखा जाए, तो उनके पास गिनाने को कुछ खास उपलब्धियां भी नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बीजेपी इन सीटों को किस तरह से बरकरार रख पाएगी।