काबुल, 7 सितम्बर 2022

आखिरकार अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का गठन हो ही गया। तालिबान की अंतरिम सरकार में मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया है। तालिबान के पिछले शासन के अंतिम वर्षों में मुल्ला हसन अखुंद ने अंतरिम प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी। अब्दुल गनी बरादर और मुल्ला अब्दुल सलाम को उप-प्रधानमंत्री बनाया गया है।

न्यूज एजेंसी ने रिपोर्ट दी है कि तालिबान की सरकार में सिराज हक्कानी को आंतरिक मामलों का मंत्री यानी गृह मंत्री बनाया गया है। तालिबान के मुख्य प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को अहम जिम्मेदारी दी गई है। तालिबान के सह-संस्थापक रहे अब्दुल गनी बरादर को उप प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी गई है। मुल्ला गनी बरादर अमेरिका के साथ वार्ता का नेतृत्व कर चुके हैं। बरादर ने अमेरिका के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत अमेरिका पूरी तरह अफगानिस्तान से बाहर निकल गया था।

 

मुल्ला उमर का बेटा रक्षा मंत्री

तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। खूंखार हक्कानी नेटवर्क के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी को आंतरिक मामलों का मंत्री बनाया गया है। इसके अलावा सिराजुद्दीन हक्कानी को तालिबान के उपनेता की जिम्मेदारी भी दी गई है। काबुल में एक सरकारी कार्यालय में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने कहा, “यह सिर्फ कार्यकारी सरकार है और आगे पूरी सरकार के गठन पर काम होगा। तब तक मुल्ला हबीबुल्लाह अखुंदजादा मंत्रिमंडल के संरक्षक होंगे।” तालिबान के प्रवक्ता ने आगे कहा कि हम देश के अन्य हिस्सों से भी लोगों को इस कैबिनेट में शामिल करने की कोशिश करेंगे।

तालिबान ने अफगान के लोगों से वादा किया था कि देश में एक समावेशी सरकार बनाई जाएगी और महिलाओं के अधिकारों का ख्याल भी रखा जाएगा। तालिबान ने यह भी कहा था कि सरकार में शीर्ष स्तर पर महिलाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाएगी। तालिबान ने अमिर खान मुत्तकी को अपना विदेश मंत्री बनाया है। अमिर खान दोहा में तालिबान की मध्यस्थता कर चुके हैं।

गौरतलब है कि तालिबान द्वारा लंबे वक्त से सरकार बनाने की तैयारी की जा रही थी। हालांकि, दो-तीन बार ऐलान टाल भी दिया गया था। माना जा रहा था कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच सत्ता संघर्ष को लेकर कुछ विवाद चल रहा है। लेकिन अब तालिबान ने सरकार गठन का ऐलान कर दिया है। लेकिन नई सरकार बनाने के बाद भी तालिबान के सामने चुनौतियां काफी हैं।

पहली सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस सरकार में अलग-अलग लोगों और गुटों को कैसे तरजीह दी जाए? मौजूदा तालिबान कैबिनेट में कुछ अहम मंत्रालयों का ऐलान तो हो गया है लेकिन अभी भी इस गुट के अंदर कई ऐसे बड़े चेहरे हैं जिन्हें सरकार में जगह मिलने की उम्मीद है। ऐसे में इन सभी को तालिबान सरकार में कैसे शामिल किया जाएगा यह देखने वाली बात होगी। एक बात यह भी है कि हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा अभी तालिबान में नंबर वन है, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता के बारे में लोगों को ज़्यादा नहीं पता है।

तालिबान सरकार के सामने दूसरी चुनौती है देश को पटरी पर लाना। सरकार चलाने के लिए तालिबान को हर फील्ड के काबिल लोगों की ज़रूरत होगी। फिर चाहे वो नौकरशाह हों, एक्सपर्ट्स, डॉक्टर्स, क़ानून के जानकार या फिर कुछ और देखने वाली बात ये होगी कि तालिबान ऐसे तर्जुबेकार लोग कहां से लाता है। तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। महिलाएं अपने अधिकारों की मांग को लेकर सड़क पर हैं। अपनी पुरानी छवि को बदलना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना पाना भी तालिबान के लिए चुनौती है।