सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर तिलवाड़ा कस्बे में 10 मीटर चौड़ीकरण सहित दो बाईपास व अन्य रुके हुए कार्य शुरू हो जाएंगे। एनएच अधिकारियों के अनुसार, आला स्तर पर निर्देश मिलते ही हाईवे चौड़ीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना में रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे अब चकाचक हो जाएगा। यहां तिलवाड़ा कस्बे में जहां 14 मीटर भूमि अधिग्रहण के बाद सड़क 10 मीटर ब्लैक टॉप होगी। साथ ही तीन किमी लंबे अगस्त्यमुनि बाईपास और 12 किमी लंबे कुंड-ल्वारा-गुप्तकाशी बाईपास का कार्य भी फिर से शुरू हो जाएगा। यहां दोनों जगहों पर पिछले लंबे समय से कार्य रुका हुआ था।
साथ हाईवे पर फाटा स्थित डोलिया मंदिर और सीतापुर में भी दो से तीन सौ मीटर के पैच पर मानकों के तहत 10 मीटर चौड़ाई और अन्य सुरक्षा कार्य हो सकेंगे। एनएच के अधिशासी अभियंता केएस असवाल ने बताया कि अभी तक लिखित में कोई आदेश नहीं आया है। लेकिन, माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड की एक समान चौड़ाई और बाईपास निर्माण का कार्य निर्विघ्न हो सकेगा।
खास यह है कि पिछले तीन वर्ष से तिलवाड़ा बाजार क्षेत्र में सड़क की चौड़ाई को लेकर चल रहा संशय भी खत्म हो गया है। यहां पर पहले 24 मीटर भूमि अधिग्रहण की बात कही गई थी। लेकिन बाद में 14 मीटर भूमि अधिग्रहण की गई, जिसके तहत अब 10 मीटर हाईवे की चौड़ाई की जाएगी। इसके लिए जरूरी कार्रवाई आला स्तर से मिलने वाले दिशा-निर्देशों के तहत होगा। उन्होंने बताया कि हाईवे पर शुरूआती 17 किमी जवाड़ी बाईपास से अगस्त्यमुनि तक मुआवजा के लिए रिवाइज प्रस्ताव भेजा गया है। साथ ही अलकनंदा नदी पर मोटर पुल के दोनों तरफ के पुश्तों के निर्माण के लिए प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे जा चुके हैं।
हेलंग-मारवाड़ी बाईपास मार्ग के निर्माण की जगी उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट के चारधाम राजमार्ग की चौड़ाई बढ़ाकर इसे दो लेन करने की मंजूरी के बाद बदरीनाथ हाईवे पर हेलंग-मारवाड़ी बाईपास मार्ग के निर्माण की उम्मीद जगी है। यहां पिछले एक वर्ष से बाईपास मार्ग का निर्माण कार्य लटका हुआ था। बाईपास मार्ग के साथ ही अब बाजपुर, बिरही, हेलंग, हनुमानचट्टी, लामबगड़ नाला, टैय्या पुल, गोविंदघाट और पांडुकेश्वर में हाईवे चौड़ीकरण कार्य गति पकड़ेगा। बदरीनाथ हाईवे धार्मिक के साथ ही सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह हाईवे चीन सीमा पर नीती और माणा घाटियों को जोड़ता है। हेलंग से जोशीमठ तक हाईवे बेहद खस्ताहालत में और संकरा है। यहां सेना के वाहनों को आवाजाही में दिक्कतें होती हैं।
हाईवे संकरा होने के कारण बार-बार जाम की स्थिति बनी रहती है। ऑलवेदर रोड परियोजना कार्य शुरू होने पर हेलंग से मारवाड़ी तक बाईपास मार्ग के निर्माण की केंद्र सरकार से मंजूरी मिली, लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया और जोशीमठ नगर को जोड़ते हुए ऑलवेदर रोड का निर्माण करने की मांग उठाई, जिसके बाद से बाईपास मार्ग का निर्माण अधर में था। अब सुप्रीम कोट के राजमार्ग की चौड़ाई बढ़ाने की मंजूरी के बाद हेलंग से मारवाड़ी तक हाईवे चौड़ीकरण और बाईपास मार्ग के निर्माण में तेजी आ जाएगी।
वहीं बाजपुर, बिरही, हेलंग और हनुमानचट्टी में चट्टानों की कटिंग का काम भी एक वर्ष से रुका हुआ था। यहां भी चारधाम यात्रा के दौरान वाहनों की आवाजाही मुश्किल से हो पाती है। अब इन जगहों पर भी हाईवे चौड़ीकरण कार्य में तेजी आने की उम्मीद है। एनएचआईडीसीएल (राष्ट्रीय राजमार्ग एवं ढांचागत विकास) के महाप्रबंधक संदीप कार्की ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद अब राजमार्ग पर उन स्थानों को चिह्नित किया जा रहा है, जहां कार्य रुका हुआ था। इस संबंध में उच्च अधिकारियों के साथ बैठकें चल रही हैं। वहीं बीआरओ के कमांडर कर्नल मनीष कपिल ने बताया कि निश्चित रूप से हाईवे चौड़ीकरण कार्य में अब सहूलियत हो जाएगी। अधिकतर हिस्सों में ऑलवेदर रोड परियोजना कार्य पूर्ण हो चुका है।
विकास के साथ पर्यावरण का रखा जाए ध्यान : जंगली
अंग्रेजों ने तो वर्षों पहले समझ लिया था चारधाम मार्ग क्षेत्र का महत्व: प्रो. रावत
प्रसिद्ध इतिहासकार और पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत का कहना है कि चारधाम राजमार्ग केवल भू-राजनीतिक कारणों से ही नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी देश के लिए बेहद अहम है। प्रो. रावत का कहना है कि देश की आजादी से पहले अंग्रेजों ने न केवल इसका महत्व समझा बल्कि इस क्षेत्र को खासी तवज्जो भी दी थी। सुप्रीम कोर्ट की ओर से चारधाम राजमार्ग को मंजूरी देने के फैसले को सही बताते हुए प्रो. रावत ने अमर उजाला से बातचीत में कहा कि 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के महत्व को अच्छी तरह से समझ लिया था।
तब रूस साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसी रास्ते भारत में दाखिल होना चाहता था लेकिन उससे पहले ही वर्ष 1854 में यूरोप में क्रीमिया का युद्ध लड़ा गया जो दो साल तक चला और इसमें इंग्लैंड, तुर्की और फ्रांस ने मिलकर रूस को हरा दिया। प्रो. रावत ने बताया कि तब रूस के भारत में प्रवेश के लिए काला सागर और भूमध्य सागर से होकर जाने वाले परंपरागत मार्गों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके चलते रूस लिपुलेख के रास्ते भारत में दाखिल होना चाहता था। इस कारण ब्रिटेन ने इस क्षेत्र के साथ-साथ समूचे उत्तराखंड को विशेष महत्व दिया था। प्रो. रावत कहते हैं कि वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ लेकिन उसके बाद भी तत्कालीन सरकारों ने चारधाम यात्रा मार्ग को तवज्जो नहीं दी।
पश्चिमी तिब्बत के ढोलिंग मठ में थी बदरीनाथ मंदिर की शाखा
प्रो. अजय रावत बताते हैं कि ब्रिटिश शासन से पहले भारतीय शासक भी सीमावर्ती गांवों के महत्व को खूब समझते थे। उन्होंने बताया कि यही कारण था कि तब तत्कालीन शासकों ने बदरीनाथ मंदिर की एक शाखा पश्चिमी तिब्बत क्षेत्र थोलिंग मठ में भी स्थापित की थी। बदरीनाथ के प्राचीन रिकॉर्ड भी इस बाद की पुष्टि करते हैं।