रविवार दि॰ 18.02.18 फाल्गुन शुक्ल तृतीया पर सूर्य के कुंभ राशि व धनिष्ठा नक्षत्र में होने के कारण इस दिन बारहवें आदित्य अर्थात हिन्दू वर्ष के बारहवें सूर्य मित्र-आदित्य का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। आदित्य सूर्य देव का ही एक अन्य नाम है। माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इनका नाम आदित्य पड़ा था। दैत्य व राक्षस अदिति के देवता पुत्रों से ईर्ष्या रखते थे, इसीलिए उनका सदैव देवताओं से संघर्ष होता रहता था। अदिति की प्रार्थना पर सूर्य ने अदिति के गर्भ से जन्म लेकर सभी असुरों को भस्म किया। आदित्य को ही शिव का एक नेत्र व भगवान विराट के नेत्र को अभिव्यक्त करते हैं। बारहवें आदित्य हैं मित्र। विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले, साधुओं का कल्याण करने की क्षमता रखने वाले मित्र देवता हैं। मित्र-आदित्य सृष्टि के विकास क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मित्र-आदित्य को फाल्गुन सखा भी कहा गया है। यह प्रेम, मैत्री और वात्सल्य की मूर्ति है जो अखिल सृष्टि के प्रजनन का कारण भी हैं। रविवार फाल्गुन शुक्ल तृतीया पर मित्र आदित्य के विशिष्ट उपासना व उपायों से संतानहीनता का निवारण होता है, हृदय रोगों का शमन होता है तथा रोजगार में तरक्की मिलती है।
विशेष पूजन विधि: प्रातः काल सूर्यदेव का विधिवत पूजन करें। घी में रोली मिलाकर दीप करें, अगरबत्ती से धूप करें, लाल चंदन चढ़ाएं। लाल कनेर के फूल चढ़ाएं। अनार का फलाहार चढ़ाएं। गेहूं व गुड के हलवे का भोग लगाएं तथा लाल चंदन की माला से इस विशेष मंत्र का 1 माला जाप करें। पूजन उपरांत फलाहार व भोग लाल गाय को खिलाएं।
पूजन मुहूर्त: प्रातः 08:30 से प्रातः 10:30 तक।
पूजन मंत्र: ह्रीं आदित्याय मित्राय नमः॥