अक्सर कहा जाता है कि खेती से बस पेट भर सकता है, कमाई नहीं की जा सकती है. यह बात पहले के समय में तो सही थी लेकिन समय बदलने के साथ-साथ खेती के मायने भी बदल गए हैं. तकनीक और नए आइडिया की मदद से ऐसे सैकड़ों नहीं लाखों किसान हैं जो ना केवल अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं बल्कि उनकी जबरदस्त कमाई भी हो रही है.
एक आम किसान (Farmer) भी थोड़ी बहुत खेती से अच्छी खासी कमाई (Farmers Income) कर सकता है. बस उसे एक कारोबारी की तरह सोचना है और नई तकनीकों का इस्तेमाल करना है. अगर तकनीक के साथ आगे नहीं बढेंगे तो पिछड़ जाएंगे।
सरकार खेती के साथ-साथ खेती से जुड़े काम-धंधों को भी बढ़ावा दे रही है. डेरी उद्योग के साथ मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार नई-नई योजनाएं और नई-नई तकनीक लॉन्च कर रही है.
मछली पालन (Machhli Palan) को देश में नीली क्रांति (Blue revolution) के रूप में देखा जाता है. मछली पालन के लिए सरकार तमाम तकनीकी जानकारी के साथ आर्थिक मदद भी मुहैया कराती है. अब तो मछली पालने के लिए भी अलग से किसान क्रेडिट कार्ड की भी सुविधा शुरू की हुई है.
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन में आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज में मछली पालन (Fish Farming) क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की थी. इसका लक्ष्य ‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ के तहत मछली पालन में टिकाऊ तरीके से नीली क्रांति लाना है. ‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ का मुख्य उद्देश्य रोजगार के प्रत्यक्ष अवसर पैदा करना है.
अब तो मछली पालन की ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनके आधार पर आप तालाब के बिना भी मछली पालन कर सकते हैं. बिना तालाब के मछली पालन की तकनीक का नाम है बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Technique).
आइए जानते हैं कि ये बायोफ्लॉक तकनीक क्या है और इस पर कितना खर्चा आता है. और तालाब के मुकाबले बायोफ्लॉक तकनीक में मछली पालन के क्या फायदे हैं.
बायोफ्लॉक तकनीक’ एक कम लागत वाला तरीका है, जिसमें मछली के लिए जहरीले पदार्थ जैसे अमोनिया, नाइट्रेट और नाइट्राइट को उनके भोजन में तब्दील किया जा सकता है.
तालाब में मछली पालन के पारंपरिक तरीके के मुकाबले बायोफ्लॉक तकनीक के कई लाभों को देखते हुए और मछली पालकों को इसका ज्यादा उत्पादन दिखाने के लिए इसे में पेश किया जा रहा है. यह तकनीक पहले ही कई राज्यों में अपनाई जा चुकी है और इस तकनीक से कई यूनिट सफलतापूर्वक चल रही हैं.