केंद्र सरकार सुरक्षा बलों की सुरक्षा के लिए AFSPA वाले राज्यों में सेना की ताकत घटाने के समर्थन में नहीं है। जिसके लिए केंद्र सरकार ने AFSPA पर पिछले साल आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन के लिए क्यूरेटिव याचिका कोर्ट में दायर की है।
मामले की सुनवाई कर रहे हैं, चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाले बेंच ने कहा कि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं कि इस क्यूरेटिव पिटिशन पर कोर्ट दुबारा मेरिट के आधार पर सुनवाई करे। कोर्ट के इस संभावित तर्क को समझते हुए अटॉर्नी जनरल ने जोर देकर कहा कि यह बहुत गंभीर मामले से जुड़ी याचिका है। कोर्ट के फैसले की वजह से सेना के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए इस फैसले में सुधार किया जाए। रोहतगी ने कहा कि इस फैसले से संवेदनशील इलाकों में सेना की कार्रवाई बाधित हो रही है।
अटॉर्नी जनरल ने कड़े शब्दों में कहा कि सेना को पूरी ताकत के साथ अशांत क्षेत्रों में कार्रवाई की छूट होनी चाहिए। सेना जब हथियारों से लैस उपद्रवियों का सामना कर रही हो, तो उसे अपने ताकत के इस्तेमाल की पूरी छूट होनी ही चाहिए।
8 जुलाई 2016 को सर्वोच्च न्यायालय ने AFSPA के तहत सुरक्षा बलों को दी जाने वाली विशेष सुरक्षा अधिकारों को निरस्त कर दिया था। इसके अलावा सुरक्षा बलों द्वारा किए जाने वाले एनकाउंटर में होने वाली मौतों के लिए एफआईआर को अनिवार्य किया था। इस आदेश के विरोध में केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय के उक्त आदेश को जारी रखा गया, तो एक दिन अशांति वाले क्षेत्रों में शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखना असंभव हो जाएगा।
आपको बता दें कि मणिपुर में 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए 1528 लोगों की मौत को न्यायेतर हत्या (एक्स्ट्रा जुडिशियल किलिंग) बताते हुए, एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे।