नई दिल्ली, दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) अगले महीने की 14 फरवरी को सरकार के तीन साल पूरा होने का जश्न मना रही है, लेकिन उसकी नजर 2020 के विधानसभा चुनाव पर है। वहीं, आम आदमी पार्टी के लिए एक और मुश्किल खड़ी होती नजर आ रही है। माना जा रहा है कि AAP के लिए पांच साल में यह पहला मौका है जब पार्टी को लेकर किसी तरह का विवाद होने पर उसे जनता की तरफ से सहानुभूति नहीं मिल रही है। इसे लेकर पार्टी नेतृत्व और उन 20 लोगों की मुश्किलें बढ़ रही हैं जो कुछ दिन पहले तक विधायक रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो यही कारण है कि आप उपचुनाव से बचना चाह रही है। AAP संसदीय सचिव मामले में दिए गए फैसले पर शुरू से ही सवाल उठाती रही है। 19 जनवरी को चुनाव आयोग ने जब इस मामले की फाइल राष्ट्रपति के पास भेजी थी उसी दिन से आप ने आरोप लगाना शुरू कर दिया था कि हमें अपनी बात रखने का समय नहीं दिया गया।
राष्ट्रपति के फैसले के बाद से आप ने हो हल्ला और तेज कर दिया था। इस फैसले के विरोध में पार्टी अदालत भी गई है। हालांकि अभी तक राहत तो नहीं मिली है, लेकिन अदालत ने यह जरूर कहा है कि अभी उपचुनाव की घोषणा न करें।
इस दल का एक ही आरोप है कि उसे बात रखने का समय नहीं दिया गया। पार्टी सूत्रों के अनुसार यह सब उपचुनाव को टालने के लिए किया जा रहा है, क्योंकि दिल्ली में इस समय माहौल आप के समर्थन में नहीं है।
चिंता इस बात की भी है कि अगर उपचुनाव में हार हुई तो दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी इसका असर पड़ेगा। पार्टी के नेता इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि सत्ता में आने के बाद से लगातार मंत्रियों और विधायकों पर लग रहे आरोपों से पार्टी की छवि बुरी तरह प्रभावित हुई है। बिजली पानी पर सब्सिडी देकर जनता को अधिक समय तक नहीं भरमाया जा सकता है।
दूसरी ओर केंद्र से सीधी लड़ाई के चलते दिल्ली में विकास कार्य ठप हैं। कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट में भी सामने आया है कि अयोग्य किए गए विधायकों को जनता की सहानुभूति नहीं मिल रही है।
बता दें कि दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) को बड़ा झटका तब लगा था, जब ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में AAP के 20 विधायकों की सदस्यता रद हो गई थी।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने चुनाव आयोग के फैसले को मंजूरी दे दी थी। सरकार ने राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अधिसूचना जारी कर इसकी जानकारी दी थी। इससे पहले 19 जनवरी को चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से सिफारिश की थी 20 AAP विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाए। चुनाव आयोग का मानना था कि AAP के विधायक ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ के दायरे में आते हैं।
कब-कब क्या हुआ
– 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था।
– मई 2015 में चुनाव आयोग के समक्ष डाली गई थी एक जनहित याचिका।
– 19 जून 2015 को प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद करने के लिए आवेदन किया।
– 8 सितंबर 2016 को अदालत ने 21 ‘आप’ विधायकों की संसदीय सचिवों के तौर पर नियुक्तियों को खारिज कर दिया था। अदालत ने पाया था कि इन विधायकों की नियुक्तियों का आदेश उपराज्यपाल की सहमति के बिना दिया गया था।
– 22 जून 2017 को राष्ट्रपति की ओर से यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई। शिकायत में कहा गया था कि यह ‘लाभ का पद’ है इसलिए ‘आप’ विधायकों की सदस्यता रद की जानी चाहिए। तब चुनाव आयोग ने ‘आप’ विधायकों को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया और उन्हें तकरीबन छह माह का समय दिया था।
जानें पूरा मामला
आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 19 जून को एडवोकेट प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद करने के लिए आवेदन किया। राष्ट्रपति की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई। शिकायत में कहा गया था कि यह ‘लाभ का पद’ है इसलिए आप विधायकों की सदस्यता रद की जानी चाहिए।