सावन का पहला सोमवार आज 10 जुलाई से शुरू हो गया है। आज शादीशुदा महिलाओं से लेकर कुंवारी लड़कियां भी भगवान शिव की आराधना में लगी हैं। राजधानी लखनऊ के डालीगंज स्थित मनकामेश्वर मंदिर में सुबह-सुबह भगवान शिव के दर्शन के भक्तों की भारी भीड़ लगी हुई है। मनकामेश्वर मंदिर के पुजारी राम कृष्ण तिवारी ने बताया कि सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय माह होता है। इस बार सावन के सोमवार का विशेष योग का बन रहा है। इस योग में व्रत रखने से मनचाहा फल मिलेगा। उन्होंने बताया कि इस बार सावन के महीने में पांच सोमवार हैं। ये पवित्र माह सोमवार से ही शुरू होगा और 7 अगस्त (सोमवार) को ही इसका समापन होगा। ये खास योग कई वर्षों के बाद ही बनता है।
पंडित राम कृष्णा तिवारी ने बताया कि इस बार पहला सोमवार सर्वार्थ सिद्धि योग में शुरू होगा और आखिरी सोमवार के सर्वार्थ सिद्धि योग में खत्म भी होगा। सर्वार्थ सिद्धि योग का समय़ बहुत ही शुभ माना जाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग मतलब होता है अपने आप में सिद्ध। यदि आप इस दिन कोई पूजा या हवन-यज्ञ करेंगे तो आपको काफी फायदा मिलेगा।
सावन सोमवार के व्रत की विधि-
सावन के सोमवार के दिन में एक समय भोजन करने का प्रण लेना चाहिए। भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती जी की पुष्प, धूप, दीप और जल से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान शिव को तरह-तरह के नैवेद्य अर्पित करने चाहिए जैसे दूध, जल, कंद मूल आदि। सावन के हर सोमवार को भगवान शिव को जल अवश्य चढ़ाएं। रात को जमीन पर सोएं। इस तरह से सावन के प्रथम सोमवार से शुरु करके कुल नौ या सोलह सोमवार इस व्रत का पालन करना चाहिए। नौवें या सोलहवें सोमवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए। यदि नौ या सोलह सोमवार व्रत करना संभव न हो तो केवल सावन के चार सोमवार भी व्रत किए जा सकते हैं।
सावन सोमवार की व्रत कथा-
अपने भोले स्वभाव के कारण भगवान शिव का एक नाम भोलेनाथ भी है। इसी कारण भगवान शिवजी से जुड़े व्रतों में किसी कड़े नियम का वर्णन पुराणों में नहीं है। इसके साथ ही शास्त्रों के मुताबिक सावन सोमवार व्रत में तीन पहर तक उपवास रखने के बाद एक समय भोजन करना चाहिए। सिर्फ सावन सोमवार ही नहीं अन्य शिवजी से जुड़े व्रतों में भी सूर्योदय के बाद तीन पहर (9 घंटे) तक उपवास रखना चाहिए। इसके साथ ही भगवान शिव की प्रिय वस्तुएं जैसे भांग- धतुरा आदि उनकी पूजा में अवश्य रखने का प्रयत्न करना चाहिए।
सावन में कावड़ यात्रा का महत्व-
सावन के महीने में कावड़ यात्रा का बहुत महत्व है। कावड़ यात्रा के आध्यात्मिक आशय है शिव के साथ विहार। अर्थात जो शिव तत्त्व में रमन करे वह कावड़िया। शास्त्रों में यह माना गया है कि इस यात्रा के जरिये जो शिव की आराधना कर लेता वह धन्य हो जाता है।
क्या है कावड़ यात्रा की कहानी-
कावड़ यात्रा में कावड़िये एक बांस की फट्टी से बनी इस बहंगी को फूल मालाओं, घंटी और रंग बिरंगे वस्त्रों से सजे गंगाजल से भरे पात्र को कंधे पर लटका कर किसी महातीर्थ से लोकतीर्थ से भरकर भोलेनाथ को अभिषेक करते हैं। मान्यता यह है कि सबसे पहले परशुराम भगवान ने कावड़ में जल भरकर शिवजी का अभिषेक किया था। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले इसकी शुरुआत रावण ने की थी यानि पहला कावड़िया रावण है। लोगों का मानना है की प्रभु श्री राम ने भी भगवान शिव को कावड़ चढ़ाई थी। कावड़िये के तन पर सजने वाला गेरुआ वस्त्र सात्विकता और संयम नियम का प्रतीक है।