उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुधी ने कहा है कि साल 2019 में एनजीटी ने भारत में 351 प्रदूषित नदियों को चिह्नित किया था। इनमें उत्तराखंड में नौ नदियां शामिल हैं। काशीपुर के मुहानों पर बह रही ढेला और बहल्ला नदी प्रदूषित नदियों की सूची में हैं। उन्होंने कहा नदियों के पुनर्जीवन के लिए रिचार्ज से ज्यादा महत्वपूर्ण बेहिसाब दोहन को रोकना है।
रविवार को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, केडीएफ व आईआईएम के सहयोग से लुप्त होती नदियों की चुनौती विषय पर सेमिनार हुआ। पीसीबी के सदस्य सचिव सुबुधी ने बतौर मुख्य अतिथि अपने विचार रखे। कहा कि उनका प्रयास था कि ढेला और बहल्ला को नदी की श्रेणी में न रखा जाए। जब इस पर एनॉलाइसिस किया गया तो इन नदियों में साल भर पानी मिला, लेकिन वह सीवरेज होता है। क्योंकि काशीपुर में सीवरेज का कोई सिस्टम नहीं है। कहा नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगोत्री, बदरीनाथ से हरिद्वार तक 131 नालों को टेग करके 34 सीवरेज सिस्टम बनाये गए। काशीपुर, रुद्रपुर, किच्छा, हल्द्वानी में 228 करोड़ रुपये का सीवरेज सिस्टम यहां भी मंजूर हो गया। दो-तीन साल में सीवरेज की समस्या भी हल हो जाएगी। इससे नदियों में प्रदूषण कम होगा।
आईआईएम के निदेशक प्रोफेसर कुलभूषण बलूनी ने कहा कि हम नदियों के संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी आगे अच्छा काम कर पाएंगे, लेकिन इसके लिए जनभागीदारी की अधिक आवश्यकता है। हमें जल स्रोतों का रखरखाव करना होगा। वहीं, अन्य वक्ताओं ने भी कहा कि नदियां जीवन दायिनी हैं। नदियों के संरक्षण पर बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन नतीजा शून्य है। इससे पूर्व कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। यहां केडीएफ के अध्यक्ष राजीव घई, भारतीय सूचना सेवा के क्षेत्रीय अधिकारी राजेश सिन्हा, मेयर ऊषा चौधरी, पवन अग्रवाल, अरुण भक्कू, पंकज भल्ला, डॉ.योगराज सिंह, आयुषी नागर, देवेंद्र अग्रवाल, डॉ. रवि सिंघल, चक्रेश जैन आदि मौजूद रहे।
बिना जागरूकता देश को नहीं बचा सकते जल संकट से भारतीय सूचना सेवा के क्षेत्रीय अधिकारी राजेश सिन्हा ने कहा कि हर साल सितंबर के चौथे रविवार को विश्व नदी दिवस मनाया जाता है। देश का आधा हिस्सा जल संकट से गुजरता रहता है। जल के बिना पृथ्वी को नही बचा सकते। नदी हमारे लिये जीवन दायिनी है।