नई दिल्ली: आस्ट्रेलिया में आयोजित 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में पुरुषों की 65 किलोग्राम स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतने वाले पहलवान बजरंग का कहना है कि वह टोक्यों में होने वाले ओलम्पिक खेलों में कुश्ती का पहला स्वर्ण पदक जीत देशवासियों का लम्बे समय से अधूरा सपना पूरा करना चाहते हैं। अपनी जीत के बाद आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में 24 वर्षीय बजरंग ने अपनी इस इच्छा को जाहिर किया।
राष्ट्रमंडल खेलों में अपना पहला स्वर्ण पदक जीतने के बाद जीवन के सबसे बड़े लक्ष्य के बारे में बजरंग ने कहा, “राष्ट्रमंडल खेलों के बाद अब मेरी नजर एशियाई खेलों पर है। मुझे इसमें भी अच्छा प्रदर्शन कर पदक लाना है। ओलम्पिक खेलों में आज तक किसी पहलवान ने स्वर्ण पदक हासिल नहीं किया है और मैं चाहता हूं कि देशवासी जिस पदक का इंतजार कर रहे हैं, 2020 टोक्यो ओलम्पिक में मैं उस सपने को पूरा करूं।” फाइनल में वेल्स के केन चारिग के खिलाफ मैच कितना मुश्किल था। इस बारे में बजरंग ने कहा, ” हर मुकाबला मुश्किल होता है। कोई मुकाबला आसान नहीं होता। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश की।”
2014 में ग्लास्गो में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में बजरंग ने रजत पदक जीता था। इस बार वह अपने पदक के रंग को बदलने में कामयाब रहे। इस खुशी को जाहिर करते हुए उन्होंने कहा, “काफी अच्छा लग रहा है। यह राष्ट्रमंडल खेलों में मेरा पहला स्वर्ण पदक है। मैंने जब 2014 में हिस्सा लिया था, तो उस समय मैं काफी युवा था और मुझे उतना अनुभव नहीं था। कई टूनार्मेंट खेलने के बाद आत्मविश्वास बढ़ा औ? आज नतीजा कुछ और है। खुशी होती है, जब किसी चीज के लिए जी-तोड़ मेहनत की जाती है और फिर उसमें सफलता हासिल हो।”
हरियाणा के झज्जर जिले के निवासी बजरंग से जब भारतीय और विदेशी पहलवानों की तैयारियों में फर्क के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ” इसमें केवल मौसम का फर्क होता है। वहां का मौसम अच्छा होता है। हमारे यहां गर्मी थोड़ी ज्यादा होती है। उससे फर्क पड़ता है। हालांकि, हमसे अधिक मेहनत कोई नहीं करता है।विदेशी पहलवान केवल एक घंटा या डेढ़ घंटा प्रशिक्षण करते हैं, लेकिन हमारे पहलवान दो घंटे तीन घंटे अभ्यास करते हैं।”
बजरंग को अपने प्रतिद्वंदवी को पछाड़ने में अधिक समय नहीं लगता। फाइनल में भी उन्होंने केवल दो मिनट के भीतर ही जीत हासिल कर ली थी। ऐसे में मैट पर कुश्ती के दौरान दिमाग में चल रही हलचल के बारे में उन्होंने कहा, “हां, यहां मैंने सारे मुकाबला एकतरफा होकर जीते हैं। दिमाग में सिर्फ यहीं चलता है कि मैं अपना बेहतरीन प्रदर्शन करूं। पहले हम यह नहीं सोचते हैं कि हम 10-0 से हराएंगे। सिर्फ अच्छी कोशिश की तैयारी होती है। परिणाम के बारे में नहीं सोचते हैं, क्योंकि वह तो अच्छे प्रदर्शन पर ही निर्भर करता है।”
योगेश्वर दत्त को बजरंग अपना आदर्श और मार्गदर्शक मानते हैं। ऐसे में राष्ट्रमंडल खेलों में उनसे मिली सहायता के बारे में उन्होंने कहा, ” वह मेरे आदर्श हैं। मै उन जैसा बनना चाहता हूं। यह मेरा बचपन से सपना था। वह मेरे बड़े भाई भी हैं और मेरे गुरु भी हैँ। उनसे हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। वह मेरी गलती बताते हैं। मेरे हर मैच में वह मेरे साथ रहते हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में वह मेरे साथ नहीं रह पाए, लेकिन एशियाई खेलों में वह साथ रहेंगे।” पिछले साल दिल्ली में हुई एशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले बजरंग ने अपनी जीत का श्रेय देने के बारे में कहा, “मैं अपनी यह स्वर्णिम जीत सभी देशवासियों के नाम करना चाहता हूं। मैं अपने गुरु और माता-पिता को भी इस जीत के लिए श्रेय देना चाहता हूं।”
2014 में बजरंग ने 61 किलोग्राम स्पर्धा में रजत जीता था। इस बार उन्होंने 65 किलोग्राम में स्पर्धा में हिस्सा लिया। ऐसे में वजन में हुए बदलाव में आई परेशानियों के बारे में बजरंग ने कहा,” मुझे वजन में हुए बदलाव के कारण शुरूआत में काफी परेशानियां हुई थी, क्योंकि पहले पहलवानों के वजन को कुश्ती के लिए एक दिन पहले ही नाप लिया जाता था। अब तो मैच के दिन सुबह ही वजन नापा जाता है। अब कोई परेशानी नहीं है। मेरे लिए काफी अच्छा है। अब मुझे वजन कम नहीं करना पड़ता। ऐसे में अच्छा हो जाता है कि उसी दिन वजन भी मापा जाता है और उसी दिन मैच भी होता है।”