नई दिल्ली, 19 मई 2021
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ब्रेकथ्रू इंफेक्शन या वैक्सीनेशन के बाद भी कोरोना संक्रमण की घटनाओं की निगरानी में लगातार जुटा हुआ है। हालांकि, ऐसे मामलों की संख्या बहुत ही कम है और उसमें भी गंभीर बीमारी के केस तो नहीं के बराबर हैं। लेकिन, फिर भी यह जानना तो जरूरी है कि आखिर ऐसा होता क्यों है? यह तथ्य सिर्फ भारतीय वैक्सीन के साथ ही नहीं है। दुनियाभर की कोई भी वैक्सीन 100 फीसदी प्रभावी होने का दावा नहीं करती। आइए समझते हैं कि किन लोगों को दोनों डोज की वैक्सीन लगवाने के बाद भी संक्रमित होने की आशंका ज्यादा रहती है। सरकार की ओर से भी इसपर लगातार नजर भी रखी जा रही है।
पूर्ण वैक्सीनेशन के बाद संक्रमण, आंकड़े क्या कहते हैं ?
नीति आयोग के सदस्य के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने इसी हफ्ते भरोसा दिया है कि ब्रेकथ्रू इंफेक्शन पर आईसीएमआर की लगातार नजर बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘हम आपको आश्वस्त करना चाहते हैं कि इसपर आईसीएमआर बहुत ही व्यवस्थित तरीके से नजर रख रहा है, जिसके पास इसको लेकर हुई टेस्टिंग से संबंधित सूचना पहुंचती है।’ उन्होंने वैक्सीन के प्रभाव को लेकर देश में उठ रही चिंताओं के मद्देनजर ये बातें कही हैं। वैसे दोनों डोज लगवाने के बावजूद संक्रमित होने के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक कोवैक्सिन के मामले में 23,940 लोग वैक्सीनेशन के बाद भी संक्रमित हुए, जो कि इसकी कुल संख्या का सिर्फ 0.13 फीसदी है। वहीं कोविशील्ड के मामले में दोनों डोज लगवाने के बावजूद 1,19,172 लोग इंफेक्टेड हो गए, जो कि इसकी कुल वैक्सिनेशन का 0.07 फीसदी है। (18 मई तक के आंकड़े)
कोई भी वैक्सीन 100 फीसदी प्रभावी होने का दावा नहीं करती
यहां एक बाद फिर से स्पष्ट कर देना महत्वपूर्ण है कि दुनिया की कोई भी वैक्सीन ने अभी तक 100 फीसदी सुरक्षा या प्रभावी होने की गारंटी नहीं दी है। इसलिए वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी कोरोना संक्रमित होने की घटनाएं सामने आने से इनकार नहीं किया जा सकता; और ऐसा सिर्फ कोविड वैक्सीन के साथ ही देखने को नहीं मिल रहा है, जिसका कि एक साल से भी कम समय में पूरे विश्व में इमरजेंसी इस्तेमाल ही किया जा रहा है। मसलन, मीजल्स और मौसमी फ्लू पर बनी वैक्सीन ने काफी हद तक उन बीमारियों पर नियंत्रण पाया है, लेकिन कोई इनके पूरी तरह से खात्मे का दावा नहीं कर सकता।
इस वजह से वैक्सीन लेने के बाद भी हो जाता है कोरोना
अब सवाल है कि फुल डोज लेने के बाद भी लोगों के संक्रमित होने का कारण क्या है? दरअसल, यह समझना महत्वपूर्ण है कि इंसान का इम्यून रेस्पॉन्स उसके डीएनए में छिपा होता है, जो कि हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है। यह अंतर अलग-अलग रोगाणुओं और पैथोजन (रोगजनक) के खिलाफ अलग-अलग स्तर का प्रभाव दिखाता है। यह स्थिति व्यक्ति के कई कारकों पर निर्भर कर सकता है, जैसे कि खराब स्वास्थ्य, उम्र और वह किस तरह की दवाइयां ले रहा है। दूसरी वजह ये है कि पुराना इम्यून सिस्टम किसी बाहरी पदार्थ (वायरस) के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में कम प्रभावशाली भी साबित हो सकता है। जैसे कि कुछ स्टडी में यह बात सामने आई है कि कुछ बुजुर्गों में दोनों डोज लेने के बावजूद आवश्यक एंटीबॉडी नहीं विकसित हो पा रही है।
ब्रेकथ्रू इंफेक्शन के बाद भी बीमारी के गंभीर होने की कम आशंका
यही नहीं अब शोधकर्ताओं के सामने नए वेरिएंट को लेकर भी चुनौती सामने है। उन्हें यह देखना होगा कि जो ब्रेकथ्रू इंफेक्शन भारत में या दुनियाभर में सामने आए हैं, क्या वो एसएआरएस-सीओवी-2 के मूल स्ट्रेन से अलग पैदा हो रहे नए वेरिएंट की वजह से तो नहीं हैं? क्योंकि, आशंका यह भी जताई जा रही है कि नए वेरिएंट मौजूदा वैक्सीन से तैयार हुए ज्यादा इम्यून को तोड़ने की क्षमता भी हासिल कर सकते हैं। अगर कुछ चुनिंदा मामलों को छोड़ दें तो अभी तक तथ्य यही है कि कोविड वैक्सीन इस बीमारी के खिलाफ सिंगल डोज के बाद भी काफी प्रभावी हैं; और तथ्य यह भी है कि अगर किसी को वैक्सीन लगवाने के बावजूद ब्रेकथ्रू इंफेक्शन हो भी जाता है तो भी बीमारी के गंभीर होने की आशंका नहीं के बराबर होती है, बशर्ते की कोविड अनुकूल बर्ताव से समझौता नहीं किया जाए।