नेपाल, चीन अपनी विस्तारवादी नीति पर कायम है। ड्रैगन ने इस रवैए का नेपाल में जमकर विरोध हुआ। प्रदर्शनकारियों ने ‘चीन हमारी जमीन लौटाओ’ और ‘गो बैक चाइना’ के नारे लगाए।
दरअसल, नेपाल का दावा है कि चीन ने हुमला जिले में अवैध कब्जा जमा लिया है। प्रदर्शनकारियों ने चीन पर नेपाल के आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाया। काठमांडू के महितीघर मंडला में हुए विरोध का नेतृत्व लोकतांत्रिक युवा मंच (LYU) ने किया, जिसमें करीब 200 लोग शामिल हुए।
चीन ने नेपाल में बनाई इमारतें
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने नेपाल के हुमला में 12-15 इमारतों का निर्माण किया है। स्थानीय लोग कब्जे को हटाने और मामले की जांच की मांग कर रहे हैं। चीन स्थानीय लोगों को वहां जाने से रोक रहा है। केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली नेपाल की पिछली सरकार ने चीन के कब्जे को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था कि काठमांडू और बीजिंग के बीच कोई सीमा विवाद नहीं है।
प्रधानमंत्री ने बनाई जांच कमेटी
हाल ही में प्रधानमंत्री शेर बहादुर थापा ने मामले की जांच के लिए 5 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी हुमला में नामखा नगरपालिका के लिमी लपचा से हिलसा तक नेपाल-चीन बॉर्डर विवाद की जांच करेगी।
इस विवाद की शुरुआत पिछले साल हुई, जब लोकल विलेज काउंसिल के प्रेसिडेंट विष्णु बहादुर लामा ने इस इलाके का दौरा किया था। उन्होंने चीनी सेना की बनाई हुई इमारतों को देखा। ये इमारतें सीमा से 2 किलोमीटर अंदर नेपाल के इलाके में बनी हैं। हुमला के मुख्य जिला अधिकारी (CDO) दालबहादुर हमाल ने भी इस मामले की जांच कराई। जांच में चीनी कब्जे की बात सही साबित हुई।
बॉर्डर के पिलर्स की अदला- बदली
मामले की जांच के लिए पूर्व प्रधानमंत्री ने भी 19 सदस्यीय टीम बनाई थी। टीम में शामिल लोकल नेताओं और पत्रकारों ने कब्जे वाले इलाके का दौरा किया। यह दौरा 11 दिनों तक चला। टीम ने देखा कि चीन ने नेपाल के अंदर इमारती ढांचे का निर्माण किया है। बॉर्डर के पिलर संख्या 11 और 12 को भी बदल दिया गया है। इस वजह से नेपाल के लोग अपने इलाके में ही नहीं जा पा रहे हैं।