अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई शुरू हो गई। शिया बोर्ड ने विवाद में पक्षकार होने का दावा किया है। शिया वक्फ बोर्ड ने 70 साल बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी करार दिया गया था।
यूपी सरकार की तरफ से एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सबसे पहले पक्ष रखते हुए मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी करने की मांग की। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस बात पर आपत्ति जताई कि उचित प्रक्रिया के बिना यह सुनवाई की जा रही है।
मामले में एक वादी सुब्रमण्यम स्वामी ने विवादित स्थल पर लोगों को पूजा करने का अधिकार देने की मांग की। इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने तमाम वादियों को सबसे पहले यह स्पष्ट करने को कहा कि कौन किसकी तरफ से पक्षकार है।
इस पर सुन्नी बोर्ड की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले के कई पक्षकारों का निधन हो चुका है, ऐसे में उन्हें बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज कई भाषाओं में हैं, ऐसे में पहले उनका अनुवाद कराया जाना चाहिए।
बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित की है। यह अयोध्या भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिकाओं और विवादित भूमि के मालिकाना हक पर फैसला सुनाने के लिए सुनवाई करेगी।
शिया वक्फ बोर्ड ने अपनी अर्जी में माना है कि मीर बकी ने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था। पहली बार किसी मुस्लिम संगठन ने आधिकारिक तौर पर माना कि विवादित स्थल पर राम मंदिर था।
गौरतलब है कि मंगलवार को शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। शिया बोर्ड का सुझाव है कि विवादित जगह पर राम मंदिर बनाया जाना चाहिए।
इस मामले में रामजन्म भूमि मंदिर ट्रस्ट और सुन्नी वक्फ बोर्ड पक्षकार हैं, क्योंकि विवादित स्थल पर अधिकार को लेकर शिया बोर्ड 1946 में सुन्नी बोर्ड से केस हार चुका है।
आपको बताये कि हलफनामे में कहा गया है कि अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थल से एक उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है। शिया वक्फ बोर्ड ने हलफनामे में कहा कि दोनों धर्मस्थलों के बीच की निकटता से बचा जाना चाहिए, क्योंकि दोनों ही के द्वारा लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल एक-दूसरे के धार्मिक कार्यों में बाधा की वजह बन सकता है।
शिया वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि इस मामले से सुन्नी वक्फ बोर्ड का कोई संबंध नहीं है, क्योंकि मस्जिद एक शिया संपत्ति थी। इसलिए मामले के शांतिपूर्ण निपटारे के लिए इसके अन्य पक्षों से बातचीत का हक केवल शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश को है।