रामायण की लगभग सभी कथाओं से हम परिचित ही हैं, मगर इस महाकाव्य में रहस्य बनकर छुपी हैं, कुछ ऐसी छोटी-छोटी कथाएं जिनसे हम लोग परिचित नहीं हैं, तो आइये जानते हैं, वे कौन सी दस बातें हैं, जो रामायण के विषय में हम नहीं जानते हैं :
1.) रामायण राम के जन्म से कई साल पहले लिखी जा चुकी थी। रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं।
2.) वाल्मीकि जी रामायण के मुताबिक भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे। यह सबसे उत्कृष्ट ग्रह दशा होती है, इस घड़ी में जन्म बालक अलौकिक होता है।
3.) जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।
4.) रामायण के मुताबिक समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)
5.) सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, मगर स्वयं शूर्पणखा ने रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह का वध रावण ने कर दिया था। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
6.) कहते हैं कि जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी और वे एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा रहे थे, तो उनकी नजर शनि देव पर पड़ गयी। वे एक कोठरी में बंधे पड़े थे। हनुमान जी ने उन्हें बंधन मुक्त किया। मुक्त होने पर उन्होंने हनुमान जी के बल बुद्धि की भी परिक्षा ली और जब उन्हें यकीन हो गया कि वे सचमुच में भगवान रामचंद्र जी के दूत हनुमान जी हैं, तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि “इस पृश्वी पर जो भी आपका भक्त होगा उसे मैं अपनी कुदृष्टि से दूर ही रखूंगा, उसे कभी कोई कष्ट नहीं दूंगा ।” इस तरह शनिवार को भी मदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ होता है तथा आरती गाई जाती है।
7.) जब खर दूषण मारे गए, तो एक दिन भगवान राम चन्द्र जी ने सीता जी से कहा, “प्रिये अब मैं अपनी लीला शुरू करने जा रहा हूँ। खर दूषण मारे गए, शूर्पणखा जब यह समाचार लेकर लंका जाएगी, तो रावण आमने-सामने की लड़ाई तो नहीं करेगा बल्की कोई न कोई चाल खेलेगा और मुझे अब दुष्टों को मारने के लिए लीला करनी है। जब तक मैं पूरे राक्षसों को इस धरती से नहीं मिटा देता, तब तक तुम अग्नि की सुरक्षा में रहो।” भगवान् रामचंद्र जी ने उसी समय अग्नि प्रज्वलित की और सीता जी भगवान जी की आज्ञा लेकर अग्नि में प्रवेश कर गयी। सीता माता जी के स्थान पर ब्रह्मा जी ने सीता जी के प्रतिबिम्ब को ही सीता जी बनाकर उनके स्थान पर बिठा दिया।
8.) अग्नि परीक्षा का सच :- रावण जिन सीतामाता का हरण कर ले गया था वे सीता माता का प्रतिबिम्ब थीं , और लौटने पर श्री राम ने यह पुष्टि करने के लिए कि कहीं रावण द्वारा उस प्रतिबिम्ब को बदल तो नहीं दिया गया , सीतामाता से अग्नि में प्रवेश करने को कहा जो कि अग्नि के घेरे में पहले से सुरक्षित ध्यान मुद्रा में थीं , अपने प्रतिबिम्ब का संयोग पाकर वे ध्यान से बाहर आईं और राम से मिलीं।
9.) आधुनिक काल वाले वानर नहीं थे हनुमान जी :- कहा जाता है कि कपि नामक एक वानर जाति थी। हनुमानजी उसी जाति के ब्राह्मण थे। शोधकर्ताओं के अनुसार भारतवर्ष में आज से 9 से 10 लाख वर्ष पूर्व बंदरों की एक ऐसी विलक्षण जाति में विद्यमान थी, जो आज से लगभग 15 हजार वर्ष पूर्व विलुप्त होने लगी थी और रामायण काल के बाद लगभग विलुप्त ही हो गई। इस वानर जाति का नाम `कपि` था। मानवनुमा यह प्रजाति मुख और पूंछ से बंदर जैसी नजर आती थी। भारत से दुर्भाग्यवश कपि प्रजाति समाप्त हो गई, लेकिन कहा जाता है कि इंडोनेशिया देश के बाली नामक द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है।
10.) विश्व में रामायण का वाचन करने वाले पहले वाचक कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश थे। जिन्होंने रामकथा स्वयं अपने पिता श्री राम के आगे गायी थी। पहली रामकथा पूरी करने के बाद लव कुश ने कहा भी था हे “पितु भाग्य हमारे जागे, राम कथा कहि श्रीराम के आगे।”