वाराणसी, बीएचयू के पूर्व कुलपति और वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. लालजी सिंह (70) का दिल का दौरा पड़ने के कारण रविवार की देर रात निधन हो गया। इन्होंने जहां शिक्षा-दीक्षा ली, नौकरी की वहीं से अपनी अंतिम यात्रा भी पूरी की। बीएचयू के ICU में उन्होंने अंतिम सांस ली। मौत की खबर सुनते ही उनके गांव में मातम छा गया। उनका अंतिम संस्कार सोमवार की जौनपुर स्थित पैतृक गांव कलवारी में किया जाएगा। उन्हें भारत में डीएनए फिंगर प्रिंट का जनक कहा जाता है। वह अपने पीछे पत्नी और दो पुत्र छोड़ गए। कलवारी गांव के पूर्व प्रधान स्वर्गीय नारायण सिंह के तीन पुत्रों में सबसे बड़े थे।
जानकारी के मुताबिक रविवार की शाम को अपने पैतृक निवास जौनपुर से हैदराबाद जाने के दौरान बाबतपुर एयरपोर्ट पर डॉ लालजी को हार्ट अटैक आ गया। एयरपोर्ट पर प्राथमिक उपचार के बाद चिकित्सकों ने उन्हें बीएचयू के लिए रेफर कर दिया। बीएचयू आईसीयू में इलाज के दौरान डॉ. लालजी सिंह का निधन हो गया। इस दौरान बीएचयू के वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे। बीएचयू के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि डॉ. लालजी सिंह का शव उनके गांव कलवारी ले जाया जाएगा। डा. लालजी सिंह अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक बीएचयू के कुलपति रहे।
बीएचयू से शिक्षा प्राप्त कर दुनिया अपना मुकाम हासिल करने वाले डॉ. लालजी सिंह अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। जौनपुर जिले के सदर तहसील एवं सिकरारा थाना क्षेत्र के कलवारी गांव के निवासी स्व. ठाकुर सूर्य नारायण सिंह के पुत्र थे। पांच जुलाई 1947 को डॉ. लालजी सिंह का जन्म हुआ था। वर्ष 1971 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कोलकत्ता गए। जहां पर साइंस में 1974 तक एक फेलोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद वे छह माह की फेलोशिप पर यूके गए और नौ माह बाद वापस भारत आए। जून 1987 में सीसीएमबी हैदराबाद में वैज्ञानिक पद पर कार्य करने लगे और 1998 से 2009 तक वहां के निदेशक रहे।