चीन के प्रॉजेक्ट को हां कहने और भारत के निवेश प्रस्तावों पर अनिच्छा जताने से बढ़ते असंतोष के बाद श्रीलंका ने भारत को बड़ा आश्वासन दिया है। श्रीलंका ने कहा है कि चीन के बढ़ते निवेश से भारत के सुरक्षा हितों पर आंच नहीं आएगी। भारत में श्रीलंका के नए उच्चायुक्त मिलिंदा मोरागोडा ने यह भी कहा कि उनके देश में भारतीय प्रॉजेक्ट के धीमे होने के पीछे कोई विदेशी पहलू जिम्मेदार नहीं है।
हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में श्रीलंकाई राजदूत मिलिंदा मोरागोडा ने कहा कि चीन ने श्रीलंका में निवेश किया है लेकिन चीन की उपस्थिति सुरक्षा के क्षेत्र में किसी भी तरह से नहीं है जो भारत के हितों को नुकसान पहुंचाएगी। इससे पहले भारतीय विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने अपनी श्रीलंका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे से मुलाकात की थी।
दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी’
विदेश सचिव ने दोनों नेताओं से बातचीत में भारतीय परियोजनाओं और प्रस्तावों को तेज करने की जरूरत पर बल दिया था। श्रीलंकाई राजदूत ने माना है कि दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी है जिसे दोनों ही पक्षों को दूर करना होगा। उन्होंने कहा, ‘हम नहीं समझते हैं कि (परियोजनाओं में देरी के पीछे कोई) गलत उद्देश्य होना चाहिए। यह प्रक्रिया से जुड़ा मुद्दा ज्यादा है और चीजें अब सुलझ रही हैं।’
श्रीलंकाई राजदूत ने कहा कि राष्ट्रपति खुद ही नौकरशाही को लेकर अधीर हैं और कोलंबो पोर्ट के पश्चिमी कंटेनर टर्मिनल को लेकर आगे बढ़े। इस टर्मिनल को भारत का अडानी ग्रुप बनाने जा रहा है। उन्होंने भरोसा दिया कि आने वाले 12 से 18 महीने में चीजें सुधर सकती हैं। मोरागोडा ने कहा कि श्रीलंका में चीन की उपस्थिति को लेकर बनी चिंता को बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है।
- ‘भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने का कोई इरादा नहीं’
मोरागोडा ने कहा, ‘चीन ने श्रीलंका में निवेश कर रखा है लेकिन मैं नहीं समझता हूं कि यह सुरक्षा के मुद्दे में बदलेगा। भारत और श्रीलंका के बीच में बातचीत जारी है और दोनों के रिश्तों में गर्मजोशी बरकरार है। श्रीलंका का भारत को रणनीतिक लिहाज से धमकाने या भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने का कोई इरादा नहीं है। बता दें कि चीन ने अरबों डॉलर का कर्ज श्रीलंका को दे रखा है। चीनी कर्ज में फंसे श्रीलंका को अपने हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए ड्रैगन को देना पड़ा है।