देश में रेलवे की हालत से हर कोई वाकिफ है। रेलवे लाख बुनियादी सुविधाएं देने का वादा कर ले, लेकिन हकीकत में कभी बदल नहीं पाती हैं। रेलवे की बदतर हालत में भी लाखों-करोड़ों यात्रियों को हर दिन सफर करना पड़ता है। हालत तो इतनी खराब है कि लोगों को टॉयलेट में बैठकर सफर करना पड़ता है। लेकिन इस बार रेलवे का एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है।
दरअसल, एक मामले में एक परिवार ने भारतीय रेलवे को कोर्ट तक घसीट कर ले जाने का काम किया है। इस परिवार को पेशाब करने के लिए करीब 90 मिनट तक इंतजार करना पड़ा था। यही वजह है कि रेलवे द्वारा बुनियादी सुविधा उपलब्ध न करा पाने के कारण इस परिवार ने रेलवे को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2009 में मिनिस्ट्री ऑफ़ लॉ एंड जस्टिस के डिप्टी लीगल एडवाइज़र देव कांत अपने परिवार के साथ अमृतसर से दिल्ली ट्रेन से आ रहे थे।
सफर के दौरान जब गाड़ी लुधियाना पहुंची, तो यात्रियों की भीड़ काफी हो गई थी। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि लोगों को बैठना तो दूर खड़े होने की भी जगह नहीं मिल रही थी। इसलिए लोग ट्रेन के फर्श पर किसी तरह बैठने को मजबूर हो गये। जिसकी वजह से वाशरूम (टॉयलेट) का रास्ता भी पूरी तरह से बंद हो गया था। इसी वजह से देव कांत के परिवार को टॉयलेट के इस्तेमाल के लिए करीब 90 मिनट तक इंतजार करना पड़ा था।
भीड़ इतनी ज्यादा थी कि टॉयलेट के दरवाजे तक लोग बैठे हुए थे। टॉयलेट जाना जरूरी था, लेकिन इस परिवार का कोई भी सदस्य 90 मिनट तक टॉयलेट का इस्तेमाल नहीं कर पाया। इससे देव कांत ने कोर्ट में दावा किया कि उनके परिवार को इसके कारण शारीरिक और मानसिक यातना से गुज़रना पड़ा था।
इस मामले को देव दत्त कोर्ट तक ले गये। कोर्ट में सात साल तक इस मामले पर सुनवाई होती रही। हालांकि, 7 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार कोर्ट को इस घटना को संगीन मामला मानना पड़ा।
रेलवे को सबक सिखाने के उद्देश्य से देव दत्त अपनी राय पर अड़े रहे और अंत में कोर्ट ने रेलवे को इस घटना के लिए दोषी माना। कंज्यूमर कोर्ट ने इस मामले को संगीन माना है। खास बात ये है कि न सिर्फ कोर्ट ने रेलवे को फटकार लगाई है, बल्कि देव कांत को 30 हज़ार रुपये मुआवज़े के रूप में देने का फ़ैसला सुनाया है।