हिन्दुस्तान की मिटटी ने कई ऐसे जवानों को जन्म दिया जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए हँसते हँसते अपने प्राण निछावर कर दिए थे। आज़ादी के हवन में भारत माँ के कई सपूतों ने अपनी आहुति दे दी थी। पर आज़ादी के आंदोलन में सबसे कम उम्र का वो क्रांतिकारी आज भी सबके ज़हन में हैं जिसने मात्र 18 साल की उम्र में ही देश के लिए अपने प्राण कुर्बान कर दिए थे।
जी हाँ, आज हम आपको बताने जा रहें हैं देश के सबसे कम उम्र के शहीद क्रांतिकारी ‘खुदीराम बोस’ के बारे में जिसे जब फाँसी दी गयी थी तो ना ही उसकी आँखों में मौत का खौफ था और ना ही किसी बात का पछतावा। फाँसी के लिए भी जाते समय इस क्रन्तिकारी के हाथ में ”श्रीमद्भगवतगीता” थी और होठों पर देशभक्ति के ही गीत थे।
साल 1908 में 11 अगस्त को आज के ही दिन इस महान युवा क्रांतिकारी को फाँसी दी गयी थी। इनके बलिदान ने देश के वरिष्ठ क्रांतिकारियों के अलावा युवा क्रांतिकारियों में देशभक्ति की ऐसी आग भड़काई थी कि उस आग के ज्वालामुखी में जल कर पूरा अंग्रेजी साम्राज्य ही जलकर ख़ाक हो गया था।देश के सबसे युवा शहीद क्रन्तिकारी खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था। इनकी माता लक्ष्मीप्रिया देवी ने इन्हे बड़े ही लाड प्यार से पाला था।
पर जैस-जैसे खुदीराम बड़े हुए उनमे देशभक्ति की भावना और तीव्र हो गयी थी। अपने पिता को बाकी क्रांतिकारियों के साथ आज़ादी के लिए संघर्ष करता देखकर खुदीराम ने भी आज़ादी की जंग में शामिल होने का निश्चय किया। इसलिए खुदीराम ने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वेदशी आंदोलन में कूद पड़े। ये वो दौर था जब देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हर जगह आंदोलन हो रहे थे।
1905 में जब बंगाल का विभाजन हुआ तब खुदीराम ने इसके विरोध में चल रहे आंदोलन में एक अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद तो जैसे इनमें आज़ादी की क्रांति जाग गयी और इन्होने देश में वन्देमातरम के पेंफ्लेट वितरित करने शुरू कर दिए।
इसके कारण इन्हे कई बार अंग्रेज सरकार की प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी। परन्तु इस आज़ादी के दीवाने के हौसले कम नहीं हुए। साल 1907 , की 6 दिसंबर की रात में बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर कुछ क्रांतिकारियों ने बम विस्फोट किया था। इस बम ब्लास्ट में खुदीराम का नाम मुख्य रूप से सामने आया था। पर ठोस सबूतों के अभाव में अंग्रेजी सरकार को इन्हे छोड़ना पड़ा था।
इसके बाद तो खुदीराम के इरादे और भी अडिग हो गए थे। पर खुदीराम जानते थे कि इन छोट-छोटे धमाकों से अंग्रेजी सरकार की नींद नहीं टूटेगी। पूरी अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से हिलाने के लिए अब कुछ बड़ा धमाका करना पड़ेगा।
इसलिए खुदीराम ने उस समय के सबसे क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने का फैसला किया। किंग्सफोर्ड को मारने के लिए खुदीराम का साथ दिया क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी ने। दोनों ने किंग्सफोर्ड को मारने के लिए किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया था। पर दुर्भाग्य से उस बग्घी में किंग्सफोर्ड की जगह एक दूसरे अंग्रेज अधिकारी का परिवार था।
बग्घी में बम फेंकने के कारण खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया था। बताया जाता है कि गिरफ्तार करने के बाद अंग्रजों ने खुदीराम को कई बार प्रताड़ित किया। जब अंग्रेजों के अत्याचार का खुदीराम पर कोई भी प्रभाव नहीं हुआ तो अंग्रेजी सरकार ने प्रलोभन दिया कि यदि वो अपने देश का साथ छोड़कर हमारी सेना में आ जायेगा तो उसके प्राण बख्श दिए जायेंगे।
पर खुदीराम को तो अपनी जान से भी हिंदुस्तान प्यारा था। जब अंग्रेजी सरकार के सारे मंसूबों पर पानी फिर गया तो 11 अगस्त 1908 को आज ही के दिन मात्र 18 साल की उम्र में खुदीराम को फांसी दे दी।
अपने आखरी वक़्त में खुदीराम को ये मलाल रहा की वो भारत को आज़ाद होते हुए अपनी आँखों से नहीं देख पाये। पर खुदीराम के बलिदान ने देश में आज़ादी की नयी क्रान्ति ला दी थी। उनकी फाँसी के बाद पूरा बंगाल बंद रहा था। उस समय बंगाल में एक धोती बहुत प्रसिद्ध हुई थी जिसमें खुदीराम का नाम लिखा रहता था।
फांसी के तख्ते पर झूलते समय भी उनके हाथ में श्रीमद्भगवतगीता थी।
देश के लिए शहीद होने वाले सबसे युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस की पुण्यतिथि पर आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।