जर्मनी में रविवार को संसदीय चुनाव के लिए मतदान हुआ। 16 साल सत्ता में रहने के बाद चांसलर एंजेला मर्केल की विदाई हो रही है। तीन पार्टियां मुख्य तौर पर रेस में हैं और इन तीनों में से ही किसी एक पार्टी का चीफ अगला चांसलर हो सकता है। अगर किसी एक पार्टी को मैजॉरिटी हासिल नहीं होती तो गठबंधन सरकार बनेगी। मर्केल ने चुनाव के पहले ही साफ कर दिया कि वो इस बार चांसलर की रेस में नहीं हैं।
भारत समेत हर देश की नजर जर्मनी में होने वाले इस लोकतंत्र के महायज्ञ और उसके परिणाम पर है। दावे से यह नहीं कहा जा सकता कि औपचारिक तौर पर नतीजे कब आएंगे। शायद एक या दो दिन लगें, लेकिन एग्जिट पोल से तस्वीर तकरीबन साफ हो जाती है। यहां इस चुनाव से जुड़ी अहम बातें सवाल-जवाब के रूप में खासतौर पर आपके लिए।
कैसे चुना जाता है चांसलर
हमारे देश की तरह जर्मनी में भी लोकतंत्र और संसदीय व्यवस्था है, लेकिन चांसलर चुनने का तरीका अलग है। भारत में चुनाव के पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा जरूरी नहीं है। जर्मनी में सभी दलों को चांसलर कैंडिडेट का नाम बताना जरूरी है। इसी के नाम और चेहरे पर चुनाव लड़ा जाता है। अगर उसकी पार्टी या गठबंधन चुनाव जीत जाता है तो उसे बुंडेस्टाग (संसद का निचला सदन) में स्वयं के लिए बहुमत जुटाना होता है।
कैसे बनती है सरकार
अगर किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत हासिल हो जाता है तो कोई दिक्कत नहीं। फर्ज कीजिए कि अगर ऐसा नहीं होता तो चुनाव के बाद भी हमारे देश की तर्ज पर गठबंधन या समर्थन से सरकार बनाई जा सकती है। साझा कार्यक्रम तय होता है। इसकी जानकारी संसद को देनी जरूरी है। चुनाव के बाद 30 दिन के भीतर संसद की बैठक होती है।
क्या एक पार्टी को आसानी से बहुमत मिल जाता है
आमतौर पर नहीं। दरअसल, जर्मनी ने गठबंधन सरकारों का इतिहास और वर्चस्व रहा है। लिहाजा, किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहता। मर्केल भी कोएलिशन गवर्नमेंट की ही चांसलर रहीं। चुनाव पूर्व या चुनाव के बाद हमारे देश की तर्ज पर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनते हैं। इसके बाद सरकार का गठन होता है।
क्या सरकार बनाना और चांसलर चुनना आसान है
नहीं। जाहिर सी बात है कि अगर हर पार्टी अपने चांसलर फेस के साथ मैदान में उतरेगी तो चुनाव के बाद गठबंधन में भी उसको ही चांसलर बनाना चाहेगी। इससे टकराव होना तय है। हालांकि, चुनाव पूर्व गठबंधन है तो चांसलर पहले ही तय हो जाता है। लेकिन, अगर चुनाव के बाद गठबंधन होता है तो मैच्योर डेमोक्रेसी के तहत कोएलिशन पार्टनर्स बैठते हैं। तय करते हैं कि सरकार में मंत्री कौन बनेंगे और चांसलर कौन होगा। लेकिन चांसलर के नाम पर अंतिम मुहर बुंडेस्टाग यानी संसद ही लगाती है। हर मंत्री के मामले में भी यही होता है।
चांसलर को बहुमत न मिले तो क्या होगा
यहां मामला फंसता है। संसद में चांसलर के मतदान का दूसरा दौर होता है। इसमें दूसरे कैंडिडेट का नाम भी प्रस्तावित किया जा सकता है। उसे संसद के कुल वोटों का एक चौथाई समर्थन मिलना जरूरी है। ये चुनाव के बाद 14 दिन के अंदर होना चाहिए। किसी को बहुमत मिल गया तो ठीक, नहीं तो राष्ट्रपति के पास यह अधिकार है कि वो 7 दिन के अंदर किसी को चांसलर नियुक्त कर दे। अगर विवाद है तो राष्ट्रपति 60 दिन में नए सिरे से पूरा चुनाव कराने के आदेश भी दे सकता है।
किस पार्टी या गठबंधन की सरकार बनने का अनुमान है
मुकाबला कांटे का नजर आ रहा है। कई प्री-पोल सर्वे हुए। इसमें सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) थोड़ा आगे दिखती है। मर्केल की पार्टी CDU और सहयोगी CSU भी ज्यादा दूर नहीं है। तीसरा स्थान ग्रीन पार्टी को मिल सकता है। करीब-करीब तय लगता है कि गठबंधन सरकार ही बनेगी।
कितने वोट डालते हैं मतदाता
बैलट पेपर एक ही होता है, लेकिन वोट दो डालने होते हैं। पहला- जिले का प्रतिनिधि या सांसद। यह करीब ढाई लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरा- पार्टी कैंडिडेट। 299 सदस्य सांसद बनते हैं, बाकी पार्टी प्रतिनिधि।