ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खां ने काफी सराहा है। रामपुर में आज आजम खां ने कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान होना चाहिए।
समाजवादी पार्टी के फायरब्रांड नेता आजम खां ने कहा कि तीन तलाक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, उसका सभी को सम्मान करना चाहिए। देश की शीर्ष अदालत का बड़ा फैसला स्वागत योग्य है।
रामपुर सदर से विधायक आजम खां ने कहा है कि इस मामले पर संसद में जो भी कानून बने वह उलेमाओं की राय से बने। उन्होंने साफ कहा है कि राजनीतिक दल किसी धर्म में तब्दीली नहीं कर सकते हैं।
पांच जजों की बेंच ने सुनाया फैसला-
- चीफ जस्टिस जेएस खेहर
- जस्टिस कुरियन जोसेफ
- जस्टिस आरएफ नरिमन
- जस्टिस यूयू ललित
- जस्टिस अब्दुल नज़ीर
इस मुद्दे में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक का पिछले 1400 साल से जारी है। यदि राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं।
वहीं इस मुद्दे पर मुकुल रोहतगी ने दलील पेश की थी कि यदि सऊदी अरब, ईरान, इराक, लीबिया, मिस्र और सूडान जैसे देश तीन तलाक जैसे कानून को बंद कर चुके है तो हम क्यों नहीं करते।
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा था, ‘अगर अदालत तुरंत तलाक के तरीके को निरस्त कर देती है तो हम लोगों को अलग-थलग नहीं छोड़ेंगे। हम मुस्लिम समुदाय के बीच शादी और तलाक के नियमन के लिए एक कानून लाएंगे।’
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में तीन तलाक को अब खत्म कर दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे अंसवैधानिक बताया है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बीच जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस यूयू ललित तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। मगर वहीं इस मामले में चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर इसके पक्ष में नहीं थे।
जानें क्या है मामला-
साल 2016 मार्च में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी।
बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकी रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है।