दुनिया में इस समय भारत सहित कई देशों में ठंड का प्रकोप देखने को मिल रहा है. भारत में तो कई इलाकों में ठिठुरन का माहौल है. वहीं बात अगर दुनिया के अन्य देशों की करें, तो कई देशों में बर्फ़बारी हो रही है. इन इलाकों में तो वैज्ञानिक आसानी से पहुंच जाते हैं. लेकिन अंटार्कटिका के थ्वाइट्स ग्लेशियर (Thwaites Glacier Antarctica) की अपडेट लेना आसान नहीं है. यहां इतनी ठंड और बर्फीले तूफ़ान आते हैं कि इस जगह की सैटेलाइट इमेज भी बड़ी मुश्किल से आती है. लेकिन वैज्ञानिकों ने काफी कोशिश कर इस जगह की अपडेट हासिल कर ली है.
अंटार्कटिका के थ्वाइट्स ग्लेशियर के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने एक करार किया. इसे इंटरनेशनल थ्वाइट्स ग्लेशियर कोलेबरेशन (International Thwaites Glacier Collaboration) कहते हैं. इसी के तहत वैज्ञानिकों ने बड़ी जानकारी हासिल की है. इसके तहत बता चला है कि इस ग्लेशियर में काफी बड़ा छेद हो चुका है. ये छेद अमेरिका के मैनहैट्टन शहर का दो-तिहाई है. इसके अलावा इस ग्लेशियर की बर्फ पिघलनी भी शुरू हो गई है.
समुद्र के नीचे फैला है राज
थ्वाइट्स ग्लेशियर का क्षेत्रफ़ल 1 लाख 92 हजार वर्ग किलोमीटर है. अगर ये विशाल ग्लेशियर पिघलेगा तो दुनिया में महाप्रलय आ जाएगा. ये ग्लेशियर समुद्र में कई किलोमीटर नीचे तक फैला है.इसकी अंदरूनी चौड़ाई करीब 468 किलोमीटर मानी जाती है. अगर इस ग्लेशियर से कोई जहाज टकरा जाए, तो भयंकर दुर्घटना हो सकती है. अगर ये ग्लेशियर पिघल जाए तो समुद्र का स्तर दो से पांच फ़ीट बढ़ जाएगा. इससे तटीय इलाके पानी में डूब जाएंगे.
ऐसे आएगी ताबाही
थ्वाइट्स ग्लेशियर के पिघलने के कई दुष्परिणाम भी होंगे. इससे अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. साथ ही इससे महामंदी आ जाएगी. बता दें कि अंटार्कटिका के बर्फ से दुनिया का नब्बे फीसदी ताजा पानी आता है. अगर ये बर्फ पिघल गया तो यहाँ का जलस्तर बढ़ जाएगा लेकिन कई नदियां सूख जाएंगी. इस ग्लेशियर का पिघलना इतना खतरनाक है कि डूम्सडे ग्लेशियर भी कहते हैं. यानी कि वो ग्लेशियर जिसके पिघलने से क़यामत आ जाएगी.