आपने आजतक कई RO purifier के विज्ञापन देखे होंगे. सब पानी से अशुद्धियाँ निकालने का और साफ़ पानी देने का दावा करते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि जिस पानी को हम शुद्ध समझकर पी रहे हैं वो हमारे लिए गंदे पानी से भी ज्यादा ख़तरनाक है.
जी हाँ, WHO ने भी इस बात को प्रमाणित किया है. WHO ने इस बारे में एक चेतावनी भी जारी की है. हम में सभी जानते हैं कि Reverse Osmosis (RO) प्रोसेस से पानी की अशुद्धियाँ निकल जाती हैं लेकिन ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि इस प्रोसेस में अशुद्धियों के साथ-साथ 92-95% हमारे शरीर के लिए आवश्यक खनिज लवण जैसे कैल्शियम और मैग्नीशियम भी निकल जाते हैं. जिनकी कमी से आगे चलकर हमे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
ऐसे करती हैं RO कम्पनियां ब्रेनवाश
आर ओ बेचने वाली कम्पनियाँ प्रचार के बल पर पढ़े लिखे लोगों एवं अनपढ़ जनता का ब्रेनवाश करके बीमारी का भय दिखाकर उनको आर ओ का पानी पीने को मजबूर करती हैं।इस काम में कम्पनियाँ डॉक्टरों का भी समर्थन दिखाती हैं। आर ओ कंपनियों के एजेंट आपके घर के पानी को जांचकर बताते हैं कि आपका पानी पीने योग्य नहीं है अशुद्ध और जहरीला है। आर ओ कम्पनियाँ कहती हैं कि पानी का टी डी एस ज्यादा है।
जानिये क्या है TDS
TDS मतलब Total Dissolved solid. अर्थात जल में घुले कणों की संख्या को टी डी एस कहते है।
खनिज लवण ( जैसे सोडियम पोटासियम कैल्सियम मेगनीसियम मैंगनीज आयरन आयोडीन क्लोराइड बाईकार्बोनेट ), कार्बनिक पदार्थ , अकार्बनिक पदार्थ , सूक्ष्म जीव(microorganisms ) आदि को सम्मिलित रूप से टी डी एस कहते है।
TDS जल की शुद्धता का पैमाना नहीं है??? ऐसा मीटर जो टी डी एस मापता है पानी की शुद्धता का सही माप नहीं कर सकता है। क्योंकि यह केवल जल में घुले कणों की संख्या मापता है।
पानी में शरीर के लिए लाभदायक कणो की संख्या ज्यादा होने पर भी पीने योग्य शुद्ध जल का टी डी एस ज्यादा होगा ।
वहीं दूसरी तरफ प्रदूषित न पीने योग्य जल में हानिकारक कणों ( केमिकल पेस्टीसाइड) की संख्या कम होने पर भी जल का टी डी एस कम होगा।
यूरोप के विकसित देशों में नल के पानी का टी डी एस 200 से 700 के बीच पाया जाता है। वहां की जनता इस टी डी एस को कम करने के उपाय सोचकर अपना समय एवं धन व्यर्थ नहीं करना चाहती है।
टी डी एस का महत्त्व
इन्ही घुले हुए कणों के कारण पानी स्वादिष्ट बनता है। अमेरिका ने पीने योग्य पानी का मानक 500 टी डी एस तय किया है।
ये हैं आर ओ फ़िल्टर पानी पीने के नुकसान
आर ओ फ़िल्टर जल में प्राकृतिक रूप से मौजूद शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्वों को भी छान देता है। जिसके परिणाम स्वरुप शरीर में खनिज तत्वों की कमी हो जाती है ।जिससे शरीर की हड्डी कमजोर हो जाती है, मांसपेशियों में ऐंठन होती है।
आर ओ पानी पीना यानी कैंसर को बढ़ावा
आर ओ फ़िल्टर प्लास्टिक का बना होता है । तेज प्रेशर से पानी को फ़िल्टर से छाना जाता है जिससे कुछ मात्रा में प्लास्टिक का अंश भी पानी में घुल जाता है जिससे कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
आर ओ पानी का लगातार सेवन हार्ट अटैक का कारण
अमेरिका में 6 वर्षो तक 20000 स्वस्थ व्यक्तियों जिनकी उम्र 38 से 100 वर्ष के बीच थी पर एक शोध किया गया जो की 1 मई 2002 के अमेरिकन जर्नल ऑफ़ एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक लगातार आर ओ पानी पीने से शरीर में कैल्सियम और मैगनीसियम की कमी हो जाती है जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
आर ओ पानी एसिडिक ( अम्लीय) होता है
आपको जानकर हैरानी होगी कि आपका मनपसंद चहेता आर ओ का जल एसिडिक होता है। शुद्ध प्राकृतिक जल का pH 7 होता है। आर ओ का पानी 5 से 6 pH का होता है। 5pH का पानी 7 pH वाले जल से 100 गुना अधिक एसिडिक होता है।
आर ओ पानी पीने से शरीर के खून का pH बदल जाता है।
एक रिसर्च के अनुसार एसिडिक पानी को न्यूट्रल करने के लिए शरीर को अधिक कार्य करना पड़ता है। जिसके एवज में शरीर से कैल्सियम और मैगनिसियम जो की हड्डी और दांत में रहता है धीरे धीरे क्षरण होकर कम होने लगता है।
डॉ ओटो वारबुर्ग 1931 जिन्होंने कैंसर के कारणों की खोज की और नोबल पुरस्कार प्राप्त किया ,के अनुसार शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी के कारण कैंसर होता है। और यह ऑक्सीजन की कमी शरीर में अम्लीयता एसिडोसिस बढ़ने के कारण होती है।
विश्व स्वास्थ्य गठन WHO की स्टडी के अनुसार कम खनिज युक्त पानी पीने से पेशाब की मात्रा 20% प्रतिशत बढ़ जाती है जिससे शरीर से सोडियम पोटासियम कैल्सियम क्लोराइड मैगनीसियम आयन अधिक मात्रा में निकल जाते है।
आर ओ पानी का सही एवं वास्तविक रूप से उपयोग केवल उद्योग धंधों फैक्ट्री प्रयोगशालाओं में शोध कार्य आदि के लिए होता है।
इसके अलावा आर ओ वाटर बनाने में पानी की काफी बर्बादी होती है . एक लीटर आर ओ पानी बनाने में 7 लीटर पानी बर्बाद होता है। आर ओ मशीन से एक पाइप निकली रहती है जिससे पानी लगातार बहकर नाली में जाता रहता है। जिससे पानी का भूजल स्तर गिरता जायेगा। जिसके लिए हमारी आने वाली पीढ़ियाँ माफ़ नहीं करेंगी।