अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई हुई। इस सुनवाई में कोर्ट ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ और गवाहियों के अनुवाद के लिए 12 हफ्तों का वक्त दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को करने का फैसला किया है। कोर्ट ने साफ किया कि किसी भी पार्टी को अब आगे और मोहलत नहीं दी जाएगी और ना ही केस स्थगित किया जायेगा।
मामले के एक पक्षकार रामलला विराजमान की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चार हफ्तों का वक्त दिया। बता दें कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर सुन्नी वक्त बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेज़ों को अनुवाद कराने की मांग की है।
शिया बोर्ड ने विवाद में पक्षकार होने का दावा किया है। शिया वक्फ बोर्ड ने 70 साल बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी करार दिया गया था।
यूपी सरकार की तरफ से एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सबसे पहले पक्ष रखते हुए मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी करने की मांग की। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस बात पर आपत्ति जताई कि उचित प्रक्रिया के बिना यह सुनवाई की जा रही है।
मामले में एक वादी सुब्रमण्यम स्वामी ने विवादित स्थल पर लोगों को पूजा करने का अधिकार देने की मांग की। इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने तमाम वादियों को सबसे पहले यह स्पष्ट करने को कहा कि कौन किसकी तरफ से पक्षकार है।
इस पर सुन्नी बोर्ड की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले के कई पक्षकारों का निधन हो चुका है, ऐसे में उन्हें बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज कई भाषाओं में हैं, ऐसे में पहले उनका अनुवाद कराया जाना चाहिए।