बीते एक सप्ताह के दौरान उत्तर प्रदेश की राजनीति में जिस एक नेता की सर्वाधिक चर्चा हो रही है तो वो हैं, प्रियंका गांधी.
यूपी के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस एक सप्ताह के दौरान प्रियंका गांधी ने शायद उतना कुछ कर दिखाया है जितना वह अब तक के अपने पूरे राजनीतिक करियर में नहीं कर पायी थीं.
हालांकि उन्हें प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए बहुत दिन नहीं हुए हैं. अमेठी और रायबरेली की पारिवारिक सीटों से बाहर निकल कर पहली बार 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी सक्रिय हुई थीं.
ऐसे बहुत कम ही मौक़े रहें हैं जब प्रियंका गांधी कांग्रेस की ओर से लड़ती भिड़ती दिखी हैं लेकिन लखीमपुर मामले में उन्होंने सड़क पर उतरने का फ़ैसला किया.
बीते रविवार (तीन अक्टूबर) की रात साढ़े बारह बजे लखनऊ की सड़कों पर पैदल निकलने से शुरू हुआ उनका सिलसिला इस रविवार (10 अक्टूबर) को प्रधानमंत्री के क्षेत्र वाराणसी में किसान न्याय रैली तक पहुँचा है. प्रधानमंत्री के क्षेत्र में उम्मीद से कहीं ज़्यादा बड़ी भीड़ थी ज़रूर लेकिन यह भीड़ कांग्रेसी दावे जितनी भी नहीं थी.
वाराणसी में प्रियंका का भाषण
कांग्रेस ने दावा किया था कि इस रैली में पचास हज़ार लोग शामिल होंगे लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ क़रीब 25 हज़ार के आसपास लोग जुटे थे.
इस भीड़ के सामने प्रियंका गांधी ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, “दुनिया के कोने-कोने तक हमारे प्रधानमंत्री घूम सकते हैं, लेकिन अपने देश के किसानों से बात करने के लिए अपने घर से मात्र दस किलोमीटर दूर दिल्ली के बॉर्डर तक नहीं जा सकते हैं. अपने आप को गंगा पुत्र कहने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने गंगा मैया के आशीर्वाद से खेतों में फ़सल लहलहाने वाले करोड़ों गंगा पुत्रों का अपमान किया है.”
कांग्रेस के मुताबिक़ लखीमपुर खीरी हिंसा के मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्र की गिरफ़्तारी के बाद अब उनके पिता केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्ख़ास्तगी की बारी है.
इसी माँग को प्रियंका ने कांग्रेस के संघर्ष का अगला पड़ाव बनाते हुए कहा, “हमें जेल में डालिए, हमें मारिए, हमें कुछ भी कर दीजिए, हम लड़ते रहेंगे, लड़ते रहेंगे. जब तक वो गृह राज्य मंत्री इस्तीफ़ा नहीं देते, हम लड़ते रहेंगे, लड़ते रहेंगे, लड़ते रहेंगे. हम डरेंगे नहीं, हम हटेंगे नहीं.
नए अंदाज़ में प्रियंका
प्रियंका के इस नए अंदाज़ पर वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, “अभी तक जब प्रियंका की विज़िट होती थी तो लगता था कि वो सिर्फ़ देखने के लिए आईं हैं, लेकिन इस बार जो प्रियंका ने किया है वो एकदम इंस्टिंक्टिव काम है. वो लखनऊ से पुलिस को चकमा देकर निकल गईं और काफ़ी देर तक पुलिस उन्हें तलाशती रही. यह पहला मौक़ा था जब प्रियंका के अंदर जो अंदरूनी लीडरशिप क्वॉलिटी हैं, वो जागी और बाहर दिखी हैं.”
प्रियंका गांधी ने क़रीब 60 घंटे तक सीतापुर पीएसी गेस्ट हाउस में क़ैद रहकर यह दिखाने की कोशिश की है कि वे लोगों के लिए लड़ने का इरादा रखती हैं.
इसके बाद लखीमपुर खीरी हिंसा में मरने वाले 18 साल के किसान लवप्रीत सिंह के घर छोटे से अधबने कमरे में प्रियंका गाँधी ने लवप्रीत की बहन को गले से लगाया और चंद मिनटों की दूरी पर निघासन में पत्रकार रमन कश्यप के घर पहुँच कर पत्नी आराधना को सांत्वना दी.
इसके बाद वह बहराइच के मृतक किसान के परिवार वालों से मिलीं, बीच रास्ते में मीडिया को बयान देना नहीं भूलीं कि वह इस हिंसा में मारे गए बीजेपी कार्यकर्ताओं के परिवार वालों से भी मिलना चाहती थीं.
जब प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीतापुर में गिरफ़्तारी के दौरान झाड़ू लगाने का मज़ाक़ उड़ाया तो प्रियंका ने वाल्मीकि बस्ती में झाड़ू लगाकर योगी सरकार को एक साथ किसान और दलित विरोधी ठहराने की कोशिश की. उनकी इन तस्वीरों को लेकर सोशल मीडिया पर ख़ूब चर्चा हुई.
कांग्रेस को फ़ायदा होगा?
यूपी की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि इन सबके ज़रिए एक हद तक तो शायद प्रियंका गांधी राजनीतिक छवि के खेल में विपक्ष के दूसरे नेताओं से बीस साबित हुई हैं. लेकिन सबसे अहम सवाल यही है कि क्या इससे कांग्रेस को यूपी में कोई फ़ायदा होगा?
शरत प्रधान कहते हैं, “प्रियंका के पास संगठन नहीं है लेकिन वह अकेले चल पड़ीं. जिनके पास कैडर है, वो घर में बैठे हुए हैं. अखिलेश यादव ने अपने आप को घर के बाहर कोर्ट अरेस्ट करवा कर औपचारिकता निभाई.”
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के पास मज़बूत संगठन नहीं है, अगर संगठन होता तो प्रियंका के एक सप्ताह की मेहनत का असर शायद कुछ और दिखता. लखीमपुर खीरी हिंसा मामले पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की मायावती दोनों उतने मुखर नहीं दिखे हैं, जितनी प्रियंका दिखी हैं.