देश के अलग-अलग जगहों पर बैसाखी को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।जैसे- असम में बिहू, बंगाल में नवा वर्षा, केरल में पूरम विशु के नाम से लोग इसे मनाते हैं। पर क्या आपको यह पता है कि इतने बड़े स्तर पर देशभर में बैसाखी आखिर क्यों मनाते हैं लोग।
बैसाखी, दरअसल सिख धर्म की स्थापना और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इस महीने खरीफ फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है और पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत भी हो जाती है। ऐसे में किसान खरीफ की फसल पकने की खुशी में यह त्यौहार मनाते हैं।
13 अप्रैल 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके अलावा इस दिन को मनाना शुरू किया गया था। आज ही के दिन पंजाबी नये साल की शुरुआत भी होती है।
इसके साथ ही यह दिन मौसम में बदलाव का प्रतीक माना जाता है। अप्रैल के महीने में सर्दी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है। मौसम के कुदरती बदलाव के कारण भी इस त्योहार को मनाया जाता है। व्यापारियों के लिए भी यह दिन बहुत खास होता है।
इसलिए इतना खास है यह त्योहार-
बैसाखी का त्योहार समृद्धि और खुशियों का त्योहार भी माना जाता है। यह इसलिए मनाया जाता है क्योंकि पहली बैसाखी को पंजाब में नए वर्ष के शुरुआत, फसलों के पकने और कटने की किसानों की खुशियां हैं। इस समय खेतों में रबी की फसल लहलहाती है और किसान काफी खुश रहते हैं। इस त्योहार को पंजाब के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत में भी मनाया जाता है। केरल में इस त्योहार को विशु कहते हैं। इसी तरह बंगाल में नब वर्ष, असम में रोंगाली बिहू, वहीं तमिल में पुथंडू और बिहार में इसे वैषाख कहा जाता है।